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Sunil K Bundela
Mere Likhe Har Alfaz Sangeet Ki Dhun Ho Jaenge Kabhi Akele Me Gour Se Sunana Kya Likha Tha Maine Tumhare RanzoGum Sab Gum Ho Jaenge ©Sunil K Bundela अल्फ़ाज़ / सुनील के बुंदेला
Shalvi Singh
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Pushpvritiya
कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में जाकर जड़ से तुमको सींचना.. मन वचन धरण नव अवतरण सब अपने भीतर भींचना..... रक्तिम सा भ्रुण बन कर तुम सम, भ्रुण भ्रुण में अंतर परखूँगी..! मेल असंभव क्यूँ हम तुम का, इस पर उत्तर रखूँगी....!! पुछूँगी कि किए कहाँ वो भाव श्राद्ध कोमल कसीज, खोजूँगी मैं वहाँ जहाँ बोया गया था दंभ बीज... उस नर्म धरा को पाछूँगी, मैं नमी का कारण जाचूँगी.......!! मैं ढूंढूँगी वो वक्ष जहाँ, स्त्रीत्व दबाया है निज का, वो नेत्र जहाँ जलधि समान अश्रु छुपाया है निज का....! प्रकृत विद्रोह तना होगा, जब पुत्र पुरुष बना होगा..... मैं तुममें सेंध लगाकर हाँ, कोमलताएं तलाशूँगी, उन कारणों से जुझूँगी.... मैं तुमको जीना चाहूँगी......!! अनुभूत करूँ तुमसा स्वामित्व, श्रेयस जो तुमने ढोया है... और यूँ पुरुष को होने में कितने तक निज को खोया.....! कदम कठिन रुक चलते चलते कित् जाकर आसान हुआ, हृदय तुम्हारा पुरुष भार से किस हद तक पाषाण हुआ.....!! मैं तुममें अंगीकार हो, नवसृज होकर आऊँगी, मैं तुमको जीना चाहूँगी........ फिर तुमसे मिलन निबाहूँगी........!! @पुष्पवृतियाँ ©Pushpvritiya कुछ यूँ जानूँगी मैं तुमको, कुछ यूँ मैं मिलन निबाहूँगी......! सुनो गर जनम दोबारा हो, मैं तुमको जीना चाहूँगी..........!! चाहूँगी मैं जड़ में
Devesh Dixit
जीवन एक बिसात ये जीवन देखो एक बिसात है, जिसमें शतरंज सी हर बात है। फूँक फूँक कर कदम रखना है, आती मुसीबत से भी बचना है। कौन कहाँ पर कब कैसे घेरे, काट कर बातों को वो मेरे। मुझ पर ही हावी हो जाए, काम ऐसा कुछ कर जाए। उलझ जाऊँ मैं तब घेरे में, शतरंज के फैले इस डेरे में। शह-मात का चलन रहा है, देख पानी सा रक्त बहा है। युद्ध छिड़ा धन सम्पत्ति पर, कभी नारी की इज्जत पर। भाई-भाई में द्वेष बड़ा है, देखो कैसे अधर्म अडा़ है। खून के प्यासे दोनों भाई, महाभारत की देते दुहाई। प्रेम भाव सब ख़त्म हुआ है, ये जीवन अब खेल हुआ है। सभ्यता ही सब गई है मारी, बुजुर्गों का जीवन ये भारी। मिले नहीं सम्मान उन्हें अब, संतानें ही विद्रोह करें जब। कलियुग का ये प्रभाव सारा, किसने किसको कैसे मारा। संस्कारों की बलि चढ़ी है, मुश्किल की ही ये घड़ी है। होती है ये अनुभूती ऐसी, शतरंज में दिखती है जैसी। .......................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #जीवन_एक_बिसात #nojotohindi #nojotohindipoetry जीवन एक बिसात ये जीवन देखो एक बिसात है, जिसमें शतरंज सी हर बात है। फूँक फूँक कर कदम रखना ह