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Rakesh Kumar Sah
Rabindra Kumar Ram
*** ग़ज़ल *** *** नुमाइश *** " क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं , मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से , क्यों ना तेरा बार बार मुसलसल हो जाऊं मैं , खुद को तेरी आदतों में कितना मशग़ूल किया जाये , तुझमें में मसरुफ़ कहीं जाऊं मैं , बात जो भी फिर कहा तक जार बेजार , तेरे ज़िक्र की नुमाइश की पेशकश की जाये , लो ज़रा सी इबादत कर लूं भी मैं , इश्क़ की बात हैं मुहब्बत कर लूं मैं , तेरे ख्यालों की नुमाइश क्या ना करता मैं , ज़र्फ़ तेरी जुस्तजू तेरी आरज़ू तेरी , फिर इस हिज़्र में फिर किस की ख़्वाहिश करता मैं , उल्फते-ए-हयात एहसासों को अब जिना आ रहा मुझे , जो तेरे ख्यालों के तसव्वुर से रफ़ाक़त जो कर रहा हूं मै . " --- रबिन्द्र राम ©Rabindra Kumar Ram *** ग़ज़ल *** *** नुमाइश *** " क्यों ना तेरा तलबगार हो जाऊं कहीं मैं , मैं मुख्तलिफ मुहब्बत हूं इस दस्तूर से , क्यों ना तेरा बार बार मु
Sukoon Poetry
White किस किस को बताएं किस कदर जिए बैठा हूं. वो जो देखे तो समझे कि पिए बेठा हूँ.. वो जो आखिरी कश्ती ना आए उस पार मुझे कोन लगाए. बरसों से उस पार जाने के लिए बैठा हूं. कोन जाने किस कदर जिए बैठा हूँ ©Sukoon Poetry कौन जाने किस कदर जीए बैठा हूं #SAD
#शून्य राणा
White (हिदायत) रात कितनी भी गहरी हो इंतजार की ,,तुम एक बोतल और खोल लेना ,,मगर ,,इन बोझल आंखों से अब कोई ख्वाब नही देखना ।। # जाम में घोलकर पी जाना ,, पलकों पर उमड़ता दरिया ,, मौज में बहती कश्तियां तो देख लेना मगर ,,गम का कोई सैलाब नही देखना । # उन गजलों -गुलाबों की हालत हुबहू तुम्हारे जैसी ही है ,,तुम खुद आइना तो देख लेना मगर ,,खोलकर वो पुरानी किताब नही देखना । # इस दर्जा पीना के सुद बुध गवा बैठो अपनी , लुफ्त खुलकर जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,पीने से पहले ,किस दर्जे की है शराब नही देखना। # खुद को देखना,, कितने मक्कार थे तुम (राणा) , अब इस नशे में रहकर खुद के फरेब पर तो गौर करना मगर ,,उसके बदले में हो मिले अजाब नही देखना । # बढ़ती उम्र से बीते लम्हे मांगकर देखना ,, वो खुश थी क्या तुम्हारे साथ ,, बस देखकर नजरंदाज तो करना मगर ,,बाद उसके हुए जो अपने हालात नही देखना । # बेहिसाब पीना जैसे हर रात आखिरी हो ,,पीने से पहले ये पुख़्ता करना जाम सुर्ख लाल ही मगर ,,बाद पीने के प्यालों का हिसाब नही देखना । # इस दर्जा पीना राणा के सुद बुद्ध गवा बैठो अपनी , लुफ्त जख्मों के ज़ायके का तो लेना मगर ,,पीने से पहले किस दर्जे की है शराब नही देखना । ©#शून्य राणा #किस दर्जे की है शराब नही देखना। #शराब #मयकशी #nojoto❤ Niaa___ Sircastic Saurabh नीर PRIYANKA GUPTA(gudiya) Kajal jha (kaju)
AwadheshPSRathore_7773
White . बची थी जो शेष जिंदगी उसी को विशेष बनाने के चक्कर में कब यह जीवन भूत से वर्तमान,वर्तमान से भविष्य में कहीं खो गया, पता ही नहीं लगा... तुम्हारा कसकर हाथ पकड़ने की चाह में नमी जिंदगी.. कब सूखी रेत सी हो हाथों से फिसल गई पता ही नहीं लगा न मै..मेँ रही,ना तुम.. तुम रहे तुम्हारी जो जिंदगी थी मैँ..कब -कैसे - क्यूं रास्ते का पत्थर बन गई पता ही नहीं लगा...x कांच के टुकड़ों को क्यूँ हीरोँ का नाम दे...देकर यूं ही सहेजते रहे हम जबकि अपना शीशे सा दिल कब पत्थर हो गया पता ही नहीं लगा.. एक मुलाकात के इंतजार में तुम्हारे ख्यालों को कब कस्तूरी..मृग.. मन..से जिंदगी..ऐ..रुह में उतार लिया... पता ही नहीं लगा.... दीवारों को दर्द सुनाते सुनाते तन्हा दिल ने तन्हा-तन्हा सी जिंदगी में कब..तन्हा..शहर बसा लिया पता ही नहीं लगा...पता ही नहीं लगा... ©AwadheshPSRathore_7773 #nightthoughts शेष विशेष के जैसे चक्की के दो पाटों के बीच फंसती यह जिंदगी,किस तरह सादे मनुष्य से उसके जीवन की सारी सादगी छिन लेती है और अंतत
हिमांशु Kulshreshtha
तुम हकीक़त हो या फिर कोई फरेब... ना दिल से निकलते हो ना ज़िँदगी में आते हो... किस क़दर हो बेदर्द बंद लिफ़ाफ़े से हो समझ ही नहीं आते हो ©हिमांशु Kulshreshtha किस क़दर
GoluBabu
Sethi Ji
दोस्तों संग यह ज़िन्दगी कितनी सुहानी लगती हैं अकेले और तन्हा चाँदनी रात भी कहाँ गुज़रती हैं लिखता हूँ एक टूटे हुए दिल की आवाज़ आपके सामने और सारी दुनिया मुझे एक " शायर " समझती हैं थक जाता हूँ हर दिन दुनिया की जस्तो-जायज़ में अपने घर की रोटी कमाने के लिए मेरी माँ के आँचल में मेरी यह ज़िन्दगी सँवारती हैं 💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝💝 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 ©Sethi Ji ♥️🌟 आज की दुनिया 🌟♥️ ♥️🌟 आज की पुनिया 🌟♥️ आज की दुनिया में हर कोई परेशान हैं इंसानों की बस्ती में भी कहाँ मिलता इंसान हैं ।। हमने भी खाए