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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... कैसे दे नववर्ष बधाई , जाकर उनको आज । काज सभी के बन्द पड़े है , कैसे छेड़े साज ।। रोटी तो अब मिलती मुश्किल , कब तक खाए भात । थर-थर कापे होंठ सभी के .... शीत लहर से काँप रहे हैं , जीव-जन्तु इंसान । दसों दिशाओं धुन्ध पड़ी है , छुपे सूर्य भगवान ।। खाली पेट मरोड़ उठी है , सुकुड़ी सबकी आँत । थर-थर कापे होंठ सभी के .... जो मेरा अब तक हुआ नही , कैसे हो स्वीकार । बस कहकर तुमने थोप दिया , यह सबका त्यौहार ।। लेकिन इसमें दिखी न हमको , खुशियों की सौगात । थर-थर कापे होंठ सभी के ... हम तो अपनी पीर छुपाए , बैठे थे सरकार । ऊपर से नववर्ष तुम्हारा , बन बैठा त्यौहार ।। किसको जाकर आज दिखाए , किसने मारी लात । थर-थर कापे होंठ सभी के .... थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । ०१/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR गीत :- थर-थर कापे होंठ सभी के , कट-कट बोले दाँत । अन्न बिना सूने है दिखते , घर में अब तो जाँत । थर-थर कापे होंठ सभी के ....
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मनहरण घनाक्षरी:- आग जले घर-घर , बैठे सब घेर कर , काँप रहा थर-थर , माह दिसंबर है । भोले-भाले देखो पिया , धड़का अब तो जिया , वही मेरे प्रियतम , प्यारे पितम्बर है शादियाँ हैं जोर पर , ढूँढ़े घर वाले वर , मुझको भी याद रखो , नाम सिकंदर है । क्या-क्या और लिखे , ख़ुद का न ठौर दिखे , समय का मारा अब , देख महेन्दर है ।। १४/१२/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मनहरण घनाक्षरी:- आग जले घर-घर , बैठे सब घेर कर , काँप रहा थर-थर , माह दिसंबर है ।
Vedantika
इंसान लघुकथा आज शहर में दहशत का माहौल है। सब तरफ अफर-तफरी मची हुई है। दुकानें जलाई जा रही हैं,बसे फूंकी जा रही है।औरते और बच्चे घर में डर से थर-थर काँपते हुए दुबक गये है। Day:9 आज शहर में दहशत का माहौल है। सब तरफ अफर-तफरी मची हुई है।दुकानें जलाई जा रही हैं,बसे फूंकी जा रही है। औरते और बच्चे घर में डर से थर-थर
Vedantika
इंसान (एक माँ का फैसला) (अनुशीर्षक में) आज शहर में दहशत का माहौल है।सब तरफ अफर-तफरी मची हुई है।दुकानें जलाई जा रही हैं,बसे फूंकी जा रही है।औरते और बच्चे घर में डर से थर-थर काँपते ह
Kamaal Husain
बडी होकर करेगी क्या वो गुडिया सोंचतीं हैं अब जहाँ में फैले हैं शैतान उसको नोंच डालेंगे Read the caption.... ना देश का कानून, ना इसकी अर्थव्यवस्था, ना कोई अंगरक्षक , ना इशतेहार की व्यवस्था, ना PM, ना CM, ना DM, काम आया, ना
एक इबादत
बोस (तुम मुझे खून दो ,मै तुम्हे आजादी दूंगा) सुभाष चंद्र बोस क्रांति की वो ज्वाला थे जो करोडो़ भारतीय दिल में आग स्वतंत्रता कि लगाये थे, कांग्रेस में हड़कप मचाया, गाँधी भी आंधी से उसक
Sarita Shreyasi
"फिर, हवा की क्या गलती? बरगद ने गंभीरता से कहा, "तेरे शाख पर तेरे घोंसले की पकड़ मजबूत नहीं थी।" caption में पढ़ें बड़े दिन बाद आज हवा जोर की थी। जंगल के बड़े-बड़े पेड़, उनकी शाख-पत्ते सब झूम रहे थे। बस एक चिड़िया बेचारी डरी हुई दुबकी-सी बैठी थी। उस बड़े पेड़ की
रिंकी✍️
मेरे देश की तरफ चलने वाली बंदूक से निकलने वाली वो पहली गोली उस गोली को खाने वाला वो पहला सीना मेरा हो थर थर कांपे मेरे देश के दुश्मन उठी उंगली को नीचे कर लो जो गर अब भी न सम्भले फिर जो टूट कर बिखरेगा मेरे हाथों सुनो गौर से कही वो पहला सीना तेरा हो दोस्त बने तो हम भी अच्छे मासूम बने जो तो हम भी सच्चे जो सोच रहे हो अभिमन्यु की भांति तुमने हमको घेरा हो भूल में न रहना कही तेरे ही घर पर मुझ यमराज का पहरा हो ✍️रिंकी मेरे देश की तरफ चलने वाली बंदूक से निकलने वाली वो पहली गोली उस गोली को खाने वाला वो पहला सीना मेरा हो थर थर कांपे मेरे देश के दुश्मन उठी उ
Ek villain
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल किसानों को आश्वस्त कर रहे हैं हवा हिसार के निर्माणाधीन विमानतल से यात्री विमान बाद में चलेंगे पहले कार्गो विमान चलेगा जिससे हरियाणा के किसान अरब देशों में अपने फल और सब्जियों की बिक्री कर सकेंगे निश्चित रूप से यदि हिसार से कार्गो विमान की उड़ान आरंभ हो जाए तो हरियाणा के में किसानों के उद्यमियों व्यापारियों सब को लाभ होगा लेकिन हरियाणा में भूजल की जो स्थिति है उसे देखते हुए कितने दिनों तक खेती की जा सकती है इस पर चिंता करनी होगी मुख्यमंत्री किसानों ने जल संरक्षण पर विशेष जोर दे रहे हैं तब का विधि यानी माइक्रो इरिगेशन से जल की बचत की जा सकती है इसके साथ ही हरियाणा में भूजल के गिरते स्तर को ध्यान में रखते हुए जल संरक्षण के जितने उपाय है सभी ©Ek villain #lonelynight हरियाणा में गिरता भूजल का स्तर
Shree
जाने कसक रकीब बन फिरे तिनकों तक तहस नहस करें, थर-थर अब-तब क्या ही करें, सबसे आजाद, खुद में कैद रहें। घुटने तक डूबे क्या खैर करें, तरकश अपना, हां, तीर अपने, अपने दिल पर हर वार चले, कहो, कहां, किससे गुहार करें! किये धरती सा मजबूत सीना, यहां सागर सी व्याकुल जियूं.. धर लें माथा, कुछ आराम मिले.. इन कांधे को देख मेरा जी कहें! जाने कसक रकीब बन फिरे तिनकों तक तहस नहस करें, थर-थर अब-तब क्या ही करें, सबसे आजाद, खुद में कैद रहें। घुटने तक डूबे क्या खैर करें, तरकश अपना