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Satveer

समाज समाज_और_संस्कृति समाज_की_हकीकत समाज_की_कड़वी_सच्चाई

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Mahendra Jain

मर्द हो न... शायद इसीलिए 
औरत के जज्बातों से खेलना तुम्हारा शौक बन चुका है
नहीं देख सकते तुम उसको हंसते मुस्कुराते 
किसी दूसरे मर्द के साथ नहीं बर्दाश्त होता तुम्हें 
उसका किसी से बात भी करना,
पर क्यों...?
क्योंकि तुम्हारी नजर में मर्द और औरत का 
सिर्फ एक ही रिश्ता है.. 
दोस्ती जैसा शब्द शायद तुम्हारी डिक्शनरी में है ही नहीं
हर रिश्ते की बुनियाद विश्वासपर टिकी होती है 
जरा-सा मुस्कुरा कर बात कर लेने पर
किसी भी औरत पर चरित्रहीनता का आरोप लगा देना
कितना आसान है न तुम्हारे लिए

तुम्हारी घटियानूसी सोच की वजह से आधारहीन बातें
जिनका कोई वजूद नहीं होता आधार बना कर
अविश्वास व्यक्त करना बेबुनियाद शक करना शायद 
तुम्हारा स्वाभाव बन चुका है
तुम्हारा प्रेम सिर्फ वासना से लिप्त है
जिसे तुम प्रेम कहते हो वो सिर्फ देह तक सीमित है

एक औरत का प्रेम देह से परे होता है 
वो अपने प्रेम की तुलना चांद सितारों से नहीं करती
वो सिर्फ एक प्यार भरा स्पर्श चाहती है
आंखों पर जुम्बिश-ए-लब उसे अद्भुत प्रेम का अहसास कराती है

विश्वास प्रेम को बढ़ाता है अविश्वास दूरियां बढ़ाता है
प्रेम को कहना और प्रेम को जीना 
बहुत फर्क है दोनों में जिस दिन प्रेम को 
जीना सीख जाओगे न.. उस दिन अविश्वास, द्वेष और
जलन की भावना से ऊपर उठ जाओगे 
और अपनी ग्रहस्ती को सुंदर चलाओगे.. 
🙏❤💞

©Mahendra Jain #औरत #मर्द #समाज_की_हकीकत #समाजिक_परिवर्तन #समाज_कि_चरित्रहीनता #समाज

उपांशु शुक्ला

Rahul Raj Renu

स्नेह और प्रेम  दोनों की पवित्रता मधुर है।
 बराबरी के लोग इसे अपनों में  पारदर्शी रखते हैं , और यह भरोसा कहलाता है। 
जब उच्च कोटि के स्नेह हो , प्रेम की परगाड़ता अति हो जाती है , और  बात पारदर्शी करने में सक्षम ना हो सके। यह आदरणीय  कहलाता है।
 दूसरे शब्दों में पुत्र अपने पिता के लिए डर कहते हैं ।
 छात्र अपने शिक्षक के लिए सम्मान कहते है। 
एक कर्मी अपने मालिक के लिए हिचक कहते हैं। 
 एक सामान्य व्यक्ति  परम आदरणीय के लिए समर्पित भाव समर्पित भाव को दर्शाते हैं । ।

©Rahul Raj Renu #rahulrajrenu 
#समाज_और_संस्कृति 
#समाज_की_हकीकत

Sushma

Anjum Rizvi

Jagatpal Tirkey

समाज_और_संस्कृति समाज आदिवासी

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Indian Farmers/motivation

मीणा समाज समाज_और_संस्कृति

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Raju Mandloi

समाज_और_संस्कृति समाज इतिहासऔरपौराणिककथा

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*दत्तात्रेय एक अद्भुत रहस्य*
7 दिसंबर दत्त जयंती पर विशेष - रणजीत भोंसले
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अक्सर लोगों के मन में यह आता है कि सनातन धर्म में 33 कोटी देवी देवता है तो उनमें भगवान दत्तात्रेय का ऐसे क्या विशेष महत्व है ?
इसके लिए हमें कलियुग के प्रारंभ होने से पहले के समय में जाना होगा।
पृथ्वी पर जब द्वापर युग की समाप्ति और कलयुग के प्रारंभ का समय आया तब ब्रह्मा जी ने कलियुग को बुलाकर पृथ्वी लोक में जाकर अपना कार्य संभालने कहा।
कलियुग ब्रह्मा जी के सामने उपस्थित हुए एवं पृथ्वी पर जाने से मना करने लगे। कारण पूछने पर ब्रह्मा जी से कलयुग बोले कि मेरा स्वरूप आप देख रहे हैं मेरे एक हाथ में जिव्हा तो दूसरे हाथ में लिंग है।
जब मैं धरती पर जाऊंगा तो सारे जीव पर मेरे इस विग्रह का प्रभाव रहेगा। ऐसे में देवताओं और धर्म का अस्तित्व कैसे टिक पाएगा ?
तब ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हारे दुष्प्रभाव से बचने के लिए गुरु तत्व की योजना की गई है जो सतगुरु के अधीन रहेगा वह तुम्हारे दुष्प्रभाव से निकल पाएगा।
और इसके लिए गुरूवों के गुरु आदिगुरु भगवान दत्तात्रय कलियुग में धरती पर धर्म की रक्षा का भार संभालेंगे।
भगवान दत्तात्रेय ही क्यों ? दरअसल भगवान दत्तात्रेय की उत्पत्ति का मुख्य उद्देश्य ही भक्ति मार्ग पर चलने वालों को संकट से बचाना है।
सृष्टि के शुरुवात से ही जब देवी देवताओं की उत्पत्ति हुई तब से प्रत्येक देवता एक मंत्र के आधीन है अर्थात उस मंत्र का निर्धरित विधिवत जाप अनुष्ठान से उस देवता का साधक को इच्छित वर प्रदान करना अनिवार्य है भले उस वरदान का उपयोग साधक धर्म सम्मत करे अथवा धर्म के विरुद्ध करें। ब्रह्मा विष्णु महेश कोई इससे बाहर नहीं थे।
ऐसे में एक ऐसे शक्ति की आवश्यकता हुई जो सिर्फ भक्ति मार्ग से ही प्रसन्न हो किसी मंत्र या तंत्र के आधीन ना हो इसके लिए तीनो प्रमुख देवों की शक्ति को मिलाकर एक महाशक्ति के निर्माण की योजना बनी।
तब ब्रह्मा के पुत्र आचार्य अत्री को इसके लिए तपस्या का काम सौंपा गया।
आचार्य अत्री और अनुसूया ने 16 बार अलग अलग कल्प में तपस्या कर इस महाशक्ति को अपने घर में जन्म लेने का वरदान प्राप्त किया।
तय योजना अनुसार माता अनुसूया की सतीत्व की परीक्षा लेने ब्रह्मा विष्णु महेश आचार्य अत्री के घर भिक्षुक रूप में पहुंच कर माता अनुसूया से नग्न भिक्षा प्रदान करने की शर्त रखी।
आचार्य अत्री के आश्रम से कोई भिक्षु खाली हाथ नहीं लौटा था सो माता अनुसूया ने नग्न भिक्षा देना स्वीकार किया और अपने सतीत्व के बल पर तीनो देवों को बाल रूप में बदल दिया जिन्हे दूध पिला कर पालने में सुला दिया।
तीनों देवों को ढूंढते उनकी पत्नियां माता अनुसूया के आश्रम पहुंची और माता अनुसूया ने तीनो देवों के अपने गर्भ से पैदा होने के आशीर्वाद शर्त के साथ ब्रह्मा विष्णु महेश को पूर्व रूप प्रदान कर वापस किया।
कुछ दिनों में तीनो देवों ने आचार्य अत्री और माता अनुसूया के यहां ब्रह्मा विष्णु और महेश तीनो देवों की संयुक्त शक्ति अर्थात उत्पत्ति ,स्थिति और लय एकसाथ अर्थात ब्रह्मांड की महाशक्ति के रूप में जन्म हुआ। जिन्हे दत्तात्रेय के नाम से जाना जाता है।
इस अवधूत अविनाशी स्वरूप ने 12 हजार वर्षों तक गिरनार पर्वत में तपस्या की और पृथ्वी पर धर्म की रक्षा और प्रसार का संकल्प लिया।
कलियुग में भगवान दत्तात्रेय सहित कोई भी देवता पृथ्वी पर प्रत्यक्ष दर्शन नहीं दे सकता यह काल का बंधन है।
इसलिए गुरु तत्व जो अपने शिष्य से सीधे जुड़े होता है अर्थात शिष्य का गुरु उससे और उसका गुरु उससे इस मध्यम से आदिगुरु भगवान दत्तात्रय वर्तमान गुरु के माध्यम से सीधे अपने शिष्य से जुड़े होते है।
यहां यह बताना लाजमी है कि बाकी सभी भगवान साधक को जो चाहिए वह प्रदान करते है भले वो धर्म सम्मत हो अथवा ना हो उस वरदान से साधक का भला हो अथवा ना हो। 
लेकिन भगवान दत्तात्रय किसी भी भक्त को गुरु के माध्यम से वह प्रदान नही करते जो भक्त चाह रहा है बल्कि भक्त को वह प्रदान करते है जो भक्त के लिए योग्य हो। 
यह भगवान दत्तात्रेय की विशेषता है इस लोक से परलोक तक अपने भक्तो का कल्याण हो सिर्फ यही प्रदान करते है।
भगवान गणेश के पुत्र लाभ कलियुग में लाभाद महर्षि के रूप में जन्म हुआ तब उन्होंने एक विशाल यज्ञ किया जिसके कारण आंध्रप्रदेश के पीठिकापुरम में अप्पाल राजा और सुमति महारानी के यहां भगवान दत्तात्रेय ने कलियुग का प्रथम अवतार श्रीपाद श्री वल्लभ के रूप में लिया।
उस वक्त अधर्म का प्रभाव बहुत बढ़ रहा था देवताओं की शक्ति क्षीण हो रही थी मंदिर देवालयों की ऊर्जा समाप्त हो चली थी।
तब लाभाद महर्षि अगले जन्म में जब वे बपन्नाचार्यालु के नाम से जन्म लिया तब उनके माध्यम से सूर्य की शक्ति को शक्तिपात के माध्यम से श्री शैलम के शिवलिंग पर गिराया गया जिससे केदारनाथ से लेकर गोकर्ण महाबलेश्वर सहित सभी देवालयों की शक्ति बढ़ गई।
श्रीपाद श्री वल्लभ के बाद कलियुग में नरसिंह सरस्वती के नाम से उनका दूसरा अवतार हुआ। इसके बाद स्वामी समर्थ अवतार हुआ।
इस प्रकार कलियुग में भगवान दत्तात्रय करीब सवा लाख अति पावन आत्माओं को पृथ्वी पर पुनः जन्म लेने का आदेश देकर उनके माध्यम से धर्म के रास्ते पर भक्ति मार्ग से चलने वालों का कल्याण और रक्षा दोनो काम लगातार करते आ रहे। क्योंकि यही भगवान दत्तात्रेय का संकल्प भी है।
श्री गुरुदेव के चरणों में सादर समर्पित । श्री गुरुदेव दत्त ।
** Ranjeet Bhonsle
आप सभी को आज भगवान दत्तात्रेय जन्मोत्सव पर हार्दिक बधाई शुभकामनाएं 🌹🌹

©Raju Mandloi #समाज_और_संस्कृति  #समाज  #इतिहासऔरपौराणिककथा

niharika nilam singh

समाज से हम नही बनते , हमसे समाज बनता है ... यह हमारा दायित्व है कि हम समाज को बेहतर बनाने की दिशा में सदैव अग्रसर रहें । यह हम पर है कि हम उसकी प्रकृति के अनुसार परिवर्तित होने देना चाहते हैं या फिर रूढ़ियों की दीवाल खड़ी करके उसे रोके रखना चाहते हैं ... हमें इसपर विचार करना चाहिए कि हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को कैसा समाज हस्तान्तरित करना है ....
©निहारिका नीलम सिंह #समाज #समाजऔरहम #नारिसाधनानिहारिका #love for #nojoto
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