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Ek villain
यूक्रेन में चल रहे रूसी हमले के बीच भारत में चिकित्सा शिक्षा को लेकर एक बड़ी बहस खड़ी हो गई है काट कर लाएंगे चिकित्सा शिक्षा के साथ आबादी और अगस्त सत्ता के अनुपात में एमबीबीएस की कम सीटें संख्या को लेकर यह सच है कि भारत में एमबीबीएस की डिग्री पाना बेहद कड़ी प्रतिस्पर्धा यह संपना परिवारिक पृष्ठभूमि से ही संभव है लेकिन यह भी देते हैं कि आजादी के बाद से देश की चिकित्सा शिक्षा राज्य को कभी गंभीरता से सुगठित करने के प्रयास ही नहीं हुए 1947 के बाद देश की आवादी तो 7 गुना बढ़ गए लेकिन मेडिकल कॉलेज नहीं हालांकि मोदी सरकार के आने के बाद चिकित्सा शिक्षा के ढांचे और नियम आरंभ हुआ है 1914 की अवधि तक फैलाना और मेडिकल कॉलेज देश के निर्णय 2015 मेडिकल कॉलेज चिकित्सा महाविद्यालयों की संख्या 586 sa8000 एमबीबीएस और पीजी सीटें उपलब्ध ©Ek villain #मेडिकल शिक्षा का कमजोर ढांचा #Moon
Ek villain
शुक्रवार के संस्करण में प्रकाशित अजय खेमरिया लिखित आलेख मेडिकल शिक्षा का कमजोर ढांचा एक प्रकार से आंखें खोलने वाला है यह दिखाता है कि स्वतंत्र के इतने दशक बीत जाने के बावजूद भारत की किस प्रकार चला गया उसमें भी देश की एक बड़ी आबादी की सहमति करने वाले उत्तर भारत के साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव या अन्याय हुआ आखिर क्या कारण है कि उत्तर प्रदेश बिहार हिमाचल हरियाणा और तमाम भारतीय राज्यों के छात्रों को सुदूर देशों में शिक्षण के लिए जाना पड़ा इससे कई तरह के नुकसान नहीं है इससे जहां में हमारी पूंजी का लाभ दूसरे देशों को मिलता है वही प्रतिभा पलायन के साथ मानव संसाधन की क्षमताओं से भी देश को हाथ धोना पड़ता है ऊपर से जिस प्रकार की परिस्थितियां इस समय यूक्रेन में निर्मित हुई है उसी उससे सरकार की उर्जा और संसाधनों को भी दूसरे देशों में मोड़ दिया है साथ ही घर वालों के लिए अलग से ही चेतना और चेतावनी का कारण बन गया जिस प्रकार देश के कॉमेडी के दौरान कई वस्तुओं के उत्पादन में आत्मनिर्भर की थी उसी प्रकार की आपदा को भी स्वास्थ्य शिक्षा के ढांचे में सुधार का अवसर बना लिया है ©Ek villain #शुद्ध स्वास्थ्य शिक्षा का ढांचा #MusicLove
Ek villain
राजीव सचान ने सामाजिक सद्भाव को संगीत चुनौती शीर्षक से लेख में अपने आलेख में हिंदू त्योहारों पर आयोजित होने वाली शुभ यात्रा पर एक वर्ग विशेष द्वारा किए जाने वाले हिंसक आक्रमण सहित समाज में बढ़ती धार्मिक कट्टरता पर गंभीर टिप्पणी की है इसमें कोई दो राय नहीं है अधिकांश मामलों में धार्मिक जुलूस के ऊपर किए जानेवाले हमले सुरोजित होते हैं सुबह यात्राओं से पहले यह जिस तरह से पत्थर डंडे और तलवार को इकट्ठा कर कर रखे हैं जिस तरह से दंगे मोहन द्वारा मोहल्ले फैमिली उससे संबंधित कोई संदेश नहीं रह जाता करौली खरगोन और 9 और 10 जैसे क्षेत्रों में यह दंगे इतनी भयानक थी कि मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में रहने वाले सैकड़ों परिवारों के साए में जी रहे हैं अच्छी बात यह है कि दंगों में शामिल रहे लोगों के धर पकड़ हो रही है उसके विरुद्ध कठोर कार्रवाई की जा रही हिंसा के आरोप लगाया गया है इसके का सवाल यह भी है कि देश भर में बढ़ रही और उनके वर्तमान किया जा सकता है ©Ek villain #बदले आई पी सी का वर्तमान ढांचा #shaadi
Srinivas
धर्म तो इंसानों का बनावटी ढांचा है, पर इंसान तो धर्म के आगे झुक जाते हैं। लड़ने से पहले वो अपने भाईचारे को नजरअंदाज कर देते हैं, जो उनका सच्चा धर्म है। ©Srinivas #Religion #religion धर्म तो इंसानों का बनावटी ढांचा है, पर इंसान तो धर्म के आगे झुक जाते हैं। लड़ने से पहले वो अपने भाईचारे को नजरअंदाज कर द
चारण गोविन्द
#हे! डायरेक्टर "हमको इस कहानी का कथानक अब समझ में आ रहा है, इंटरवेल में ही फ़िल्म का ढांचा क्यों लड़खड़ा रहा है, जो किरदार अपने रोल से पूरी फ़िल्म को उठा रहा है, पागल डायरेक्टर स्क्रिप्ट से उस एक्टर को हटा रहा है।" #चारण_गोविन्द #irfankhan #rishikapoor #हे! डायरेक्टर 'हमको इस कहानी का कथानक अब समझ में आ रहा है, इंटरवेल में ही फ़िल्म का ढांचा क्यों लड़खड़ा रहा
Bhupendra Rawat
मैंने हमेशा चुना संवाद क्योंकि अधिक देर तक मौन दीमक की भांति कुरेद देता है रिश्तों की नींव को और कर देता है, बेजान रिश्तों की ईमारत को फिर शेष मात्र रहता है,ढांचा जिसमे लग जाते है नफरतों के जाल गुज़रते वक़्त के साथ मज़बूत होते नफरतों के इस जाल में हाथ आती है,सिर्फ तन्हाई। ©Bhupendra Rawat मैंने हमेशा चुना संवाद क्योंकि अधिक देर तक मौन दीमक की भांति कुरेद देता है रिश्तों की नींव को और कर देता है, बेजान रिश्तों की ईमारत को फ
Ňěhą Chøûđhārý
दहेज: प्रथा या कलंक Read in caption 👇 - जाने कैसा बना देश का यह ढांचा है अपने गाल पर अपना ही एक तमाचा है।। बदसूरत अमीर की बेटी शान से व्याही जाती है खूबसूरत गरीब की बेटी दर दर ठोक
Tera Sukhi
किनारों की तरहां वो ख़फ़ा है मुझ से हर सांस की तरह वो जुदा है मुझ से FULL READ IN CAPTION 👇 * किनारों की तरह * किनारों की तरहां वो ख़फ़ा है मुझ से हर सांस की तरह वो जुदा है मुझ से बेज़ान जिस्म पर खुशहाली की फूल फूलों का माली आज
Vandana
लाजमी था तेरा मुकर जाना हर बातों से हर वादो से हर मुलाकात से,,, क्योंकि फितरत है इंसान की बदल जाना,,, खामोशियां बढ़ते बढ़ते खाई का रूप ले लेगी एक वक्त के बाद इतनी दूरियां हो जाएंगी,,,,, संभव ही नहीं हो पाएगा पार करना एक दूजे के लिए अजनबी से
Shubham Saxena
लोकतंत्र के पावन पर्व पर एक नई अलख जगा दो तुम, भूल के सारे भेद-भाव को "साक्षरता" को जिता दो तुम। बांटते जाएंगे ही वो तुमको राजनीति का खेल य