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Rajkumar Siwachiya
White पापिया का पापी तनै बना दिया साफी छवि तासीर तेरी छोरी गंगा पानी बरगी तेरय बैठ बैठ पास मिलय सुकून मनै खास तू डिटो बिल्कुल मेरी दादी आली कहानी बरगी ✨👩❤️👨✨♥️🔭📙🖋️ - Rajkumar Siwachiya ✍️♠️ ©Rajkumar Siwachiya दादी आली कहानी बरगी ✨👩❤️👨✨♥️🔭📙🖋️ - Rajkumar Siwachiya ✍️♠️ #Romantic #rajkumarsiwachiya #oyedesi #haryanvi #haryana #loharu #bhiwani #Jhum
Dhanraj Gamare
nsnsnsnsnsnsnsnsnsns ©Dhanraj Gamare *संगमेश्वरच्या सुपूत्राची* D.B.A.च्या ठाणे *जिल्हाध्यक्षापदी निवड* *मा.धनराज गमरे* यांचे *हार्दिक ! अभि
Dhanraj Gamare
KP EDUCATION HD
KP NEWS for the same for me to get the same ©KP NEWS HD श्रीकृष्ण की आरती आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ आरती कुंजबिहारी की,श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥ गले में बैजंती माला, बज
N S Yadav GoldMine
बूड्ढी बैट्ठी घर के बाहरणे छोरी पतासे बाट्टण आई। करले दादी मुह नैं मिट्ठा मेरी मां की कोथली आई। {Bolo Ji Radhey Radhey} बूड्ढी बोल्ली के खाउं बेट्टा, घर की बणी या चीज कोन्या। सारे त्योहार बाजारु होगे, ईब पहले आली तीज कोन्या। कोथली तो वा होवै थी जो म्हारे टैम पै आया करती। सारी चीज बणा कै घरनै मेरी मां भिजवाया करती। पांच सात सेर कोथली मैं, गुड़ की बणी सुहाली हो थी। गैल्या खांड के खुरमें हो थे, मट्ठी भी घर आली हो थी। सेर दो सेर जोवे हों थे, जो बैठ दोफारे तोड्या करती। पांच सात होती तीळ कोथली मैं, जो बेटी खातर जोड़्या करती। एक बढिया तील सासू की, सूट ननद का आया करता। मां बांध्या करती कोथली, मेरा भाई लेकै आया करता। हम ननद भाभी झूल्या करती, झूल घाल कै साम्मण की। घोट्या आली उड़ै चुंदड़ी, लहर उठै थी दाम्मण की। डोलै डोलै आवै था, भाई देख कै भाज्जी जाया करती। बोझ होवै था कोथली मैं, छोटी ननदी लिवाया करती। बैठ साळ मैं सासू मेरी, कोथली नैं खोल्या करती। बोझ कितना सै कोथली मैं, आंख्या ए आंख्या मैं तोल्या करती। फेर पीहर की बणी वे सुहाली, सारी गाल मैं बाट्या करती। सारी राज्जी होकै खावैं थी, कोए भी ना नाट्या करती। कोथली तो ईब भी आवै सै, गैल्या घेवर और मिठाई। पर मां के हाथ की कोथली सी, मिठास बेबे कितै ना पाई। सावन की कोथली और तीज की बधाई।🌳🌴🌳🌴🙏🙏 N S Yadav GoldMine 🌹🌹🙏🙏🌹🌹 ©N S Yadav GoldMine #DiyaSalaai बूड्ढी बैट्ठी घर के बाहरणे छोरी पतासे बाट्टण आई। करले दादी मुह नैं मिट्ठा मेरी मां की कोथली आई। {Bolo Ji Radhey Radhey} बूड्ढी
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
कुण्ड़लिया :- हरियाली डाली-डाली बैठते , देखो पक्षी आज । हरा-भरा यह देखकर , वन का सुखी समाज ।। वन का सुखी समाज , मोर कोयल है गातें । देख रहे गजराज , हिरन सब दौड़ लगाते ।। करे व्यक्त आभार , देख वन में हरियाली । मग्न हुए कपि राज , दौड़ते डाली-डाली ।। आली-आली लग रही , देख भोर की दूब । आओ चलते सैर को , मजा करेंगे खूब ।। मजा करेंगे खूब , हाथ जो आए मोती । होगी गीली देख , वहाँ पर अपनी धोती ।। लेकिन करना काम , आज फिर बनकर माली । लोग करेंगे याद , देखकर कल हरियाली ।। ०४/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्ड़लिया :- हरियाली डाली-डाली बैठते , देखो पक्षी आज । हरा-भरा यह देखकर , वन का सुखी समाज ।। वन का सुखी समाज , मोर कोयल है गातें । देख रहे
Poonam Suyal
उड़ती हुई तितलियों की झलक, मधुमास की रागिनी सहलाती प्यार से भरी हर एक पलक, प्रकृति को नई दास्तान सुनाती। फूलों की खुशबू संग रंगीन, फिरती है वे दिल की धड़कनों में आसमान की उचाईयों से सहमी, पतंगों की तरह ख्वाबों में। (अनुशीर्षक में पढ़ें) ©Poonam Suyal उड़ती हुई तितलियों की झलक, मधुमास की रागिनी सहलाती प्यार से भरी हर एक पलक, प्रकृति को नई दास्तान सुनाती। फूलों की खुशबू संग रंगीन, फिरती है