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shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Sri batsa Meher
किसी चीज की आबिस्कर करना ये सरासत बड़ा चीज है। लेकीन खुद को आबिस्कर करना ये सबसे महान चीज है। जीवन मै एक दूसरे के साथ सत्ता लगा सकते है। लेकिन खुद के सत्ता को जान ना मुश्किल होता है। ©Sri batsa Meher सत्ता के आबिस्कर के बारे
Hitesh chaturvedi
CHOUDHARY HARDIN KUKNA
Anil Ray
पुरुष की एक संज्ञा उसका पौरुष और अदम्यता से परिपूर्ण अद्भुत साहस है। यह साहस अतिश्योक्ति और दुष्स्वरुप धारण कर पाशविकता में परिवर्तित... पुरुष सत्ता ही स्त्री शक्ति से श्रेष्ठ है...! और पुरुष सत्ता के समर्थक सदैव ही इसी रूप का अन्यायोचित उपयोग सतत रूप से सदियों से प्रचलित भी है। परन्तु...पुरुष हर्षोल्लास से खुशी मनाये वह सदा ही विकास क्रम में स्त्रियों से पिछड़ा हुआ अविकसित व विकासशील है। जिस दिन पुरूष सच में विकास प्राप्त कर पुरुषोत्तम स्वरुप में होगा वह स्त्री ही है। दरअसल वात्सल्य, प्रेम, दया एवं कोमलता से ही इस सृष्टि का संरक्षण सम्भव है और यह सब स्त्रियों के सद्गुण है पुरुषों के नही। स्वभाव का एक ओर नाम है प्रकृति..और जिसकी प्रकृति विकृत उसकी सृष्टि भी। अजीब है ऐसी विकृत मानसिकता वाले लोग इस महासृष्टि से अपना एकाधिकार चाहते है। जो पुरुष किसी स्त्री की आबरू को संरक्षण नही देता अथवा प्रयास ही नही करता है... वह पुरुष माँ का पुत्र, बहिन का भाई या फिर पत्नी का पति अथवा क्या महिला-मित्र कहलाने का न्यायिक अधिकारी है??? दोस्तों बंदिशें चारदीवारों की नही है चारदिवारी में बंद तहज़ीब की है वरना.. यह सृजन प्रकृति तो अपनी हैसियत गर्भावस्था के दौरान भी दिखा सकती है तुम साहस को अपनी निजी सम्पत्ति का ख्याल भी मन से निकाल फेक दो... अगर स्त्री प्रकृति है तो क्यों नही पुरुष इस प्रकृति में समर्पित भाव को लेकर पूर्णतः स्वयं को समाहित कर दे ताकि सृष्टि सुरक्षित और रमणीय रहे सदा। ©Anil Ray 🩷🩷🩷 स्त्री प्रकृति या प्रकृति स्त्री 🩷🩷🩷 पुरुष की एक संज्ञा उसका पौरुष और अदम्यता से परिपूर्ण अद्भुत साहस है। यह साहस अतिश्योक्ति और दुष्स
Mili Saha
// हास्य कविता // पत्नी से पीड़ित एक मासूम पति की, है यह कहानी, मैं बेचारा हूँ शांत सरोवर और मेरी धर्मपत्नी सूनामी, कुछ बोलूँ तो दिक्कत गर न बोलूंँ उसमें भी दिक्कत, ज़ुबान भी मेरी घबरा जाती आखिर कैसी ये आफ़त, एक दिन तो हद हो गई, खुद से मैं कर रहा था बातें, कर दिया बुरा हाल मेरा, शब्दों से मारकर लात घुसे, इतने से भी न मानी, बोली जो बुदबुदा रहे थे बोलो, अब मैं बेचारा क्या करता करता गया उसको फॉलो, आसमान से गिरे खजूर में अटके मुहावरा कमाल है, मुझ जैसे पतियों के लिए, जिसका हुआ बुरा हाल है, करनी है गुलामी जिसको वो बांँध लो सर पर सेहरा, पर निभानी गर तुमको शादी तो हो जाना गूंगा बहरा, पत्नी का कहा सब सत्य वचन, पति बोले तो झूठा, बेलन दिखाकर डराती ऐसे अब पीटा कि तब पीटा, गढ़ फतह करना है पत्नी जी की तारीफ़ करना भी, अंगारे सिर पर जो रखना चाहे, कर लेना शादी जी, सत्ता घर में पत्नी की चलेगी गांठ बांँध लेना ये बात, अक्ल के घोड़े मत दौड़ाओ, कुछ नहीं तुम्हारे हाथ, भूलकर भी उसके मायके वालों की करना न बुराई, एक से बढ़कर एक स्वादिष्ट तानों से होती है कुटाई, ये बस हंँसी मज़ाक, पति पत्नी का रिश्ता निराला, विवाह है पवित्र बंधन एक रिश्ता नोकझोंक वाला, जीवन रूपी गाड़ी के पहिए दोनों,चलते एक साथ, एक दूजे के बिना अधूरे ये, अधूरी जीवन की बात। ©Mili Saha हास्य कविता पत्नी से पीड़ित एक मासूम पति की, है यह कहानी, मैं बेचारा हूँ शांत सरोवर और मेरी धर्मपत्नी सूनामी, कुछ बोलूँ तो दिक्कत गर न बोलू