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Ashi Saxena
मैं चुल-बुल सी साँवली रंगत में निकलती हूँ ! दिल्ली की दिलदारी में मदहोश हुई गली-२ फ़िरती हूँ , बरेली के रंगीले झुमकों में सजती सँवरती हूँ ! हरियाणे की जाटनी सी तुझसे अखड़ इश्क़ करती हूँ , तेरे इश्क़ में मिर्ज़े मैं घणी बावरी सी फ़िरती हूँ ! मैं हीर बनूँ तुझ राँझे की यूँ इस ख़्वाहिश में सिमटी हूँ , बेशक़ तुमपे चढ़ी बंगाली जादूगरी से चिढ़ती हूँ ! बस तुमसे इश्क़ मुकम्मल होने की हसरत में लिपटी हूँ , कहीं तो थामों हाथ मेरा यूँ हर लम्हें में ठहरती हूँ ! #NojotoQuote मैं चुल-बुल सी साँवली रंगत में निकलती हूँ ! दिल्ली की दिलदारी में मदहोश हुई गली-२ फ़िरती हूँ , बरेली के रंगीले झुमकों में सजती सँवरती हूँ ! ह
Anand Kumar Ashodhiya
हरियाणे में व्याप्त कुरीति जो बीत गई वो समो पुराणी इब तेरे हाथ ना आवण की पहले से ही निश्चित तारीख सबके ऊपर जावण की मौत आवणी सबनै बेरा पर कौण मरया चाहवै सै जिसके लागै वो तन जानै हिया ऊदल कै आवै सै आँख समन्दर होज्या सै फेर सब कोए धीर बंधावै सै रिश्तेदार अगड़ पड़ोसी कोए आवै कोए जावै सै माणस घटज्या घर भी लूटज्या, रहज्या कसर खिलावण की जिस घर में कोए मृत्यु होज्या, वो दुख सबतै मोटा हो किसे कै माणस, किसे कै अन्न, किसे कै धन का टोटा हो आंख में आँसू, चढ़े कढ़ाई, चाहे बड्डा हो या छोटा हो शोक संतप्त परिवार का खाणा श्रीकृष्ण कहै खोटा हो हरियाणे में व्याप्त कुरीति, या तेहरामी पै खावण की श्रीकृष्ण नै दुर्योधन गिरफ्तार करण चाल्या था विश्वरूप देख सुदर्शन कइयां का दिल हाल्या था दुर्योधन श्रीकृष्ण नै रसोई जिमावन चाल्या था श्रीकृष्ण गए नाट खाण ते धर्म का दिया हवाला था द्वेष क्लेश में जीम रसोई राह सै पाप कमावण की मृत्यु भोज का खाणा खिलाणा हिन्दू धर्म नहीँ सै श्रुति स्मृति वेद पुराण में तेरहवां कर्म नहीँ सै ब्रह्म सूत्र और उपनिषदों में ऐसा मर्म नहीँ सै आनन्द शाहपुर इस जीवन में थोड़े भ्रम नहीं सै इस प्रथा के खिलाफ जरूरत पड़गी बिगुल बजावण की गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिया © 2021-22 ©Anand Kumar Ashodhiya हरियाणे में व्याप्त कुरीति #हरयाणवी
dance_is_something
Mr.Rana
Vote दो बात रहगी हरियाणे मैं जो सबने प्यारी लाग्गै सै कै छोरी का गात दिखाओ या बदमासी के गाणे गाओ जे अच्छी बात सुणादो तो वे सबने खारी लाग्गै सै दो बात रहगी हरियाणे मैं जो सबने प्यारी लाग्गै सै ©Mr.Rana दो बात रहगी हरियाणे मैं। #Do #sayari #poem #Poetry #dairy #voting
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त
Anuj Ray
खुशबू चरित्र की" खुशबू चरित्र की, हीरे सी चमकती है, फूलों सी महकती है। खुशबू चरित्र की, जीवन के आईने में, सूरज सी दमकती है। खुशबू चरित्र की, आदर्श भी गढ़ती है, इतिहास भी रचती है। ©Anuj Ray # खुशबू की चरित्र की"