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DR. SANJU TRIPATHI
समझ सको तो बिन कहे ही समझ लो, दिल के हमारे हालात। सामने हो तुम तो रोके हम कैसे, खुद को मचल रहे हैं जज्बात। ♥️Collab with GulnaaR ..credit Pankhuri my_petals 💐नमस्कार ..मैं GulnaaR Tanha Raatein परिवार में आपका हार्दिक स्वागत करती हूँ ..ऊपर दिये गये चित्र को अपने सुंदर शब्दों से सजाये। 💐अपने भाव 2 लाईनों में लिखें .... (2 लाइन्स couplet / मिसरा ऊर्दू शायरी) 💐 Font size छोटा रखें ताकी wall
Abhishek Chakraborty (Abhi)
मिर्ज़ा ग़ालिब : "शराब पीने दे मस्ज़िद में बैठ कर, या वो जगह बता जहाँ पर ख़ुदा नहीं" इक़बाल : "मस्ज़िद ख़ुदा का घर है, कोई पीने की जगह नहीं, क़ाफ़िर के दिल में जा, वहाँ पर ख़ुदा नहीं" अहमद फ़राज़ : "क़ाफ़िर के दिल से आया हूँ मैं ये देख कर वहाँ पे जगह नहीं, ख़ुदा मौजूद है वहाँ भी, क़ाफ़िर को पता नहीं" वासी : "ख़ुदा मौजूद है पूरी दुनिया में, कहीं भी जगह नहीं, तू जन्नत में जा वहाँ पीना मना नहीं" साक़ी : "पिता हूँ ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए, और कुछ नहीं, जन्नत में कहाँ ग़म है, वहाँ पीने में मज़ा नहीं" मीर तक़ी मीर : "हम पीते हैं मज़े के लिए, बेवज़ह बदनाम ग़म है, पूरी बोतल पीकर देखो, फिर दुनिया क्या जन्नत से कम है" अभिषेक चक्रवर्ती : "क्या दुनिया क्या जन्नत क़ाफ़िर, नाहक इनमें भरमाएगा, पी ले जब तल नशा चढ़े ना, फ़िर ख़ुद ही ख़ुदा बन जाएगा" दुनिया के कुछ महान कलमकारों के साथ जुगलबंदी करनें की इक छोटी सी गुस्ताख़ी...🙏🏻 भूल-चूक माफ़...🍷😜 #शराब #ख़ुदा #दुनिया #जन्नत #क़ाफ़िर #AbhishekChakraborty (Abhi)
Abhishek Chakraborty (Abhi)
गुज़र जाते हैं ख़ूबसूरत लम्हें यूँ ही मुसाफ़िरों की तरह, और यादें वहीं रह जाती है यूँ ही क़ाफ़िरों की तरह। #ख़ूबसूरत #लम्हें #गुज़रना #मुसाफ़िर #यादें #क़ाफ़िर #AbhishekChakraborty (Abhi) *क़ाफ़िर - उपद्रवी, उत्पाती
Deepak Shah (Sw. Atmo Deep)
गेसू मेरे घनश्याम के The contribution of Kashmiri Pandit community has not been less. Who does not know about Pandit Brij Narain Chakbast, who translated Ramayana into Urdu poetry. Earlier there was Pandit Daya Shankar Kaul, a resident of Agra, who had written a Diwan (Compendium) Gulzar-i-Naseem. His Takhalus (Pen name) was Naseem. He was a Munshi in the Army. His preceptor was Khwaja haider Ali 'Atash', originally of Delhi but settled in Lucknow. When Pandit Sahib went to show him his Diwan, A
Himanshu garg
इतनी तकल्लुफ की क्या जरूरत थी अगर जाना ही था कह देती इश्क़ तुम्हारा बस चार दिन का फसाना ही था भला आसमाँ तो वहीं रहता है अमावास में भी आखिर यह सोचकर कि अगले दिन तो चाँद को आना ही था हमने भी थाम लिया अपनी ज़िन्दगी को उसी मोड़ पर अब ये मंजर हमारा किसी राहगीर को तो भाना ही था बर्बादी ने दस्तक दी राह में हम भी उसके साथ हो लिए आखिर फिर अधूरे इश्क़ को तो वापस बुलाना ही था जो गया सो गया खुदा भी गैर को चला 'क़ाफ़िर' अब ऐसे में हमें तो किसी की यादो को सहारा बनाना ही था #क़ाफ़िर
Himanshu garg
भेड़ें खुश थी देखो फिर ऊन की शाल पाकर मुर्गियां तन्दरुस्त थी अपनो का कबाब खाकर क्या खूब मंजर था उस दिन 'क़ाफ़िर' शहर में जो मुर्दे भी नाच उठे जिन्दों को मुर्दा बनाकर ख़ूब जाम लूटी सबने साक़ी को जाम पिलाकर राँझा भी नही रोया उस दिन हीर को गंवाकर नफरत जो जीत गयी थी मोहब्बत पर 'क़ाफ़िर पँछी चहचहाए बहुत शिकारी के जाल में आकर चोर खुद हंस रहे थे चौकीदारों को चोर बताकर अब्दुल्ला भी दीवाना था बेगानी शादी में जाकर जैसे तैसे जीते जरूर सारे चटोरे जंग को 'क़ाफ़िर' लड़े फिर वही राजा के चयन पर हंगामा मचाकर #क़ाफ़िर #nojoto
Himanshu garg
बहाते थे जो अमृत कभी वो कंठ अब विष के हो चुके है थे जो रिश्ते प्रीत के कभी अब वो भी रंजिश के हो चुके है। #क़ाफ़िर
Himanshu garg
काले बादल ही तो है छंट जाएंगे गम तेरे हिस्से के भी बँट जाएंगे फिर किस्मत पर क्या रोना 'क़ाफ़िर' दिन बुरे ही सही मगर कट जाएंगे। #क़ाफ़िर
Himanshu garg
हुआ तो जहान में राँझा का भी इश्क़ इख़्तिमाम है आखिर हर दास्ताँ ए इश्क़ का भी हिज्र ही अंजाम है यूँ तो कई हिस्सेदार है मेरी भी ज़िन्दगी के यहाँ पर पर फेहरिस्त में सबसे पहले आज भी तेरा ही नाम है शुरुआत तो हम दोनों की कहानी की भी खास थी आज मैं कहाँ खास तेरे लिए तू भी मेरे लिए आम है खुद्दारी के कर्ज में डूबकर इश्क़ बेच डाला हमने भी गलतफहमियों के साये में हर लम्हा हुआ नीलाम है रोया बहुत मैं भी कोई आंसू पोंछने वाला मिला नही फिर भी दर्द मेरा अल्फ़ाज़ बनकर बिका सरेआम है कब तक रहेगा भटकता यूँ इस इश्क़ की राह पर तू लौट भी आ 'क़ाफ़िर' घर को होने को आई शाम है #क़ाफ़िर
Himanshu garg
ज़िन्दा हूँ फिर भी ज़िन्दगी में गुमसुम नही अब अश्क़ ही समझो मुझे मैं तबस्सुम नही अटकता हूँ दास्तां-ए-इश्क़ अर्ज करने में क्या करूँ मैं कोई गायक की तरन्नुम नही आफ़ताब हूँ अमावास की रात का पर आम होकर भी मैं चर्ख का अंजुम नही रोज शाम बस जाम में गुज़ार देता हूँ मैं मैं हूँ 'क़ाफ़िर' आखिर तुम नही #क़ाफ़िर