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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने लगी , कर लो सभी प्रबंध ।।२ सुबह-शाम की धूप का , ले लो सब आनंद । पूस-माघ की ठण्ड है , कर लो खिड़की बंद ।।३ करता विनय किसान है , खूब पड़े अब ठण्ड़ । देखो गर्मी की फसल , दे जाती है दण्ड़ ।।४ सर्दी आयी झूम के , लियो रजाई तान । अन्दर-अन्दर आप भी , करिये प्रभु का ध्यान ।।५ ठण्ड़ी के दिन में यहाँ , बनते लोग महान । हफ्ता भी जाए चला , करें नहीं स्नान ।।६ कहते मन की बात को , प्रखर हृदय को थाम । आज सजन के नाम से , बीती ठण्ड़ी शाम ।।७ अम्मा-अम्मा बोलता , बालक वह नादान । अम्मा बातों में लगी , दिए नहीं अब ध्यान ।।८ अम्मा मुझको चाहिए , ऊपर वाला चाँद । बेटा पहले भर यहाँ , तू अपना यह नाँद ।।९ मुझको जाना ही नही , अम्मा से अब दूर । क्या करना पढ़कर यहाँ , मैं अच्छा लंगूर ।।१० आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल । मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११ बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट । बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२ बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग । तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३ गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद । ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४ मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद । फिर तो पश्चाताप का , चखना ही है स्वाद ।।१५ कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान । मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६ चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस । मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७ चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर । पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८ १६/११/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने लगी , कर
युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने लगी , कर #कविता
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आओ खेलें हम यहाँ , लुका छुपी का खेल । मन्नू की तो आ रही , देखो छुक-छुक रेल ।।११ बापू आज पतंग मैं , दूँगा सबकी काट । बहुत लगे हैं बोलने , यह अच्छी है डाट ।।१२ बापू तेरा हाथ मैं , चलूँ पकड़कर संग । तू ही आगे भागता , दुनिया है बेरंग ।।१३ गैरो की आने लगे , जब अपनों को याद । ऐसा ही होगा सदा , जब ऐसी औलाद ।।१४ मातु-पिता को गैर जब , मान रही औलाद । फिर तो पश्चाताप का , चखना ही है स्वाद ।।१५ कुछ भी कह लो बात तुम , बच्चे दें ना ध्यान । मातु-पिता के अंत में , बस रह जाते प्रान ।।१६ चका-चौंध में हो गये , टुकड़े अब पैंतीस । मातु-पिता की मानती , निकली होती खीस ।।१७ चाँद हुआ है मध्य में , देख रहा है चकोर । पल-पल आहें भर रहा , देख उसी की ओर ।।१८ १६/११/२०२२ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR दोहे :- युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने
दोहे :- युगल प्रेमियों के लिए , अच्छी होती ठण्ड़ । बच्चों बूढ़ों को सदा , देती रहती दण्ड़ ।।१ ऊनी कपड़ो के सभी , दूर करो अब गंध । शीत-लहर चलने #कविता
read moreNeha Pant Nupur
🌸नमन मन्नू भंडारी जी🌸 ©Neha Pant Nupur नमन मन्नू भंडारी जी 🌸#mannubhandari हिंदी साहित्य की जानी मानी शख्सियत, नई कहानी आंदोलन की अग्रदूत मन्नू जी को अलविदा कहा ही नहीं जायेगा,
नमन मन्नू भंडारी जी 🌸#mannubhandari हिंदी साहित्य की जानी मानी शख्सियत, नई कहानी आंदोलन की अग्रदूत मन्नू जी को अलविदा कहा ही नहीं जायेगा, #favouritewriter #feminismisequality
read moreManju Tomar
lovebeat #November kreta #23 November #Manju Tomar #मुझ मन्नू को गालीब बना डाला ❤️
read moreRakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
read moreAnuj Ray
खुशबू चरित्र की" खुशबू चरित्र की, हीरे सी चमकती है, फूलों सी महकती है। खुशबू चरित्र की, जीवन के आईने में, सूरज सी दमकती है। खुशबू चरित्र की, आदर्श भी गढ़ती है, इतिहास भी रचती है। ©Anuj Ray # खुशबू की चरित्र की"
# खुशबू की चरित्र की" #कविता
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