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somnath gawade
गावाकडचं लॉजिक एखाद्याला 'ताळ्यावर' आणायचं असेल तर 'खळ्यावर' नेऊन चांगलंच मळून काढावं. भाग-२
भाग-२
read moreSatya Prakash Upadhyay
(दहेज) भाग २ सुनते समझते फिर पिता कहते,आपके सम्मान से पीछे नही हटते और भी जिम्मेदारियां हैं मेरी,हम आपके सामने हैं कहाँ टिकते कर अभिमानी स्वर बोले श्वसुर,जैसे लोभ की प्रतिमूर्ति हो कोई असुर नही क्षमता थी तो क्यों थे आतुर,बहुत समझते थे ख़ुद को चतुर स्वाभिमानी का सर अब था झुका,विनती करते वो तो कभी न थका शब्द पड़ते जैसे तीर कोई विष बुझा,अब अहंकारियों के भाव वो समझा है सम्मान मेरी ,अभिमान मेरी,दुनिया से सच्ची संतान मेरी है सरस्वरती ,लक्ष्मी और काली,जगदम्बा,अन्नपूर्णा वैभवशाली अब चलता हूँ, बहुत हुआ, तेरे दर कदम तो क्या दृष्टि भी वो न डालेगी है शक्तिस्वरूपा,दुर्गा,भवानी घर तेरा कोई बिटीया अब न सम्हालेगी अब जा कर अपनी स्त्री से कैसे नज़र मिला कह पाएगा जैसा सोचा था क्या कोई घर वैसा लाली को मिल पाएगा है ज्ञानी हम सभी इतने इतिहास विज्ञान की विवेचना करते अब समय है अमल करने का जो विचार हम दूसरों पे धरते satyprabha💕 भाग २
भाग २ #कविता
read moreBharat Bhushan pathak
कैसे?इस पर विस्तारित चर्चा बाद में होगी,सबसे पहले तो छोटा सा संस्मरण संबंधित विषयवस्तु पर प्रस्तुत है:- हुआ यों कि एक बार बचपन मैं जब साइकिल चलाना सीख रहा था,तो अपने उस शरारती मित्र के कारण जो मुझे साइकिल सिखा रहा था के कारण मैं गिर गया।गिरने का कारण स्पष्ट था कि उसने कहा कि भाई तू आगे देख और पैडल मारने की कोशिश कर,पर किसे पता था कि बंधु ने 'एकला चलो रे' बताने की ठान रखी थी और हुआ भी बिल्कुल वैसा ही ,एकला चलो का नारा बुलन्द करने वाले श्रीमान भारत भूषण जी क्षण भर में वसुंधरा का आलिंगन करते पाए गए और वसुंधरा ने भी स्नेह की बरसात करते हुए कुछ अधिक ही प्रेम कर दिया जिसके फलस्वरूप श्रीमान जी की पेन्ट ये दूरियाँ ये फासले अब नहीं गाते हुए पीछे और आगे फट चुकी थी,कमाल का नक्शा बनाते हुए फटी थी वो,उस जमाने में उसे छुपाते हुए किसी तरह घर वो पहुँचे और पेन्ट बदली पर आज ऐसा कुछ हो जाए तो लोग कहेंगे क्या बात है वाह बिल्कुल ट्रैण्डींग लूक! ©Bharat Bhushan pathak #पोशाक भाग-२
Deep Kushin
पिता(भाग-२) उसके आने से घर में चहल-पहल हो जाता है मन खुश, तन और भी व्यस्त हो जाता है, भाग्यवान..तुम कहती कि आंखों का तारा है ये हो भी क्यों न पुत्र जो हमारा है ये। संस्कार दिए हैं हमने हमने चलना सिखाया है, बस दिग्भ्रमित ना हो जाए कहीं इस डर ने मन को खाया है। सुनो..अपेक्षाएं बहुत हैं इससे पर पहले इंसान बनाना है, मर्यादा भरपूर हो इसमें ये कर्तव्य निभाना है। सुनो भाग्यवान..पुत्री अगर आए तो धीरे से मुझे बतलाना तुम, लाऊंगा जिम्मेदारियों का पिटारा गले से उसे लगाना तुम। वो स्कूल जाने को बोलेगी और समाज तुम्हे उलाहने देगा, बस द्वंद्व में ना आना तुम, पाबंदी मत लगाना तुम, समाज को बातें बनाने देना, पुत्री को उड़ान लगाने देना। बच्चे बड़े होकर सपने सुनाने आएंगे उन्हें पूरा करने के लिए घर छोड़कर जाएंगे, बस उस पल कमजोर ना होना तुम कंधे पर रख के हाथ 'जाओ' बोलना तुम। मजबूत बनाना हृदय को अपने मैं हूं यहां पूरे करने को सपने, बस साथ कुछ सालों तक कम हो जाएगा बच्चा हीं तो है_दूर कैसे हो जाएगा! ये जंग है हम दोनों की लगाव व प्रेम के कोनों की, संभलना यहीं पर है हमको मूल्य उनका आप हीं पता लग जाएगा जब शादी होगी उनकी, और उनका भी बच्चा हो जाएगा। पिता का जीवन बहुत ही द्वंद्व पूर्ण है प्रेम तो है अपार, परन्तु छिपाने की मजबूर है। भाग्यवान..मेरे बच्चों को मैं डांट लगाऊंगा गलती पर उन्हें सिखाऊंगा, बस प्रेम ना कम होने देना तुम उनके मन में,मेरे इज्जत की लाज रख लेना तुम। बस जिज्ञासाएं कम कर लेता हूं उसकी प्राथमिकता प्रथम है, रिश्तों के इस बाज़ार में पिता होना सर्वोत्तम है। #पिता (भाग - २)
Priya Anand jha
कुछ बाते होगी इश्क की कुछ अनकहा -सा इजहार होगा। हां शायद, एक दिन मुझे भी प्यार होगा।। इंतजार भाग २
इंतजार भाग २
read moreBharat Bhushan pathak
नतीजा क्या,आप कहीं न कहीं तो काम करते ही होंगे।कुछ न कुछ तो देश को आपकी आवश्यकता पड़ती ही होगी। हो सकता है आप एक शिक्षक हों,मेडिकल वाले हों,दूध वाले हों या कोई न कोई काम जो देशहित में आप करते ही होंगे,तो उस मिलावट के कारण आपका नुकसान क्या हुआ पैसे का,आपके कीमती समय का और आपके शिक्षक होने के कारण बच्चों के अध्ययन का!यहाँ हमारे कोई न कोई महानुभाव अवश्य ही ये पूछ सकते हैं या मजाकिया अंदाज में ये भी अवश्य पूछ सकते हैं कि पैदल भी तो जा सकते थे न,क्योंकि कुछ लोगों को कुछ बातें तब तक गम्भीर नहीं लगती,जबतक वो उसका भुक्तभोगी न हो ,एक व्यक्ति चोट का मतलब तभी समझ सकता है जब उसे लगे। कोई परिवार के खोने का दर्द तभी समझ सकता है,जब उसने अपने परिवार को खोया। किसी को तब तक दूसरे की जेब सिसकती नज़र नहीं आ सकती जब तक उसका जेब न सिसक उठे और यह यथार्थ है। तभी तो जाली चीजों का व्यापार करने वाले,तेल में,भोजन सामग्री में मिलावट करने वाले तब तक सीख ही नहीं सकते,जब तक उनका कोई बड़ा नुकसान न हो! चलिए ,अब पैदल तो जा सकते थे न कहने वाले की बेतुकी बात जिन्हें जो महत्वपूर्ण लगती है जवाब दिया जाए:- पूर्णतः जा सकते थे बंधु,चरण बाबु की गाड़ी पकड़कर या दूसरा भी विकल्प आपने तैयार अवश्य कर लिया होगा:-बस,टेम्पु या अन्य सवारी गाड़ी से जाना। परन्तु तीनों स्थिति में नुकसान की काफी संभावना थी।तमाम सवारी गाड़ी मुझ अकेले के लिए अपना रास्ता नहीं बदल देती,चरणबाबु से चलकर जाने के थकावट के कारण शिक्षण आधी-अधूरी होती। कारण कहने में कोई शर्म नहीं हमारा शरीर मिलावट खा-पीकर इतना तगड़ा आज हो चुका है कि दो कदम भी इससे चलना और चल भी लेने की स्थिति में अन्य काम न कर पाना ही संभव हो सकता है,तो पूरे तथ्यों पर गौर करें तो हर तरफ से हमने देश के विकास यात्रा को प्रभावित किया ही किया। अब मिलावटी पेट्रॉल की स्थिति में उस जगह गाड़ी का अचानक बंध हो जाना जहाँ बस स्वर्गारोहण ही संभव है,तो वहाँ भी एक नुकसान संभव।उस व्यक्तित्व के परिवार के द्वारा उसे बचाने की भरसंभव प्रयत्न,धन नुकसान जो कि अभी आवश्यक न हो पाता यदि उसे मिलावटी पेट्रॉल देकर ठगा नहीं जाता ,सारांश जिस तरह से होगा नुकसान देश का। (३) अब आते हैं हैकर-हैकर गैम,इसे गाने से समझते हैं:- एक ने एक को कॉल भरसक किया, उस समय वो नहीं जब यारों फोन पे मिला। फिर एक ने की कोशिशें और वो सफल हो गया। बताया एक ने एक को आपका खाता फ्रीज हो गया,बेचारा एक अब ठगा गया.... अब शेष उसके पास बचा रोना-धोना,चिल्लाना ..... तो विकास यात्रा तो तीव्र होनी ही चाहिए थी। अब मेरा बच्चा बीमार है कोई मदद करें,फेक फोटो अधिकतर।कोई संवेदना प्रकट किया और फँस गया हैकर के झाँसे में तो उम्मीद क्या की जा सकती है विकसित की या विकाशशील की!!! यहाँ नुकसान तो तब होता है,एक और पोस्टर,फोटो साझा की जाती है जिसमें समस्या वास्तव में ही रहती है,पहले हुए धोखे के कारण अब अगले को कोई सहायता मिलने से रही और वह सहायता न मिलने के कारण वह एक अपराधी बनकर उभर आएगा,जहाँ वह देश के विकाश यात्रा में सहायक होता,वह अब बाधक बनकर उभरेगा ही,तो सोचिए क्या विकाशशील होना इन तथ्यों पर केन्द्रित नहीं। सादर आभार ©Bharat Bhushan pathak #क्योंविकसितनहींविकाशशीलहैंहम भाग-२
#क्योंविकसितनहींविकाशशीलहैंहम भाग-२ #विचार
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.. हां तो फिर अगली सुबह भी आ गई। तय समय में सालवी कोचिंग पहुंची हांलाकि रास्ते में ट्रैफिक जाम था लेकिन समय की अपनी सीमाएं होती हैं। खैर कोचिंग पहुंचने पर उसे पूनम नहीं दिखी तो उसने गुस्सा करते हुए पूनम को फोन किया, उसने कहा बस आ रही हूं रास्ते में हूं,उसका घर कोचिंग के पीछे ही था।। थोड़ी देर में पूनम भी आ गई।दोनों सहेलियां कोचिंग का पहला दिन है कैसे होगा, क्या होगा, क्या पढ़ाया जाएगा इसी उधेड़बुन में सीढ़ियां चलती चली जा रही थी.... क्रमशः #प्रेमांकुर #भाग#२
Bharat Bhushan pathak
पर कुछ चीजें भी है जो यथार्थ है मेरी उन महानुभाव से जब भी ऐसे विषयवस्तु में द्वन्द हुई है तो महोदय अल्कोहल के सान्निध्य में ही पाए गए हैं,संभवतः इसी विशेषता के कारण हमारे माननीयों ने विद्यालय खोलने के आदेश को न मानकर मदिरालय खोलना ही आवश्यक समझा।मेरी कहानी पसेरी भर ज्ञान प्रथम भाग इसी अतिविशिष्टता के गुण से प्रेरित होकर ही संभवतः मैंने लिखी थी जहाँ सुदूर क्षेत्र में बसे गाँव शान्तिपुर के झक्कन कलाबाज की वो चौपाल जिसमें बिशू,बड़बोले ललकार,ऐंठन बाबा,कूटन सरताज,जूझारू खड़ेश्वर महाराज की गाँजे की अनुभूति पश्चात ऐसे ही विचार प्रस्फुटित होते थे जैसे इन महानुभाव में उस दिन प्रस्फुटित हुए थे ,प्रश्न ऐसे कि दिल चीर कर निकल जाए,जैसा पसेरी भर ज्ञान का अपना पात्र विशू क्या साहित्यिक वर्णन किया था उस दिन ओहो....हो...बलखाती,बिल्कुल सजी हुई सी नयी नवेली सादे लिबाज़ में हमारे पास आ ही रही थी कि तभी किसी ने पीछे से ठोकर मारी और वो जमीन पर भुरभुरा के गिर गयी,अब बताइए क्या ऐसा साहित्यिक वर्णन कोई साहित्यकार कर भी सकता है क्या भला!!!! ©Bharat Bhushan pathak शिक्षक भाग-२ #Teacher