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तेरे बिन अधूरा सा हूं...!!❤️
"लक्ष्य" ______ राह मिलेगी चलने को साथी तुमको अनेक लेकिन लक्ष्य बनाओ,सफलता पाने को एक। बिना लक्ष्य के जीवन तुम्हारा व्यर्थ है लक्ष्य बिना जिंदगी तुम्हारी अस्त-व्यस्त है। गिरो गर कई बार तुम,बार-बार उठना सीखो सफलता मिलेगी एक दिन तुमको मन में दृढ़ संकल्प बना कर रखो। सफलता-असफलता जिंदगी का उसूल है लक्ष्य बनाकर न चलना जिंदगी की बड़ी भूल है। जिसका लक्ष्य बनाओ तुम,स्वप्न में भी वो आए तुमको रात भर जगाए लक्ष्य का याद दिलाए। || गद्यांश १ || #rzहिंदीकाव्यसम्मेलन #restzone #rzकाव्यसंरचना
Ek villain
उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का यह सुझाव की सभी सरकार जांच एजेंसी एक छात्र प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्गत सम्मिलित होने चाहिए बहुत तार्किक और महत्व है सरकार को इस जगह को तुरंत स्वीकार कर लेना चाहिए सुझाव जिस स्तर पर आया है वह देश की न्याय प्रणाली समाप्त होती है देश की प्रमुख जांच एजेंसी सीबीआई प्रवर्तन निर्धारित सीरियस पेंडिंग इन्वेस्टिगेशन संगठन नोटिफिकेशन 138 प्रशासन व्यवस्था के अंतर्गत कराए गिर जाएगी जो समय पर निर्णय लेने में सक्षम होगी और सफलतापूर्वक तिरुपति से भ्रष्टाचार को समाप्त कर और दोषी को दंड दिलवाने में बेहतर संपर्क करें काम करेगी अभी तो उलझा हुआ सरकारी तंत्र भ्रष्ट तंत्र नहीं है अगर आप देश की जनता का बहुत नुकसान हो चुका है दोषी को दंडित होने तक का महत्व और सार्थक समाप्त हो जाती है ©Ek villain #उचित सुझाव उच्चतम न्यायालय का #VantinesDay
HP
इस संसार रूपी समुद्र में असंख्य प्रकार के अत्यन्त मूल्यवान महत्वपूर्ण रत्न इंच-इंच भूमि में प्रचुर परिमाण में भरे पड़े हैं। यह रत्न राशि परमात्मा ने इस लिए बिछा रखी है कि उनका राजकुमार-मनुष्य-उसके द्वारा अपनी श्री वृद्धि करे। परन्तु यह है कि जो उन्हें प्राप्त करने की योग्यता सिद्ध करे उसे ही वे दिये जाएं। जैसे छोटे बालक को, या बुद्धिहीनों को बन्दूक नहीं सौंपी जा सकती, वैसे ही अयोग्य व्यक्तियों को यह रत्न राशि उपलब्ध नहीं होती। नाबालिगों को राज्य दरबार में अप्रमाणिक माना जाता है, उन्हें वे अधिकार नहीं मिलते जो एक साधारण नागरिक को मिलने चाहिएं किन्तु जैसे ही वह नाबालिग अपनी आवश्यकता का प्रमाण प्रस्तुत कर देता है वैसे ही उसे राज्य दरबार में प्रमाणिकता प्राप्त हो जाती है। मनुष्य की नाबालिगी उसकी लापरवाही और आलस्य है। जब तक सावधानी जागरुकता और परिश्रमशीलता जागृत नहीं होती तब तक वह नाबालिगी दूर नहीं होती और न तब तक संसार की बहुमूल्य संपदाएं प्राप्त हो सकती हैं। किन्तु जब अपनी उद्योगशीलता, परिश्रम प्रियता, जागरुकता प्रमाणित कर दी जाती है तो परमात्मा द्वारा इस सृष्टि में पग-पग पर बिछाये हुए रत्नों की राशि हमें आसानी से प्राप्त होने लगती है। अपनी योग्यताओं का प्रमाण दीजिए।