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Yogi Sonu
Mriti_Writer_engineer
Krishnadasi Sanatani
Sita Prasad
साधना साधना से प्राप्त हुई शक्ति, स्फूर्तिपूर्वक जीवन का मूल है, साधक की परीक्षा रोज़ ही होती है, बिन भटके राह-बढ़ना ही अमूल्य है! ©Sita Prasad #yoga #sadhana #keepgoing #Nojoto
Devesh Dixit
पीढ़ी (दोहे) आज भटकती पीढियाॅं, होती हैं गुमराह। करती वह संहार है, बदले की रख चाह।। अहंकार में डूबते, समझें इसमें शान। सुने नहीं माँ बाप की, पीढ़ी है नादान।। चोट लगे अभिमान को, नहीं उन्हें मंजूर। पीढ़ी ये समझे कहाँ, सही नहीं दस्तूर।। दूजों को नीचा दिखा, करे नहीं अफसोस। पीढ़ी क्यों समझे नहीं, है गुनाह ये ठोस।। बैठ सभी अब सोचते, क्या होगा अब हाल। पीढ़ी की ये दुर्दशा, उनको नहीं मलाल।। रहा नहीं भय पाप का, करते अत्याचार। सज्जन मानव अब कहे, पीढ़ी से सब हार।। ............................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #पीढ़ी #दोहे #nojotohindi #Sadhana singh Komal patel Riti sonkar Khushi verma Brajraj Singh R K Mishra " सूर्य " @ Mukesh Khatik @ ( RJ09 ) @Aslam dasi kalaka Suraj Maurya Mukesh khatik love romance Rohit Prajapati Gurjar Bhumala Satish Thakur kgf star roky bhai
Devesh Dixit
प्रेम की परिभाषा प्रेम की परिभाषा को मैं न जानूं, पर इसकी शक्ति को ही पहचानूं। बिगड़ों को भी जो सुधारे प्रेम से, उसी प्रेम को ही मैं स्वयं में धारूं। प्रेम भाव से सबसे मिलूं मैं , उसी से ही सराबोर रहूं मैं। दिव्यता भी है उसमें अदभुत, उसका सदैव आभारी रहूं मैं। कई रिश्तों से ही जुड़ा है ये, सबसे मिला अलग नाम है ये। किस किस नाम से इसे पुकारें, सभी नामों में ही समाया है ये। ईश्वर का भी संदेश यही है, प्रेम में समाया ही वही है। प्रेम से नहीं कभी मुख मोड़ो, जीवन का सरताज यही है। गुरु से जुड़े तो ईश्वर मिल जाए, ईश्वर से जुड़े भक्ति मिल जाए। सबका ही अपना एक नाता है, उससे जुड़े तो स्वर्ग मिल जाए। ............................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #प्रेम_की_परिभाषा #nojotohindi प्रेम की परिभाषा प्रेम की परिभाषा को मैं न जानूं, पर इसकी शक्ति को ही पहचानूं। बिगड़ों को भी जो सुधारे प्रेम से, उसी प्रेम को ही मैं स्वयं में धारूं।
Devesh Dixit
इंसानियत इंसानियत लुप्त हो रहीं कहीं, हैवानियत भी पल रही वहीं। कोई किसी की मदद ना करे, संकट किसी के कोई ना हरे। मौका मिलते ही निकल पड़े, कौन किसकी मदद को खड़े। हैवानियत अब पैर पसार रही, इंसानियत को वो ललकार रही। इंसानियत मुखदर्शक बन खड़ी है, करे क्या अब यही सोच में पड़ी है। कानून व्यवस्था हाथ बांधे खड़ी है, उनको भी अब क्या किसकी पड़ी है। मुश्किल की ही तो अब ये घड़ी है, हाथों में कानून के बेड़ियां पड़ी है। हैवानियत तो अब मुंह फाड़े खड़ी है, इंसानियत के आगे विवशता बड़ी है। कैसे बढ़े मदद को इसी में उलझी है, विकट परिस्थिति है नहीं सुलझी है। तभी कहता हूं इंसानियत कहां रही है, आपसी झगड़े में लहू की धारा बही है। इंसानियत ने ही तब धोखा बहुत है खाया, जब अपनों को ही अपनों से झगड़ते पाया। इसलिए ही इंसानियत अब लुप्त हो रही, क्योंकि वो तो अपनी गरिमा को खो रही। ............................................................ देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #इंसानियत #nojotohindi इंसानियत इंसानियत लुप्त हो रहीं कहीं, हैवानियत भी पल रही वहीं। कोई किसी की मदद ना करे,
Chanchal Malhotra
भूतकाल की बातों को भुलाना ही आगे बढ़ने का साधन हैं। ©Chanchal Malhotra बातों को भूलना #vichar #bhagwad #sadhana
Devesh Dixit