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usFAUJI

नशा,लाभ और देश भक्ति 
एक समय था जब छोटे बच्चे 
गुटखा, बीड़ी, सिगरेट आदि  सामग्री खरीदते थे तों दुकानदार उन्हें सामान नहीं देते थे बल्कि घर पर भी बता देते थें 
क्योंकि दुकानदार को उस समय लाभ से ज्यादा वों बच्चें छुपके से नशा ना करें।इसकी ज्यादा फ़िक्र होती थी क्योंकि वो नहीं चाहते थें कि उसके व्यक्तिगत फायदे से समाज,देश बर्बाद हो जाए। क्योंकि वों देश भक्त थे 

लेकिन आज-कल बच्चे पैदा होतें ही दुकान पर नशे की सामग्री ख़रीदने पहुंच जाएं तों दुकानदार ख़ुश होकर उसे दें देगा। क्योंकि उसे अपने लाभ की फ़िक्र है न कि उस बच्चे की और न ही समाज या देश की फ़िक्र है। इसलिए बच्चा हों या बड़ा सबकों ग्राहक ही समझते हैं और गलती से अभिभावक को पता लग जाएं और दुकानदार से पूछ लें कि आपकी दुकान से ख़रीदा है तों झूठ बोल कर उसे बचाने का काम भी करते हैं।
क्योंकि उन्हें अपना फायदा ही नज़र आता है।
सही मायने में यह भी देश या समाज की बर्बादी का रास्ता है।🤔

©usFAUJI
  #smoked नशा,लाभ और देश भक्त #नशा #लाभ #देशभक्त #usfauji #Nojoto #India #Indian  Satyaprem Upadhyay heartlessrj1297 Internet Jockey –Varsha Shukla Sudha Tripathi

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Shankar Kamble

गिरेबान मे झांक ये बंदे
टटोल अपने जमीर को
नोंक पे खडी आज जिंदगी
मीटां सरहदे लकीर को..

एक धरा है एक आसमां
पवन एकसी नदी ये जहां
सीमटे अपने आंचल मे सब
रंग वो बरखा जहां तहां..

सात रंग सी हंसी बिखरती
इंद्रधनुष की सजी कमान
हील मील सारे खीलते झुलते
ना रंजीशे खलीश ना गुमान..

जहर नफरत किसने घोला?
रंग बट गये खाली चोला
लहु लुहान हरी धरती
कही पे बारूद कही पे गोला..

भाई भाई खून के प्यासे
छाले पड गये नरम दिल से
अंगारों की ऐसी बारिश
लपटों की फरियाद किससे?

घर जलाने वालो सुनलो
लाख जतन कर धागे बुनलो
एक मजहब एक ही धरम
माटी का ऋण आज चुनलो..

©Shankar Kamble #Aasmaan #देश #देशभक्ति #देशप्रेम #देशभक्त #देशवासी #भारत #इंडिया #माती
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कवि मनोज कुमार मंजू

अपनों में भी तो कुछ थी दगा बाजियाँ
माँ के सीने पे भी तो चली आरियां
देशभक्तों की फिर भी चली टोलियाँ
इसकी खातिर चुनी घास की रोटियां
ये तिरंगा नहीं ये तो अभिमान है
आन है ये यही तो मेरी जान है।

©कवि मनोज कुमार मंजू #अपने 
#दगा 
#माँ 
#देशभक्त 
#मनोज_कुमार_मंजू 
#मँजू 
#BehtaLamha
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SumitGaurav2005

#आज़ाद #ChandraShekharAzad #ChandraShekharAzaad #देशभक्ति #देशभक्त #deshbhakk#deshbhskti #sumitkikalamse #sumitmandhana #sumitgaurav
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vivek shahu

कल को बेहतर बनाने के लिए
आज मेहनत करलो भाई🔥🙏🇮🇳

©vivek shahu
  #देशभक्त
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कुलदीप शर्मा

“जेल में बैठे आतंकी को बिरयानी देना छोड़ो जी,
सरहद पार के मेहमानों से अब गोली से ही बोलो जी।

कब तक बैठे कुर्सी पर यूं चरखा रोज़ चलाओगे,
'गांधी' को तो देख चुके अब 'बोस' को कब तुम लाओगे।”

(14/20) #भारत_माता #देशभक्त #faujikealfaaz #diltofaujihaiji #kuldeepsharma #ballpen #hindi 
YourQuote Baba  YourQuote Didi
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Nasamajh

आप सभी से अनुरोध है और 
सविनय निवेदन करता हूँ कि
कहीं भी तिंरगा अगर ज़मीं पर 
गिरा हुआ दिखें और मिलें तो 
उसे अपने हाथों से उठाकर 
किसी ऐसे निर्जन स्थान पर
रखें दें जहाँ किसी के पाँव 
तलें हमारी गौरव और गरिमा 
धूल धूसरित ना हो सकें 
आप सब से एक बार और 
हाथ जोड़ कर 🙏
नम्र निवेदन करता हूं ।।
कृपा आप अपने आसपासपास 
इस बात का ख्याल रखें ।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🇨🇮🇨🇮
जय हिन्द जय भारत ।। #देशभक्ति 
#देशप्रेम
#देशहित__सर्वोपरि 
#आन_तिरंगा_है_शान_तिरंगा_है 
#देशभक्त 
#हिंदी 
#हिंदी_साहित्य 
#हिंदीqoutes
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Nasamajh

आज हम सब ने भारत की 
72 वीं गणतंत्र  दिवस मनाईं
आज हमने बड़ी गर्व से फिर
उन शहदी योद्धा को याद किया
आज फिर से हम सब ने 
भारत की गरिमा और गौरव की 
गधा देशभक्ति से ओतप्रोत होकर
बार बार सुनी और गाई ।।

आप सभी मित्रों को
गणतंत्र दिवस की
 हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई 🎉🇨🇮🇨🇮💐💐🌺🌺
 आप सभी से अनुरोध है और 
सविनय निवेदन करता हूँ कि
कहीं भी तिंरगा अगर ज़मीं पर 
गिरा हुआ दिखें और मिलें तो 
उसे अपने हाथों से उठाकर 
किसी ऐसे निर्जन स्थान पर
रखें दें जहाँ किसी के पाँव 
तलें हमारी गौरव और गरिमा

आप सभी से अनुरोध है और सविनय निवेदन करता हूँ कि कहीं भी तिंरगा अगर ज़मीं पर गिरा हुआ दिखें और मिलें तो उसे अपने हाथों से उठाकर किसी ऐसे निर्जन स्थान पर रखें दें जहाँ किसी के पाँव तलें हमारी गौरव और गरिमा #हिंदी #देशभक्ति #देशहित #देशप्रेम #हिंदीqoutes

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आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी"

"क्यों?" (भाग - 2)

क्यों करू शुरू खुद्दारी नहीं, जिसमें बिल्कुल गद्दारी नहीं?
क्यों करू मै इपसर काम नहीं, रहना है और गुमनाम नहीं?
क्यों करू समस्या दूर नहीं, हूँ ऐसा मै मजबूर नहीं?
क्यों करू न मै इंतकाम ऐसा, जो भारत अखण्ड बनाए फिर?
क्यों करू न खुशहाली भरपूर, कि स्वर्णपक्षी उड़ पाए फिर? 

क्यों बंधू मैं ऐसी चीजों से, सूरत, आराम, लजीजों से?
क्यों बंधू मै ऐसी कटुछाया से, क्या खत्म धर्म मोहमाया से?
क्यों बंधू मै ऐसी रीति में, बाधक जो राष्ट्र की नीति में?
क्यों बंधू मै ऐसी अवगुण से, जो माँ- बहनों को छोड़े नहीं?
क्यों बंधू मै ऐसी मर्यादा से, जो दुष्कर्म- गद्दारी तोड़े नहीं? 

क्यों सहू मैं ऐसे जुल्म-सितम?, जो गलत अब उसका काम खतम।
क्यों सहूं देश में मतभेद?, बस करते रहते हो खेद।
क्यों देश है सहता मक्कारी, टुकड़े- टुकड़े की गद्दारी?
क्यों सहे देश अब ऐसी, कटुता और सामाजिक अविश्वास?
क्यों सहे अब उनका पागलपन, है नहीं देश पर जिन्हे विश्वास? 

क्यों न हो अब अभियान शुरु, "अखण्ड भारत" के बनने का?
क्यों न हो अब युद्ध शुरु सामाजिक कुरीति को हनने का?
क्यों न हो आगाज विजय का, करने को शत्रु संहार?
क्यों न हो अब अन्त बुरे का, करने को अब अन्तिम वार? 

क्यों न सोचो, क्यों न जानो, झूठ है क्या, सच्चाई क्या?
क्यों न समझो, क्यों न जाँचों, बुरा है क्या, अच्छाई क्या?
क्यों न करूं समाप्त इस कविता को, जब लगभग सत्-संग्रहण किया?
क्यों न कहूं उसे समझदार, जो समझा इसे और ग्रहण किया?

©आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी" #क्यों #राष्ट्र 
#देशभक्त #भारत
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आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी"

"क्यों?" (भाग-1)

क्यों देखूं मैं ऐसे सपने, जिन सपनों का आधार नहीं है?
क्यों करूं प्यार उनको मैं, जिनमें मेरे प्रति कोई प्यार नहीं है?
क्यों बंधू मोहमाया से मैं, जब अपना ही संसार नहीं है?
क्यों सहूं मैं ऐसी गुलामी, जिसमें खुद को कोई अधिकार नहीं है? 

क्यों बन नहीं सकते देशभक्त, जब देश चाहिए स्वास्थ-शक्त?
क्यों करते हो तुम ऐसे कर्म, जो लगते है जैसे दुष्कर्म?
क्यों करते हो मनमानी, जब प्राप्त न होगा कुछ इससे?
क्यों रह नहीं सकते मर्यादित, जो दिलाएगा सम्मान सबसे? 

क्यों देंखू लुटती मर्यादा, है पाप बढ़ा कितना ज्यादा?
क्यों देखू ऐसे सपनों को, धोखा देते उन अपनों को?
क्यों देखू ऐसी खुद्दारी, जो लगती कुछ- कुछ गद्दारी?
क्यों देखू ऐसी चीजों को, जिनका सच से संबंध नहीं?
क्यों देखूं बढ़ती अश्लीलता, भले ही लग सकता प्रतिबंध नहीं? 

क्यों देखूं देश की बदहाली, निष्प्राण होती हरियाली?
क्यों देखू जर्जर ममता को, निष्क्रिय युवा की क्षमता को?
क्यों देखूं भूखी जनता को, टूटी हुई सज्जनता को?
क्यों? बोलो ये पढ़ने वालों, क्या ये बस देखा जाएगा?
क्यों नहीं दी गई खुशहाली, ये न्याय कहाँ से आएगा? 

क्यों करी न हमने शुरु क्रांति, बस बढ़ती रहती बड़ी भ्रांति?
क्यों करी न हमने विश्व विजय, सामाजिक कुप्रवृत्ति पर जय?
क्यों करी न हमने बलिदानी, बस इसीलिए है गुमनामी?
क्यों करी न हमने विजय शुरु, उन आतंकी- गद्दारों पर?
क्यों करी न हमने मृत्यु शुरु, कमीशन- भ्रष्टाचारों पर?

©आशुतोष आर्य "हिन्दुस्तानी" #क्यों #why
#राष्ट्र #देशभक्त
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