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kavi Dinesh kumar

बचपन में स्कूल गए कविता

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Anurag Stunning

बचपन kavita कविता AnuragTiwari हिंदी Poetry anuragstunning

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शीर्षक: "बचपन का सुकून"

मां बाप का दुलार था,  सारी गलतियां भी मांफ थी,
खेल खेल में बचपन बीता, नियत भी अपनी साफ थी,

रोने से सब मिल जाता था,  और हंसना मां को हंसाता था,
मैं दौड़ के गले लगा जाता था,  जब बापू दफ्तर से आता था,

अनगिनत खुशियों का भी, अपना एक बही खाता था,
खेल खेल में आपस में, वो अन बन वाला नाता था,

मिनटों में लड़भिड कर, पहला दूसरे को मनाता था,
बचपन में जो चाहा, वो बिन मांगे घर आ जाता था,

सीख सदा गलती पर मिलती, मा पापा ने हमको डांटा था,
तलाश है बस उस सुकून की, जो बचपन में मिल जाता था !!
.

©Anurag Stunning #बचपन #kavita #कविता #AnuragTiwari #हिंदी #Poetry #anuragstunning #Nojoto

KISHAN VERMA

हिंदी दिवस पर कविताहिंदी मेरा सम्मान

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Neelam Agarwal

हिंदी दिवस पर कविता #Mylanguage

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Dr Mahesh Kaushik

हिंदी दिवस पर एक कविता #Darknight

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हिंदुस्तान के माथे सजी है हिंदी
जन-जन की प्यारी बनी है हिंदी
हिंदी है मान स्वाभिमान हमारा
हिंदी है पूरे राष्ट्र की आंख का तारा
हिंदी ही है प्रेम की अविरल धारा
एकता के गीत का संगीत प्यारा
जनमानस के हृदय बसी है हिंदी।।
हिंदी हम सबका विश्वास है
विकास की आशा व प्रकाश है
खुशहाली का झरना बिंदास है
सप्त सुरों की माला यह खास है
 संस्कृति की प्रहरी बनी है हिन्दी।।
ऋषि मुनियों का आशीर्वाद है
ये वेद पुराणों का अनुवाद है
हिंदी की हुकूमत निर्विवाद है
हिंदुस्तानी दिलों का आह्लाद है
 गीता सी धरोहर बनी है हिंदी

©Dr Mahesh Kaushik हिंदी दिवस पर एक कविता
#Darknight

Kumar Pushpendra

#हर कदम पर हिंदी कविता #lunar

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दो कदम साथ चलकर तुमने
साथ चलना छोड़ दिया।
खाकर संग जीने की कसमें
तन्हा मुझको छोड़ दिया।
कसूर क्या था मेरे मासूम दिल का
जो एक पल में तोड़ दिया।
क्यो छोड़कर मेरी दुनिया
गैरों से रिश्ता जोड़ दिया।

मेरी सूनी दुनियां में तुम आज भी नज़र आते हो।
खामोश पड़े रास्तों में तुम आज भी मुस्कुराते हो।
जब निकलता हूँ तन्हा बाहर की दुनियां में
हर कदम पर तुम ही नजर आते हो।
तुम ही नजर...........

©Kumar Pushpendra #हर कदम पर हिंदी कविता

#lunar

Payal Goswami

मेरी स्वरचित कविता हिंदी दिवस पर। #poem

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चेतन घणावत स.मा.

विश्व हिंदी दिवस पर स्वरचित कविता

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kumar parth shukla

###❤️❤️हिंदी दिवस पर कविता

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✍️✍️🌹बेजुबा है,,पर न जाने क्या क्या बयां करती है, किताबे। हमें जीने का रोज नया सलीका बयां करतीहै,, किताबे हमें संस्कार सिखाती है, किताबें। हमें सही पथ पर यह ले जाती है किताबें। हर रोज नया सबक और सबब दे जाती है,, किताबें।हमे आपस में मिलकर रहना सिखाती हैं,, किताबे।🌹🌹  कवि –
                  पार्थ शुक्ला ###❤️❤️हिंदी दिवस पर कविता
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