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Gautam_Anand
जड़ों में दीमक न लगा हो तो बूढ़ी शाख़ पे भी कोंपलें उग आती हैं बेवजह सूखे हुए पत्ते भी आवारगी के क़ायल नहीं होते #बूढ़ी शाख़
#बूढ़ी शाख़
read moreशैलेन्द्र यादव
तुम्हारे बालों को कभी मैं सहलाता था, कभी अपने मुंह पर रखकर मुंछ बनाता था, सफेद बाल ढूंढता था कभी, की तुम्हे बता सकूं की तुम, हाँ तुम्हे बता सकूं की तुम, मुझसे पहले बूढ़ी होओगी.. ओर तुम ढूंढती थी मेरा सफेद बाल, ओर फिर दोनों को कुछ न मिलता.. तुम्हारे बालों को कभी मैं सहलाता था, इतनी क्या जल्दी थी जाने की, थोड़ा बूढ़ी तो हो जाते, या मुझे कर जाते.. ©शैलेन्द्र यादव #बूढ़ी
Abundance
#बूढ़ी स्त्री आज मेडिकल शॉप पर मिली मुझे एक बूढ़ी औरत झुकी हुई पैर लड़खराते उसने मेरी हाथ पकड़ ली मैने उन्हें सहारे से दुकान की 3 सिढ़ियाँ चढ़ाई उसके काँपते हाथ साड़ी के आँचल से 500 की एक नोट निकाली मैने कहा आप यही बैठिये मैं दवा ला देती हु नोट को कितने तह में मोड़ा था उन्होंने मैं जरा ठहर गयी मैने कहा ये दवा आप खाती है उन्होंने कहा मेरे पति को हार्ट की बिमारी है मैने पूछा कोई साथ 🥺नहीं आया उन्होंने कहा बेटा सरकारी दफ़्तर में है ये नोट गुस्सै से फेक दिया बहु ने हमेशा बीमार रहते हो तुम पति पत्नी.. आज बेटा भी गुस्सै में था शायद बहु ने उसे भी कुछ बोला था, मेरे पति अब चल नहीं पाते मैं उन्हें मरते हुए नहीं देख सकती एक घर के पास का आदमी दूकान तक छोड़ गया, वो दोबारा आएगा ले जायेगा, मैने दवा दिया खरीद कर उन्होंने पैसा नहीं देने दिया.... वो मुड़े नोट अब भी मेरी नजरों में और एक सवाल अगर कोई नहीं लेने आया उन्हें.. फिर भी वो चेहरे पर उनकी हसी बेटा जाओ, तुम्हे देर होगी... यहा बीमार वो बूढ़े नहीं.... बाकी पूरा हालात और वो बच्चे.... खैर एक सीख लोग आत्मा के बिना जी रहे है.... मुर्दा बन कर.... ©Mallika #Nature
Vivek Singh
रातों की नींद और दिन का सुकून सब गिरवी हो रही है साहब, अब धीरे–धीरे ख्वाहिशें बूढ़ी और जरूरतें भी तो जवान हो रही हैं। ©Vivek Singh ... #रातों की #नींद और #दिन का #सुकून सब #गिरवी हो रही है #साहब , अब धीरे–धीरे #ख्वाहिशें #बूढ़ी और #जरूरतें भी तो #जवान हो रही हैं।
Abhishek Singh
"बूढ़ी अम्मा'' दुबला सा तन, बोझिल जीवन, लकुटी गठरी बस दो साथी। थी विकट ठंड मन तक ठिठुरन, लँगड़ा लँगड़ा वो चल पाती, सूखी काया की सिकुड़न बटुरन, देख के उनपे दया आती। गाल पिचक के सिमटे थे, लगता है किस्मत रूठी थी। पेट- पीठ में चिपका था, शायद कुछ दिन से भूखी थी। पुलिया के नीचे नुक्कड़ पे, लाठी रखके वो बैठ गयी.... बूढ़ी अम्मा..... #nojoto#poetry#बूढ़ीअम्मा.....
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