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Sachin Zanje
दररोजची ती गावाकडची वाट. हिच ती गावाकडची वाट ओढ लावी जिवास. बाहेर पडलो काहीतरी करण्या पण सायंकाळी तीची का लागे आस. माझ्यावरून जाण्यामागे असतो प्रत्येकाचा नवीन ध्यास. परतूनी तुम्हा पाहून होतो आनंद माझ्या मनास. विसरू नको कधी तू हा प्रवास. जिथे लहानाचा तू मोठा झालास. काही क्षण ते आठवलं. हया वाटेन संघर्षमय माझं बालपण दाखवलं. म्हणूनच हिच ती गावाकडची वाट ओढ लावी नेहमी जिवास. कवी - कु सचिन सदाशिव झंजे. दररोज ची ती वाट
S K Sachin उर्फ sachit
किताब प्रकाशित कर सकता है आपको अगर आप चाहें तो 🌹🙏🌹 ©S K Sachin उर्फ sachit #booklover #प्रकाशित.. #विचार
vinay vishwasi
आज का इंसान इंसान आज इतना उदास क्यों है? हर वस्तु को पाने की प्यास क्यों है? उसे जीवन ही जीना है तो, नित्य नई वस्तु की तलाश क्यों है? मालूम है उसे जीवन की सच्चाई, फिर अनैतिक कर्मों में विश्वास क्यों है? जल गई घमण्ड की रस्सी मगर, उसकी ऐंठन का अबतक एहसास क्यों है? वो ज़िंदादिल नहीं, ज़िंदा है केवल, फिर महान व्यक्तित्व बनने का प्रयास क्यों है? बीती नहीं उम्र गृहस्थी की, दिनचर्या में अभी से सन्यास क्यों है? जिन संस्कारों, शिष्टाचारों से दुनिया बढ़ी, आज वही उसके लिए बकवास क्यों है? सोचे-विचारे 'विनय' हर दिन, इंसान-इंसान में इतनी खटास क्यों है? #प्रकाशित कविता #विश्वासी
vinay vishwasi
गृह अपना छोड़ चला मैं तोड़ कर ये मोह का बंधन, गृह अपना छोड़ चला मैं। कुछ पाने की हसरत में, जाने अब किस ओर चला मैं। न है कोई ठौर-ठिकाना, बस वैसे ही दौड़ चला मैं। सपनों की स्वर्णिम मंजिल की, सारी कड़ियाँ जोड़ चला मैं। काँटों में भी है राह बनाना, हर बाधा को तोड़ चला मैं। कुछ उलझन कुछ आशाएँ, आशीष स्वजनों के बटोर चला मैं। लेकर हौसलों की ऊँची उड़ानें, करने सबसे होड़ चला मैं। तोड़कर ये मोह का बंधन, गृह अपना छोड़ चला मैं। #प्रकाशित रचना #विश्वासी
vinay vishwasi
बदलाव सियासत की सुकून लिये चेहरे का मुस्कान क्यों बदल रहा है? दिन पर दिन ये इंसान क्यों बदल रहा है? दुहाई देते थे जो धर्म और नीति की, आज उन्हीं का ईमान क्यों बदल रहा है? काली करतूतों को छिपाने के लिये, लोगों का दूकान क्यों बदल रहा है? गाली देते थे जिनको कल तक, आज उन्हीं के लिये जुबान क्यों बदल रहा है? आम से खास बन गये थे जो, फिर उनका पहचान क्यों बदल रहा है? अब तक जी हजूरी करते थे जिनकी, अचानक से ही निशान क्यों बदल रहा है? मची है हलचल सियासी गलियारों में, हड़बड़ी में रोज फरमान क्यों बदल रहा है? बिगुल बजी नहीं अभी चुनाव की, दिग्गजों का मैदान क्यों बदल रहा है? कहे 'विश्वासी' विश्वास से,हो न हो, पंचवर्षीय सत्ता का कमान बदल रहा है। #काव्य_संग्रह_नवांकुर में #प्रकाशित
vinay vishwasi
जुदाई वक्त है ठहरा हुआ कैसी ये तन्हाई है, रात गई सुबह हुई फिर भी क्यों अंगड़ाई है। नींद नहीं नैनों में पर सपनों की परछाई है, सुख-चैन सब कुछ गुमा, कैसी घड़ी ये आई है। कभी भूलूँ कभी यादों में खोऊँ प्यार की ये गहराई है, एक क्षण लगे घंटा समान, लंबी बड़ी जुदाई है। नहीं छँटते गम के अंधेरे क्या यही जीवन की सच्चाई है, किसके लिए अब रुके 'विश्वासी', हर तरफ नफरतों की खाई है। वक्त है ठहरा हुआ कैसी ये तन्हाई है, रात गई सुबह हुई फिर भी क्यों अंगड़ाई है। #प्रकाशित कविता #विश्वासी
कवि विनय आनंद
अखबार में प्रकाशित मेरी कविता दिल बेचारा ©कवि विनय आनंद मेरी प्रकाशित रचना
Jitender Nath
कितने फिजूल खर्च हैं ये दरख़्त पानी पीते तो हैं पर उडा देते हैं अपने कतरे से बनाते हैं ये फूल पर कमबख्त खुशबु उडा देते हैं #मौन किनारे #मौनकिनारे शीघ्र प्रकाशित
s
सभी कहते है ये हमारे घर की बहू है, पर ये कोई नहीं कहता ये घर मेरे बहू का है । बहू के लिए प्रकाशित
Shubham Pandey gagan
प्रकाशित रचना #nojoto #nojotohindi #poetry