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Fun Of Sardar
Abhishek 'रैबारि' Gairola
हिमालय की गोद, वादियों की ठंडी हवा, बर्फ़ की कुशाग्र चोटियां, रमणिक पहाड़ी गांव और उनका सुस्त व श्रमिक जीवन, बूढ़ी दंतहीन दादी, गौचर, भोटिया कुकुर, पंछी, नदी, मिट्टी के मकान, चीड़, बांज और देवदार के वृक्ष, नारंगी-पीले मालटे और पुष्प। कहो सुकून क्या है? ©Abhishek 'रैबारि' Gairola हिमालय की गोद, वादियों की ठंडी हवा, बर्फ़ की कुशाग्र चोटियां, रमणिक पहाड़ी गांव और उनका सुस्त व श्रमिक जीवन, बूढ़ी दंतहीन दादी, गौचर, भोटिया
Ashutosh Kumar Upadhyay
सड़ा, गला, मटमैला, मैं कुकुरमुत्ता बिना लक्ष्य के उगा बिना खाद , बस कीचड़ से सिंचा समय, समाज की मार पर फिर भी नहीं बेकार धिक्कारा कह कर तुमने मुझे कुकुरमुत्ता पर खंडहरों में भी उग जाऊं मैं बन गुलदस्ता अपना वजूद मैं खुद बनाता हूं जहां उम्मीद भी ना हो, वहाँ मैं खिल जाता हूं सीख सको तो, मुझसे कुछ सीख लो तुम अपने जीवन में भी नया लक्ष्य खोज लो तुम सड़ा गला मटमैला मैं कुकुरमुत्ता बिना लक्ष्य के उगा बिना खाद , बस कीचड़ से सिंचा समय, समाज की मार पर फिर भी नहीं बेकार धिक्कारा कह कर
भुवनेश शर्मा
भांति-भांति के लोग धरा पर भांति-भांति का है सबका विश्वास कुकुर से भी हो जाए अगर प्यार तो उसे भी रखते हैं जीवन भर साथ ❣️❣️❣️ यह हिंदुस्तान की धरा है यहां कण-कण में ❣️❣️राम है तो हर प्राणी में भगवान है 😊😊 और प्रेम तो यहांँ सदियों-सदियों से लोगों का विश्वास है! जब कि
Harshita Dawar
कुछ वक्त का तकाज़ा ज्यादा पढ़ नहीं पाती पर मानव को बहुत पसंद करती हूं दिल से सुनती असीम गहरे निशान सा मेरे दिल को दस्तक देती उसने आवाज़ सुनते ही बस कुछ अछुई कहानी बुनती उनकी क़िताब जितनी भी हो मगर सोचती समझी एक किताब का शीर्षक ठीक मेरे पीछे लगता मेरे पूछे ही खड़े होकर आवाजे पुकारती मेरी रूह में बस उतरती उभरती जाती तार से टपकटी बूंदों में हवा से उड़ती जुल्फों को संवारती मंद मुस्कुराती अंतर से आवाज़ आती वहीं अंतिमां बन जाती अंतिमा एक किताब के गत्ते पर जो पत्ता है बस उसकी कुकुराहट मानव के कानों में गूंज बन गूंजना चाहती अंतिमा सी अंतिम श्वास में मानव को आवाज़ लगाती मानव. व व व व....... #manavkaul #realityoflife #feelings #yqbaba #yqdidi कुछ वक्त का तकाज़ा ज्यादा पढ़ नहीं पाती पर मानव को बहुत पसंद करती हूं दिल से सुनती अस
vishnu prabhakar singh
'दावत' जब से, लोगों को खिलाना-पिलाना नियम बन गया, तब से, दावत के माध्यम से ख़ुशी को दूना करना कम हो गया।जीवन के आपाधापी में दावतें आलिशान हो कर भी कंगाल होती गई, और तो और उपहार के पल्ले चढ़ गई।धनवान की दावत कतारबद्ध हो चुकी।इस परिवेश से सिमित रूप से अनछुये गांव में, आज तिलक का दावत है।गांव के अपने प्रपंच हैं! दो होनहार युवा भाई का संयुक्त तिलक का दावत। (कृपया, शेष कहानी अनुशीर्षक में पढ़ें) तिलक के दावत की प्रेसित पर पूर्णत मौखिक व्यवहार वाली सर्वमान्य निविदा प्राप्त कर लोग, सकारात्मक रूप से अच्छे दावत की अपेक्षा में ही रहेंगे।औ
vishnu prabhakar singh
मेरे कसबा में मंडी के आत्मा से देखो तो सुनिश्चित आश से सम्बोधन बाज़ार! दूर गाँव की जिजीविषा प्रतिदान की सभ्यता कुकुरमुत्ता शैली की दुकान हर ग्राहक वैश्य। पतरचट पर रख्खी मालभोग केला एक घौर, छितराया हुआ बच्चों से बहलाया हुआ उसी चट्टी पर आँचल भर मिर्च छटाक भर सोंठ भरोसे की भेंट। आगे एक मेमना अनहोनी की पूर्वाग्रह में निढ़ाल अब उसका चरवाहा बकरी नहीं पालेगा मेमना ने जो घास का मूल्य चुकाया,उसे ले अपने खून को धीरज में समेट दो कोस की पग यात्रा धीरज को शक्ति देने कल्याण के द्वार। साइकिलों में कुछ मोटर साईकिल खटकते हुए उस पर ढोंग की सवारी काज से बढ़ा भटकाव हलवाई के मुँह बोले जवांई पान,ठंडे के मक्खी। सिनेमा घर नव दम्पति के सौगंध-वचन नया सिंगार,नई वय 'इंसाफ हो के रहेगा'की लय मध्यांतर में सब साथी है पिक्चर अभी बाकी है! भारत गांवों का देश... सुदूर गांवों के प्रमंडल में एक पुरानी मंडी,'मुरलीगंज' एक जीवन रेखा!! मेरे कसबा में मंडी के आत्मा से देखो तो सुनिश्चित
Vibha Katare
बचपन की यादें.. लातूर ( महाराष्ट्र) में आए भूकंप की... पूरी रचना अनुशीर्षक में पढ़ें 🙏 ईश्वर की यह बड़ी कृपा है मुझ पर अभी तक कि मैं किसी प्राकृतिक आपदा से दो-चार नहीं हुई हूँ अभी तक ,वरन ज़िन्दगी के कई महत्वपूर्ण दौर पार कर चुकी