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Best मोनिका Shayari, Status, Quotes, Stories

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Monika verma

बेहतरीन की तलाश में, 
इक उम्र गुजारने के बाद,
बेहतरीन पल,
बेहतरीन कल,
बेहतरीन सफर,
बेहतरीन हमसफर,
बेहतरीन जिंदगी.......
और फिर, 
ख्वाइशों की अगली सीढ़ी पर,
शुरू हो जाता हैं,
बेहतरीन से बेहतरीन, 
नुक्स निकालने का सिलसिला....
और फिर एक एक करके,
बेहतरीन जिंदगी के,
बेहतरीन सफर में,
बेहतरीन कल, 
बेहतरीन पल,
और बेहतरीन हमसफर,
सबका अंत हो जाता हैं।
        #मोनिका वर्मा
        12.01.2024

©Monika verma #poem✍🧡🧡💛 
#ankaha_ehsaas 
#ankahe_jazbat

Monika verma

समय एक अरसे से बंद पड़ी एक किताब हैं,
कहीं पर अक्षर धुंधले तो कहीं पर पन्ने खराब हैं।

पाई पाई से जुड़कर खनकते हुए ये सिक्के,
पूछते मुझसे पाई पाई का हिसाब हैं।

मिलो किसी मोड़ पर तो बन जाना अजनबी फिर से,
ये न पूछना कि नजरंदाजी किस प्रश्न का जवाब हैं।

चुप रहना कोई जुर्म कुबूल करना तो नहीं होता,
कभी परदे का ख्याल हैं तो कभी उम्र का लिहाज हैं।

चमकते शीशों में भी देखी हैं कई दरारें मैने,
निशानेबाज की मेहरबानी से उठते पत्थरों पर सवाल हैं।

तुम्हारे हुनर कौन तराशेगा इस भरी महफिल में,
नोट बिखरे तो नाचेंगे सिक्के इरशाद हैं, इरशाद हैं।
                                          #मोनिका वर्मा
                                          04.01.24

©Monika verma
  #ankaha_ehsaas 
#ankahe_alfaaz 
#ankahe_jazbat 
#poetry_by_heart 
#cold_winter

Monika verma

इक अरसे बाद बच्चे अकेले नहीं रहते हैं।
जरूरतें साथ साथ चलती हैं,
फिक्रमंद हो जाते हैं,
बाप की कमाई के लिए,
मां की दवाई के लिए,
छोटे की पढ़ाई के लिए,
इक अरसे बाद बच्चे डरना भूल जाते हैं।
अकेले चलना सीख जाते हैं,
हालातों में ढलना सीख जाते हैं,
गिरने पर चोट नहीं लगती,
अंधेरों में नींद नहीं खुलती,
खाली पेट भूख नहीं लगती, 
एक अरसे बाद बच्चे खुद बच्चे नहीं रहते हैं।
अपनी कोई ख्वाइश नहीं रहती,
किसी से कोई फरमाइश नहीं रहती,
रोने पे आंसू नहीं आते हैं,
सुबह का खाना शाम को खाते हैं,
दर्द सारे एक मौन में छुपाते हैं,
इक अरसे बाद बच्चे अकेले नहीं रहते हैं।
इक अरसे बाद बच्चे डरना भूल जाते हैं।
एक अरसे बाद बच्चे खुद बच्चे नहीं रहते हैं।
                                     #मोनिका वर्मा
                                     03.12.2023

©Monika verma #Responsibility
#experience
#child
#Expectations

Monika verma

शिकायतें

कुछ कम हो गई हैं,
कुछ थम सी गई हैं,
कुछ शिकायतें जम सी गई हैं।
कुछ आहट सी हो गई हैं,
कुछ राहत सी हो गई हैं,
कुछ शिकायतें घबराहट सी हो गई हैं।
कुछ चुप चुप सी हैं,
कुछ तार तार हो गई हैं,
कुछ तो होते हुए भी बेकार हो गई हैं।
कुछ मौन हो गई हैं,
कुछ शोर हो गई हैं,
कुछ होते होते कुछ और हो गई हैं।
कुछ गुम हो गई हैं,
कुछ आम हो गई हैं,
कुछ शिकायतें बदनाम हो गई हैं।
कुछ उलझ गई हैं,
कुछ वीरान हो गई हैं,
कुछ सुलझते सुलझते सुनसान हो गई हैं।
                        #मोनिका वर्मा

©Monika verma #शिकायतें

Monika verma

Let's pray for Afghanistan. देखो ये धरती आज लाल रंग से सज रही हैं,
घूंघट की आड़ में बिलखती हुई दुल्हन सी लग रही हैं।
काफिर हूं मैं, गुरुर करने को ये बात काफी हैं,
वरना धर्म के नाम पर कितनी लाशें कट रही हैं।
हे मानव, तेरी इंसानियत कौनसा नशा करके सो रही हैं,
देख तेरे मुल्क में बिन मौसम खून की होली हो रही हैं।
तेरी इंसानियत कौनसे मजहब के लिए बिकी हुई हैं,
कौनसे धर्म में इंसानियत की ये परिभाषा लिखी हुई हैं।
आज तेरा मजहब भी मुंह छुपा के रो रहा हैं,
कि ये कैसा तमाशा मेरे नाम पे हो रहा हैं।
                       #मोनिका वर्मा

©Monika verma #save_इंसानियत
#lets_pray_for_इंसानियत
#Afghanistan

Monika verma

जितनी बार गांव की तरफ जाती हूं,
उतनी ही बार मेरी मोहब्बत दुगुनी हो जाती हैं।
दुगुनी होती जाती है ये मोहब्बत,
मेरे गांव से,
गांव की उबड़ - खाबड़ गलियों से, 
उन कच्ची - पक्की सड़कों से, 
किसी बस के पीछे से उड़ती हुई धूल से,
बारिश और मिट्टी के संगम से पनपी हुई सौंधी खुशबू से,
और दुगुनी होती ये मोहब्बत,
अपनेपन की मिट्टी से सहेजे हुए घर से।
लेकिन गांव से शहर की ओर लौटते वक़्त, 
मोहब्बत एक कोने में सिमट कर अंगड़ाई लेने लग जाती है।
और एक नई आज़ादी का एहसास होता हैं,
आजाद होती हूं उस शहर में,
किसी रोज़ की अनचाही नसीहत से, 
कान में चुभते हुए हर मीठे तानों से,
कुछ नए पुराने मनगढ़त अफसानों से।
और आज़ाद होती हूं उस शहर में, 
कई फुसफुसाहट भरे अरमानों से।
किसी रोज़ ये सोच सोच के उलझती जाती हूं,
कि मोहब्बत को चुन लिया जाए या फिर आज़ादी को।
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"किसी रोज़ मोहब्बत चुन ली तो सपने रूठ जायेगें,
और सपनों को चुन लिया तो अपने रूठ जायेगें।"
#मोनिका वर्मा

©Monika verma #गांव_से_शहर_तक_का_सफर
#सपनों_का_सफर
#चलती_ट्रेन_का_सफर
#poetry_love 
#touchthesky

Monika verma

"इक्कीसवीं सदी का भारत"


आज भारत की बेबस तस्वीर, सूनी सड़कों पर रो रही हैं।
हे भारत माता, तेरी सरकार आज आँखे खोल कर सो रही हैं।
ये कैसा करुण दृश्य माँ, आज तेरे आँचल से झलक रहा हैं। 
वो अन्नदाता, वो धरती पुत्र, आज दाने के लिए बिलख रहा हैं।
21वीं सदी के नये भारत की नई सुबह, अंधकार से होती हैं।
जनता के जख्मों को देख कर, ये सरकार आँखे खोल कर सोती हैं।
कल की देवी, माता स्वरूपा नारी, आज कोठे पर यूँ बिकती हैं।
एक कोठे की आड़ में न जाने कितनों की रोटी सिकती हैं।
21वीं सदी की ये झांकी चीख चीख कर सबसे कहती हैं।
नंगी गरीबी और बेरोजगारी क्यूँ सड़कों पर ऐसे लेटी हैं।
आज भारत की बेबस तस्वीर, सूनी सड़कों पर रो रही हैं।
हे भारत माता, तेरी सरकार आज आँखे खोल कर सो रही हैं।
#मोनिका वर्मा

©Monika verma #21वीं_सदी
#21वीं_सदी_का_भारत

Monika verma

याद तो उसे भी बहुत आती हैं मेरी,
मगर जताना नही आता।
दर्द अकेले ही सह लेती हैं सारे,
मगर बताना नही आता।
अभी भी घर से मेरी रवानगी पर,
अपने आंसू घूँघट की आड़ में छुपा लेती हैं।
वो माँ हैं मेरी,
उसे मुझे गले लगाना नही आता।
कोशिश तो करती हैं उदासी छुपाने की,
मगर उसे छुपाना नही आता।
"मैं ठीक हूँ, मुझे कुछ नही हुआ" कहके झूठ तो बोल लेती हैं अपनी हर बीमारी में मुझसे वो,
मगर बहाना उसे कोई बनाना नही आता।
वो माँ हैं मेरी,
उसे मुझे गले लगाना नही आता।
मेरी ख़ुशी में ही हो जाती हैं इतना खुश वो,
खुद के लिए उसे सपने सजाना नही आता।
आज भी वो रो देती हैं मेरे रोने पर, 
पापा की तरह उसे हंसाना नही आता।
वो माँ हैं मेरी,
उसे मुझे गले लगाना नही आता।
मेरी फ़िकर में आंखें तो बन्द हो जाती हैं उसकी,
मगर फ़िकर में उसे सो जाना नही आता।
माथे पर चिंता की लकीरें तो आ जाती हैं कई दफा,
मगर हक उसे जताना नही आता।
वो माँ हैं मेरी,
उसे मुझे गले लगाना नही आता।
वो माँ हैं मेरी,
उसे मुझे गले लगाना नही आता।
              #मोनिका वर्मा #HappyDaughtersDay2020

Monika verma

भरी धूप में भी चलता रहता हूँ,
ये सूरज की ताप, मुझे मेरे घर के चूल्हे के आंच सी लगती हैं।
                                                         #मोनिका वर्मा #farmersprotest

Monika verma

हंसता हुआ चेहरा भी अक्सर रूठ जाता हैं,
जब इंसान अंदर ही अंदर से टूट जाता हैं।

दफन हैं एक चेहरे में लाखों किरदार यहां,
हर दफा कोई अपना ही तुम्हें लूट जाता हैं।

ज़िन्दगी की किताब की इतनी सी कहानी हैं,
पलक झपकते ही कोई पन्ना छूट जाता हैं।

ज़रूरी नहीं कि उसे सर पर ही सजा रखा हो,
ठोकर लगे तो हाथ पकड़ा घड़ा भी फूट जाता हैं।

मुमकिन नही हैं ज़िन्दगी भर का साथ यहां,
समय आने पर गर्म चाय से धुआं भी उठ जाता हैं।

नही पहचान पाते स्वाद उसका रंग देख कर,
चीनी हो या नमक, पानी में अच्छे से घुट जाता हैं।

ऐन मुमकिन हैं कि तुम हर दफा बच कर चलते रहो,
जरा सा ध्यान हटते ही वो तुम्हें कूट जाता हैं।

हंसता हुआ चेहरा भी अक्सर रूठ जाता हैं,
जब इंसान अंदर ही अंदर से टूट जाता हैं।
                            #मोनिका वर्मा #SushantSinghRajput 
#अनकहे_अल्फ़ाज़
💔💔💔
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