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पंकज कुम्हार
दिल मरुस्थल हो रहा कुछ हरियाली दिखा नब्ज़ों से connection दिल का नब्ज़ों में बांध ना बना खारा ही सही पर इन्हें कुछ पानी तो दिखा दिल-मरुस्थल
दिल-मरुस्थल #शायरी
read moreParasram Arora
क्या कभी लौट पायेगा वो प्रवासी जल मरुस्थलो मे? कैसे विस्मृत कर सकता है आज वो मरुस्थल कि. वो भी कभी समुन्द्र का अंश था और उसमे भी. लहरे कभी ठाठे मारा करती थी लेकिन वक़्त ने करवट ली और उसके जल क़ो सूरज ने वाशपिकृत करके उसे मरुस्थल मे बदल दिया आज वो सन्नाटो मे चीख चीख कर अपनी व्यथा प्रकट करता है. और आज भी वो तरलता के स्वप्न उन वीरान रातो मे देखा करता है ©Parasram Arora मरुस्थल की व्यथा
मरुस्थल की व्यथा #कविता
read moreUsha Dravid Bhatt
#OpenPoetry मरुस्थल सफेद किरमिची चादर सा दिखता मरुस्थल, भोर की बेला जैसा कितना शान्त और शीतल , मैं चली जा रही हूँ , कभी न मिलने वाले बिछडे साथी की खोज में , ज्यों भटकता रहता है हिरण अपने गर्भ में छिपी कस्तूरी की खोज में । कांटे बिंधे पैरों से , जख्मी तन लिए , आंसुओं से तर-बतर चेहरा - ऐसे ढूँढ़ता है अपने प्राण को, जैसे निष्प्राण सा पागल अन्त समय में प्राणवायु ढूंढता है , क्या मिल सका है कभी ,खोया हुआ ,इस अनन्त फैली मरुभूमि में । असंख्य हादसों की कब्रगाह बन कर कैसे शान्त हो तुम , अब तो बता कहाँ है मेरा राही , तू इतना कठोर मत बन - देख आंख वीरान हैं ,जिस्म वेजान है ,शब्द पथरा गये । सोचा था मेरे हृदय की चित्कार के दर्द को तू सह न पायेगा , भूल थी मेरी ,कहां मैने आंसू बहाए , अरे मरू तू तो म-रु-स्थल है कहां तुझमे संवेदनाएं । थक गयी हूं अब , लहू रिसते घावों का दर्द सह नहीं सकती , विश्रान्त दे दे मुझे , अपनी स्पन्दन हीन निशान्त गोद में , कि पहुँच जाऊँ मैं अपने प्रिय के पास । भोर बिना *उषा* का क्या अस्तित्व । बस अब सो जाऊं , जहाँ से फिर कभी उठ न सकूं चिरंतन काल तक , दरकती खिसकती रेत में , लुप्त हो गयी खुशियों की तरह ।। खुशियों से विहीन मरुस्थल
खुशियों से विहीन मरुस्थल #कविता #OpenPoetry
read moreAmit Prem "AkR"
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read moreअविनाश पाल 'शून्य'
उसकी आँखों में देखा है इश्क का समुन्दर मैंने जिसपे आरोप है कि भावों का मरुस्थल है वो। #शून्य #इश्क़ #समुंदर #पावन_प्रेम #पवित्ररिश्ता #मरुस्थल #योरकोट_दीदी #योरकोटऔरमैं
सिद्धार्थ मिश्र स्वतंत्र
फ़र्ज़ी एहसासों को, कविता!! नही कहते, मरुस्थल का ताप, आलिशान कोठियों, में नही समझ आता, कविता, अनुभव है अनुभूति है, जिसमे आपका, बोध!! परिलक्षित होता है, कविता गुलाब की, गमक ही नही, चुभते कांटे भी हो सकती है। कविता में महफ़िल का, शोर ही नही, मरघट का सन्नाटा भी, हो सकता है। कविता, तुम्हारी वास्तविकता, तुम्हारा प्रतिरूप भी है।। #NojotoQuote कविता #गुलाब #कांटे #मरुस्थल #मरघट #कविता #स्वतंत्र #nojotohindi