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vidhu raj khandelwal
गीले भी करु शिकवे भी करु... ये खुदा को मंजूर न था । राहो के काटे फुल बनेगें.... यह मुझे मालुम न था ।। jyoti Khandelwal
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ए खुदा तू अगर बक्शे मुफ्त मे तो मुझे हसरत खास उसी कि करनी है। मे क्या करु शानो ओ शौकत का मुझे तो तेरे मुताबिक जिन्दगी जीनी है ।। jyoti Khandelwal
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मे नही कहता कि तू दूनियाँ से वास्ता ही छोड़ दे । जो रिश्तो कि दुहाई दे वो धागा ही तोड दे।। आरजू बस इतनी है कि तू खुद के लिए जीना सीख ले । आसमान तो तुजे मिल चुका है तू पर फेलाना सीख ले ।। बहुत ज्यादा बोलू मे इतनी मेरी ओकात नही । मेरी बातों में जूठए जज्बात नही ।। jyoti Khandelwal
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ज्ञान ना डिग्री ना उम्र का मोहताज है ये । ज्ञान तो विवेक और अनुभव का ताज है ये।। jyoti Khandelwal
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धन निरंकार जी आज मेने खुद को थोड़ा पढा है । की हर इन्सान मुझसे बड़ा है ।। खुदा ने मुझे जो दिया है.. वो सबसे अच्छा है ।। Poetry jyoti khandelwal. Sirohi धन निरंकार जी jyoti khandelwal
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धन निरंकार जी की केसे जुडे तार निरंकार से । जुडी डोर निरंकार के एहसास से ।। हसरते है नुमाईशे है.... तेरे वचनों पर चलने की ही ख्वाइशे है, तेरे सन्तो से दुरीया है फासले भी है, ये तो जमाने के किए फेसले है ।। Poetry jyoti khandelwal. Sirohi धन निरंकार जी jyoti khandelwal
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कियो डरे की जींदगी में क्या होगा । हर वक्त कीयु सोचे कि कूछ बुरा होगा बढते रहे मंजिल की ओर हमे कूछ मिले या न मिले, पर तजुर्बा तो नया होगा ।। poetry jyoti khandelwal. Sirohi jyoti khandelwal
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ए इन्सान तुझसे तो अच्छा ये आयना है । जो जैसा है वैसा दिखाता है पर सच बोलने से कभी नही घबराता है ।। ए इन्सान तू अपनी सूरत को.... यू हेरत से ना देख आयने मे... यह वही सच दिखा रहा है.. जो तू झूठा नकाब लिए दूनियाँ से छिपा रहा है ।। Poetry jyoti khandelwal. Sirohi jyoti khandelwal
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वक्त काफी हो गया एसा सोचते हुए । अब कलम भी कह उठी की फेसला तो किजीए ।। हाँ यही है फेसला......2 जो दिखेगा अब यहा आगे-आगे ये कलम खुद करेगी वो बया ।। हाँ सही ये बात है तूझ पर ही तो नाज हैं । ओर का क्यू कहू जब तूने दी जुबान है।। मे आयना समाज का -2 अब सच कहुगी मे यहाँ होश में रहोगे तब -2 सुनना मेने क्या कहा ।। poetry jyoti khandelwal. Sirohi jyoti khandelwal
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धन निरंकार जी मोन मेरे अन्दर ही तूफान था बाहर का माहौल तो शांत था मे खुद से ही अन्जान था कियुकी मेरे अन्दर ही तूफान था ।। चेहरे पर लिए खामोशी आँखो से सब कुछ बयान था । कोई पड़े भी तो केसे मेरे अन्दर ही तूफान था ।। सोचा मेने कर दू सब कुछ बयान । फिर सोचा की सुनेगा कौन सुनेगा वही जो होगा मोन ।। मोन तो केवल निरंकार है । पर निरंकार तो सब कुछ जानता धीरे-धीरे में हुआ शांत था ।। फिर भी मे खामोश था । मे खुद मे ही खुश था मेरे अन्दर का माहौल शांत था ।। जीवन मे आया ठहराव था । इसी मोड़ पर में मोन था इस मोड़ पर अपना ही एक अलग सुकून था इस सुकून मे ही मे गुम था ।। Poetry jyoti khandelwal. Sirohi धन निरंकार जी jyoti khandelwal
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