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Best पहर Shayari, Status, Quotes, Stories

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Penman

#पहर

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paras Dlonelystar

Shayar E Badnaam

हटा दे बंदिशों को वो शहर नहीं मिलता,
कहने को तो हर पहर कमाल है ज़मीन पे,
पर मिटा दे रूह को वो ज़हर नहीं मिलता..... #बंदिशें #शहर #पहर #ज़मीन #रूह #ज़हर

Shahana Parveen

रात भर आगोश में रहा उसकी मेरा वजूद
सुबह की पहर होते ही सपना वो टूट गया  #पहर
#word_of_the_day
#YQbaba
#YQDidi

Poonam

आज एक शहर
कह रहा तू ठहर

कैसे छोड़ चले तुम सफर
अभी बाकी है एक और पहर

ये माना तेरी राह है मुश्किलों से भरी
कभी धूप है चिलचिलाती
तो कभी रात है घनी

फिर भी तू रुक
पूरे कर तू अपने अधूरे काम
अपने हौसलों को जिंदा रख
सवेरा है यहां सुकून से भरा

©Poonam #पहर
#ठहर
#Ride

अँकित आजाद गुप्ता

दूनिया की उलझनों से निजात पा कर, 
रात्रि का एक पहर तन्हाइयों के नाम होता है।
©अंकित आज़ाद गुप्ता #ShiningInDark #दुनिया #उलझन  #रात्रि #एक #पहर #तन्हाई #नाम  #है 

Aditya Kumar

एक सुबह है जो होती नहीं ... app#सुबह#शाम#पहर#रात Soumya Jain Pooja Indu Anjali Kumari #SUMAN#

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#Pehlealfaaz एक सुबह है जो होती नहीं , 
एक शाम है जिसे ढलने की पड़ी है..... 

एक पहर है जो बीतता नहीं, 
एक रात है जिसे अँधेरे की पड़ी है..... एक सुबह है जो होती नहीं ... 
#Nojotoapp#सुबह#शाम#पहर#रात
 Soumya Jain Pooja Indu Anjali Kumari #suman#

Kranti Thakur

ये जो ज़िदगी है दो चार पहर
हैरान सी करती है मुझे शाम-ओ-सहर।

चंद खुशियोँ में है गुज़ारा होता
बाँकि बचता है वो ग़म का सागर।

ख़्वाहिशों का भटकना है यहाँ बेवज़ह सा
ख़्वाब आँखों में ही मरा करते अक़्सर।

मयूसियाँ ढूँढ लेती है हरेक घर का पता
सुकूँ को कैसे नहीँ मिलता है यहाँ अपना दर।

ये जो ज़िदगी है दो चार पहर
हैरान सी करती है मुझे शाम-ओ-सहर।

        - क्रांति #ज़िन्दगी

Neophyte

वो इतनी भोली है !

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वो मुझे इतनी भोली लगती है,कि
गलत खयालातों को आना भी गलत लगता है

खुदा करे ये नीयत सलामत रहे मेरी
उसका इश्क़ ही तो मेरा सरपरस्त लगता है

वो शांत बैठी हो तो सोचने लगता हूँ अपनी गलतियां
वो खुश हो तो अपना ग़म भी मस्त लगता है

एक पहर को कभी कभी वो रूबरू होती है मुझसे
मुझे बस वो एक पहर ही जन्नत लगता है! वो इतनी भोली है !

Shivam Verma

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बदल सा गया हूं
यूं ही 
 कुछ तेरे लौट के आने का 
इंतजार करते करते
बहुत कुछ सीखा मैंने 
तेरे पास होकर भी 
तुझसे दूर रहकर 
हर रात 
जो तूझसे बातों का सिलसिला था 
अब शायद
 इस डर से मेरे पास नहीं  है 
कि कहीं फिर से मुझे तेरे बिना 
 रात भर अकेले ना रोना पड़े 
बन्द कर दिया है मैंने 
हर वक्त का तुझे
 कॉल या मैसेज करना 
सोच जाता हूं कि
कहीं फिर से दखल ना पड़ जाए
 व्यस्ततम दिनचर्या में 
एक पहर का
 कुछ वक्त मांगता था तब
तुमसे 
तुम्हारे खयालों को जानने का 
पर शायद पहर भर का वो समय 
तुम्हें शहर से अलग कर देता
हां शायद मैं खुद को बदल रहा हूं 
धूल के इस  तूफान से बचने की कवायद में।
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