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Ramkishor Azad
सुनो दीवानी मैं तुम्हें रंगू या फिर तुम रंग जाओगी मेरे रंग में, सौगंध शुभिरा प्रेम रंग की माही मोहिनी दीप आज़ाद जगत में! राधा जगत की प्रेम दीवानी सरिता सरोवर रोशनी हर पल हर रंग में,, प्यार की पूजा करूं बिनीता शिवाशिवानी बसते हर कण कण में!! डीयर आर एस आज़ाद... ©Ramkishor Azad #Holi #प्रेम_रंग #सरोवर #रोशनी #प्यार #मोहिनी #शायरी #rsazad #Trading #viral Swarn Deep Bogal Vinni (Payal Rai) Neetu Anupriya Nîkîtã Guptā sing with gayatri SUNIL KUMAR Nîkîtã Guptā Parul rawat Vinni (Payal Rai)
@thewriterVDS
फिर से उड़ चला रे पंछी ये कैसा, नज़रों में बसा है चेहरा ये ऐसा, चेहरे में वो जादू है चेहरा नूर जैसा, मैं तो खींचा चला रे... तेरी ओर। सागर जैसी आंखें हैं पलके हैं किनारा, देख ले जिसको ये आंखें हो जाए मतवाला, चेहरे में वो जादू है चेहरा नूर जैसा, मैं तो खींचा चला रे... तेरी ओर। होंठ गुलाबी जैसे मदिरा में हलचल, मुस्कुराहट सरोवर में खिलता हुआ कमल, चेहरे में वो जादू है चेहरा नूर जैसा, मैं तो खींचा चला रे... तेरी और।। फिर से #उड़ चला रे #पंछी ये कैसा, #नज़रों में बसा है #चेहरा ये ऐसा, चेहरे में वो #जादू है चेहरा #नूर जैसा, मैं तो खींचा चला रे... #तेरीओर। #सागर जैसी #आंखें हैं #पलके हैं #किनारा, देख ले जिसको ये आंखें हो जाए #मतवाला,
Vinni Gharami
बड़ी बेटी घर था घर में बेटी थी मैं बड़ी, तारीफ़ खुब किया करते थे घर भर में मेरी । बड़ी बेटी ऐसी हैं मानो शान्त सरोवर के जैसी हैं, ना किसी वरदान की इच्छा ना सुशील वर की कामेच्छा, बड़ी बेटी ऐसी हैं शांत सरोवर के जैसी है। सबकी सुनती हैं सहती हैं कुछ न कहती हैं, बड़ी बेटी ऐसी हैं।
Vinni Gharami
घर था घर में बेटी थी मैं बड़ी, तारीफ़ खुब किया करते थे घर भर में मेरी । बड़ी बेटी ऐसी हैं मानो शान्त सरोवर के जैसी हैं, ना किसी वरदान की इच्छा ना सुशील वर की कामेच्छा, बड़ी बेटी ऐसी हैं शांत सरोवर के जैसी है। सबकी सुनती हैं सहती हैं कुछ न कहती हैं, बड़ी बेटी ऐसी हैं। सबने मुझको महान बना डाला, मेरे सपनो को होम कर डाला। सब कहते हैं मैनै कभी कुछ जताया नही, अपने दिल का हाल बताया नही। दिल तो कहता था कहदू उनसे, बाबा कोशिश तो की थी, दिल का हाल बताने की तुमसे। में ना बोली मगर बोले मेरे जख्म थे, तुम देख न सके, मेरे अन्तरमन कि व्यथा सुन न सके। राजकुमार कहँ तुमने जो सैतान थमाया था, वो परमेश्वर नहीं दैत्य हैं दानव हैं। यह हर बार मेरी अश्रुधारा ने तुमको बताया था, लेकिन बाबा तुम समझ ना सके। में कह न पाती थी तुमसे लज्जाती थी, लेकिन तुम तो सुन पाते थे। फिर भी ना दर्द भरी पुकार न सुनी मेरी! अब जा री हू मैं मृत्यु शय्या पर, एक छोटा सा निवेदन यह रख कर। बडी को शांत सरोवर बनाया सो, परिणाम देख चुके हो तुम। अब ऐसा ना करना। बाबा छोटी को बनाना तुम वीर, न सहनी पड़े उसे पीर। दिन वो देखने न पड़े कि, जख्म उसके भी बोल पड़े। बोले उसकी बुलंद आवाज, उसे ऐसा बनाना। बाबा अबकी बार, शान्त सरोवर नही माँ दुर्गा बनाना। #bdi_beti
कुछ लम्हें ज़िन्दगी के
ख़ामोश सा हूँ मैं ! कब से ? पता नहीं ! शायद तब से जब से ख़ुद मिला था । बोलने के अरमान बहुत थे । बहुत कुछ था भी बोलने को , पर -पर क्या ? बस चुप सा होके रह गया... बचपन में दोस्त तो थे, पर वो अपनी उम्र से बड़े थे। बड़ी जल्दी ही दुनियादारी सीख गए थे और कच्ची अक्ल से पक्की बातें नहीं सीख पाया मैं ! जी तो नहीं था पर बचपन में खुद को चुप करा लिया के कोई तो मिलेगा जिसके सामने इस सरोवर का पानी खाली कर दूँगा। उम्र ढलती रही और खामोशी बढ़ती गई । पर वो क्या है न कि गर्मी में तो सरोवर से पानी भाँप बन के उड़ जाता पर पर इन बरसातों में हर बार सबर का बाँध टूट जाता... .....और एक बाढ़ आ जाती तब मैं हाँ मैं ये नहीं सोचता कि कौन है सामने दोस्त या दुश्मन बस शुरू हो जाता खाली करना खुद को। बिना सोचे नदी की तरह बह जाती मेरी खामोशी जब होश आता तो लूटा-पुटा सा किसी किनारे पे खुद की लाश उठाता । बदबू - बाढ़ का पानी उतरने के बाद कि वो बू गर्म पानी और साबुन से रगड़ के नहाने के बाद भी नाक से नहीं जाती और एक कोना पकड़ के घर का ऐसे बैठ जाता कि मानों अभी हाँ बस अभी किसी राम के प्यारे को शमसान में जला के बस लौटे हो ....... जवानी में सपना था के कुछ कर गुज़रेंगे। इस पीपल के पेड़ को भी भाग लगेगें। पर खुद के सरोवर के पानी से ये पीपल पनप नहीं पाया । मैं पीपल का वो पेड़ हो गया जिस पर कोई जल नहीं चढ़ाता था । कोई चौपाल इस पेड़ के नीचे नहीं लगती थी...... तब सोचा के शायद कोई भूत या चुड़ैल ही मिल जाए जो इस पीपल के खाली पेड़ को घर बना ले और जिसे मैं अपनी खामोशी के सरोवर का नीर पिला सकूँ । पर कोई भी ऐसा नहीं मरा को भूत बनके ही सही पर कुछ बोल तो जाता । चुप रहने की अब ऐसी आदत हो गई है कि ज़ुबाँ को सिर्फ स्वाद लेने का काम सौंप रख्खा है ,अब उसे ज्यादा तंग नहीं करता। एक दोस्त बना तो मेरा पर वो ज्यादा दिन टिक नहीं पाया गाँव के वेल्लों से सुना है, उसे ईश्क़ का रोग हुआ था.... अब कभी दिखता भी है तो नज़रे घुमा लेता है क्या करे दोस्त था न अभी भी दोस्ती निभा रहा है शायद छूत की बीमारी सा होता होगा ये ईश्क़ का रोग... आज अमावस्या है रात काली है सरोवर का पानी भी काला हो गया है मैं ख़ामोश हूँ पर आँखे नहीं मान रहीं इन्तज़ार में है कि शायद कोई प्यासा यहाँ पानी पीने चले आये .............. ©️ ✍️ सतिन्दर 09.02.18 #सतिन्दर #कहानी #खामोशी #story #चुप
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