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Arora PR
White . मेरी इन नई कवितासो क़े. जजबाती छदो को केवल वही समझ सकता है किसके ह्रदय मे जज्बातो का ज़खीरा पहले से मौजूद हो या जिसने प्रेम क़ा अर्थ समझ कर उसे जिया हो ©Arora PR जज्बाती छंद
जज्बाती छंद #कविता
read moreNilam Agarwalla
White डूबते को सहारा... दिया कीजिए l यूं मज़ा जिंदगी का लिया कीजिए।। शोहरत ही मिले.....ये जरुरी नहीं, मुफ्त में नेकियां भी किया कीजिए।। राज की बात है... खुल न जाए कहीं, दर्द का जाम छुपकर पिया कीजिए।। छोडिए.. देवता बन के क्या फायदा, आदमी की तरह ही जिया कीजिए।। जब दुआ में कभी.. हाथ दोनों उठें, दुश्मनों के लिऐ..भी दुआ कीजिए।। लक्ष्मी सेंगर "रश्मि" ©Nilam Agarwalla #गजल
Nilam Agarwalla
White दिलों के माबैन शक की दीवार हो रही है तो क्या जुदाई की राह हमवार हो रही है ज़रा सा मुझ को भी तजरबा कम है रास्ते का ज़रा सी तेरी भी तेज़ रफ़्तार हो रही है उधर से भी जो चाहिए था नहीं मिला है इधर हमारी भी उम्र बे-कार हो रही है शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है बस इक तअ'ल्लुक़ ने मेरी नींदें उड़ा रखी हैं बस इक शनासाई जाँ का आज़ार हो रही है यहाँ से क़िस्सा शुरूअ' होता है क़त्ल-ओ-ख़ूँ का यहाँ से ये दास्ताँ मज़ेदार हो रही है ये लोग दुनिया को किस तरफ़ ले के जा रहे हैं ये लोग जिन की ज़बान तलवार हो रही है शकील जमाली ©Nilam Agarwalla #गजल
S K Sachin उर्फ sachit
मेरी नई पुस्तक ©S K Sachin उर्फ sachit #गजल#पुस्तक#हिन्दी
Khan Sahab
मोहब्बत का मेरे सफर आख़िरी है, ये कागज कलम ये गजल आख़िरी है, मैं फिर ना मिलूँगा कहीं ढूंढ लेना तेरे दर्द का ये असर आख़िरी है...! ©Khan Sahab #गजल आखिरी है
#गजल आखिरी है
read moreMadhur Nayan Mishra
अब तुम्हारे प्यार के बारे में क्या कहूं? मैं तो तुम्हारे दिए ज़ख्म को भी सीने से लगा कर रखता हूं... ©Madhur Nayan Mishra #MountainPeak #शायरी #गजल
MountainPeak शायरी गजल
read moreSunil Kumar Maurya Bekhud
वही शाम वही रात वही तारे हैं मगर मायूस दिल वही नजारे हैं लगा था कल जंग जीत कर आए आज बैठे हैं जैसे जिंदगी से हारे हैं मेरी जहां से खफा हो चांद गया गम मैं डूबे मिलते नहीं किनारे हैं गुल खिले खुशबू से घुट रहा है दम आज बेखुद हमें तड़पा रही बहारें हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल
Dr. Alpana suhasini
न जाने क्या ज़माना चाहता है, मेरी ख़ुशियां मिटाना चाहता है। मेरी मासूमियत को छीन कर क्यों, मुझे शातिर बनाना चाहता है. अभी कोई कमी बाक़ी है शायद, जो फिर से आज़माना चाहता है। मिटाकर तीरगी अब ज़िन्दगी से, उजाले में वो आना चाहता है। निगाहों से लगे सीधा जिगर पर, वो इक ऐसा निशाना चाहता है । परिंदे की है बस इतनी सी ख़्वाहिश, नशेमन फिर बसाना चाहता है। अल्पना सुहासिनी ©Dr. Alpana suhasini #गजल#गजल_सृजन #
Sunil Kumar Maurya Bekhud
गजल करवट बदल बदल कर क्यूं रात बितातें हैं इक नाम क्यों जमीं पर लिखतें हैं मिटाते हैं मालूम है डगर में लुट जातें हैं मुसाफिर गर लुट गए तो फिर क्यों अब शोर मचाते हैं कट कर पतंग कोई आती न लौट करके धागे में बांध फिर क्यूं खुशियों को उड़ाते हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud #गजल