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Rabindra Prasad Sinha
प्रेम अद्भुत कीमियागर है वह "मैं"को खंड खंड करके कर देता है अणु जितना सुक्ष्म और लौटा देता है प्रेमपात्र "मैं" को शुद्ध और असीम ऊर्जावान करके ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
मैं चाहता हूँ इतनी दूर जाना कि रहे वो बहुत ही पास मेरे मैं चाहता हूँ ऐसे छिप जाना कि वो हमेशा ढूंढ ले मुझे ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
The Royal's Rana
"होंगी तुम्हारे पास जमाने भर की डिग्रीया" गर किसी की छलकती आँखों को ना पढ़ सके "तो अनपढ़ हो तुम" ©Royal's Rana #ArjunLaila #अनपढ़प्रेम #डिग्रियां
#ArjunLaila #अनपढ़प्रेम #डिग्रियां
read moreRabindra Prasad Sinha
तुम आओ जैसे शिशिर के मौसम पर आता है बसंत जैसे ठूंठ पर आता है पत्ता फूल पर आता है रंंग और सुगंध फल्लियों में आता है रस महुए में आती है मादकता तुम आओ बादल की तरह और बरस जाओ मुझ पर प्यार की बारिश बन कर ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
सोचते हो भगवान की सोचो भी इंसान की आँसू हँसी की जात है क्या हिन्दू या मुसलमान की फूल हैं किसके खुशबू किसकी राम या रहमान की लूट में शामिल सब हैं भाई जय बोलो बेईमान की वो हो सिकंदर या बावर सब राह चले श्मशान की ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
मरेंगे आस्तिक भी मरेंगे नास्तिक भी आस्तिक नास्तिक दोनों मरेंगे एक दूसरे के हाथों और इन सबसे तटस्थ मरेंगे अपनी तटस्थता की अफीम चाटते हुए एक बेहोश मौत ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
अजब गजब है राम जी मेरे युग के राम जी मर्यादा है तार तार चीर हरण है राम जी स्वर्ण मृग के लालच में सीता को भूले राम जी नाव डूब रही केवट की चुप बैठे हैं राम जी बाट अहिल्या जोह रही कब आओगे राम जी ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
हृदय तब्दील हो गया है अंधेरी गुफा में मन बसेरा हो गया है कलुष के दैत्याकार डायनासोरों का आँखें हो गयी हैं निर्जल रेगिस्तान की तरह मुक्त करो हर तमस से अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो माँ ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
माँ, देखो न असत्य हो गया है कितना मोहक और मायावी इतना तार्किक और आत्मविश्वास से भरा पूरा कि सत्य परेशान है कैसे बचे वह इस बहुरूपिये से सत्यमेव जयते को विजयी भव: का आर्शिवाद दो माँ ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम
Rabindra Prasad Sinha
किसी पेड़ को आदमी नहीं आदमी के भीतर छुपी हिंसा काटती है किसी फूल को आदमी नहीं आदमी के भीतर छुपी कुरूपता तोड़ती है सबसे खतरनाक आदमी के भीतर छुपी पशुता होती है अपने पुत्रों को जागृत करो उन्हें शुचिता का वर दो माँ ©Rabindra Prasad Sinha #अनपढ़प्रेम