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Yasir Hameed
वफा की तुझसे उम्मीद इतनी है कि बेखौफ फिरू मैं डरे तो वह जिनका महबूब बेवफा है बेखौफ फिरू में
R.K. Prajapat
बेख़ौफ़ फिरूं मैं, बेखौफ़ फिरू में, अब क्यों कीसी से डरू में, उड़ता परिंदा हूं में , फ़िर क्यों जमीं पर चलूं में मेरी उड़ान है बादलो से उँची, फ़िर क्यों बारिश में भीगू में खौफ़ नहीं अब मुझ में, हर रोज़ तूफ़ानो से खेलूं में जिंदगी के सर्कस में, बेखौफ़ करतब करूं में बेखौफ़ फिरू में
shraddha balkrushna khedkar
कधी उगाच स्वतः वर नाराज होऊ नका , अपयश कारणं कधी स्वतः ला देऊ नका! कधी उगाच स्वतः वर रागावू नका ,या फसव्या जगात स्वतः ला माञ दोष लावू नका! कधी उगाच हसवावे कधी उगाच रडावे पण कोणाला फसवले नाही यांचें समाधान मात्र बाळगावे। कधी उगाच स्वतः ला एकट न समजावें या गर्दीतचकोठेतरी आपलीं माणस शोधावे, मिळेल तुम्हाला तिथे हि आपुलकी जर प्रेमाचे चार शब्द तुमही बोलले! कधी उगाच जावे एकटे फिरायला निसर्गाच्यासान्निध्यात दु:खाचा डोंगर विसरायला,पावसात स्वतः ला चिंब भिजूनी घ्यावे,परत एकदा कधी उगाच लहान बाळ होऊनी नाचावे... कधी उगाच स्वतः ला शोधावे... कधी उगाच स्वतः ला शोधावे... कधी उगाच!
HiteSh DongRe
कधी कधी वाटत कि, आपण उगाचच मोठे झालो. कारण तुटलेली मनं आणि अपुरी स्वप्नं यापेक्षा तुटलेली खेळणी आणि अपुरा गृहपाठ खरच खुप चांगला होता.. ©HiteSh DongRe #walkalone #उगाच
Shivraj Solanki
बन बंजारा बन -बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है तुझे ढूढन को में मन्दिर-मन्दिर फिरत तू मेरे मन मन्दिर में बसत है हर एक गोपी को पूंछा करता दिल को अपने, अंगारों से सींचा करता यमुना तट,कदंब की डारी गोपियां भी सारी की सारी है प्रभु तुम्हे पूंछा करत है बन बंजारा बन - बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है अब उधव जो आए पूछूंगा ना कोई जोग सन्देश सुनूंगा कहा मेरे श्याम सुंदर छिपत है क्या उनके पास हमारे लिए बखत है क्या उनको सबसे प्यारा तखत है बन बंजारा बन -बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है घनघोर घटा काली रात है है प्रभु सुनो कहत शिवराज है घूमकर देख लिया बृज आज है ना वैसी शांति ना वैसा रास है ना वैसी ममता ना वैसा दुलार है ना वैसा भाईचारा ना वैसा प्यार है अब देर ना करो मेरे सांवरे जल्दी आकर सुध लो सांवरे भक्त तुम्हारे भटकत है बन बंजारा बन -बन भटकत है मन मेरे तु कहा अटकत है शिवराज खटीक बन बंजारा बन - बन भटकत है
Rohidas maharaj Sanap
नको नको मना गुंतु मायाजाळी । काळ आला जवळी ग्रासावया ॥१॥ काळाची हे उडी पडेल बा जेव्हा । सोडविण तेव्हा मायबाप ॥२॥ सोडविण बंधु पाठीची बहिण । शेजारची कामिन दुर राहे ॥३॥ सोडविण राजा देशीचा चौधरी । आणिक सोयरे भले भले ॥४॥ तुका म्हणे तुज सोडविण कोन्ही । एका चक्रपाणी वाचुनिंया ॥५॥ श्री . हभप रोहिदास महाराज सानप ( बेजगांव ) मो .9822888295 ©Rohidas maharaj Sanap # नको नको मना गुंतु मायाजाळी #Thinking
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी मन मेरा भी तबलगार है अहसास जीने का रखूँ प्यार की भले में मूरत पूजता जग मुझे देवी के रूप में हर काल मे पूजता फिरे हकीकत में मेरा कुछ भी नही कितनी बलाओ से बचती फिरू नारो में तो बड़े बड़े स्लोगन है बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ मगर नर और समाज की निगाहो में अब भी मेरी इज्जत भोग की बस्तु से कुछ कम नही प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Problems कितनी बलाओ से बचती फिरू #nojotohindi