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Rajni kant dixit
यंहा बहुत सफर अकेले गुजारे हैं. कोई न अपना यंहा मतलब के सारे हैं.. ©Rajni kant dixit #GoodNightShayariHindi#Rajnikantdixit#poetrylovers#यंहा बहुत सफर अकेले गुजारे हैं.. #Travel
Jp arya
नाजुक सी मोहब्बत है, दुश्मन ज़माना है, ये जन्मों का रिश्ता है, पर सबसे छुपाना है, क्या तेरी मज़बूरी है, क्यों तुम्हें जाना है, ये शीशे सा दिल है, पल में बिखर जाना है, यंहा दीवानों का बस, मैखाना में ठिकाना है, खुमार मोहब्बत का, सबका उतर जाना है, अभी सबके ओठों पे, एक हसीं तराना है, फिर गीत जुदाई के, यंहा सबको गाना है, बेजां हुआ है दिल, कातिल वो पहचाना है, बिंदास शमा से, परवाने को जल जाना है, क्यों दस्तूर मोहब्बत का, ये बहुत पुराना है, आँखों के पानी को, अश्कों में बदल जाना है, Jp arya
Md Munna Reza
जब कभी भी मन उदास होता है, तन्हा होने का अहसास होता है, क्यों ख़ुशी पल में यू रूठ जाती है, ऐसा क्यों अक्सर मेरे साथ होता है, मत गिनाना ऐब किसी के भी यंहा, आइना हर किसी के पास होता है, तुम छुपा लो गुनाह चाहे कितने भी, वँहा एकदिन सबका हिसाब होता है, कैसे जाने “मन” कि कौन अपना है, यंहा हर इक चेहरे पे नकाब होता है,
mahesh....
मेरा दिल बेचैन है, नाजुक सी मोहब्बत है, दुश्मन ज़माना है,ये जन्मों का रिश्ता है, पर सबसे नाजुक सी मोहब्बत है, पत्थर सा जमाना है, जन्मों का रिश्ता है, पर सबसे छुपाना है,क्या तेरी मज़बूरी है, क्यों तुम्हें जाना है,ये शीशे सा दिल है, पल में बिखर जाना है,यंहा दीवानों का बस, मैखाना में ठिकाना है,खुमार मोहब्बत का, सबका उतर जाना है,अभी सबके ओठों पे, एक हसीं तराना है,फिर गीत जुदाई के, यंहा सबको गाना है,बेजां हुआ है दिल, कातिल वो पहचाना है,बिंदास शमा से, परवाने को जल जाना है,क्यों दस्तूर मोहब्बत का, बहुत पुराना है,आँखों के पानी को, आसुओं में बदल जाना है..... @ms shayri
Kammal Kaant Joshii
रोज़ बदलते हो लिबास यंहा इक दफ़ा क़िरदार बदल देख लो यंहा #thought #hindilines #quotes #lifequotes #life #poet #hindiwriter #writing #2liners #hindipoet #writing
Manoj Verma
एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे | तभी एक राहगीर वंहा से गुजरा तो महात्मा को नदी में नहाते देख वो उनसे कुछ पूछने के लिए रुक गया | वो संत से पूछने लगा ” महात्मन एक बात बताईये कि यंहा रहने वाले लोग कैसे है क्योंकि मैं अभी अभी इस जगह पर आया हूँ और नया होने के कारण मुझे इस जगह को कोई विशेष जानकारी नहीं है |” इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा कि ” भाई में तुम्हारे सवाल का जवाब बाद में दूंगा पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम जिस जगह से आये वो वंहा के लोग कैसे है ?” इस पर उस आदमी ने कहा “उनके बारे में क्या कहूँ महाराज वंहा तो एक से एक कपटी और दुष्ट लोग रहते है इसलिए तो उन्हें छोड़कर यंहा बसेरा करने के लिए आया हूँ |” महात्मा ने जवाब दिया बंधू ” तुम्हे इस गाँव में भी वेसे ही लोग मिलेंगे कपटी दुष्ट और बुरे |” वह आदमी आगे बढ़ गया | थोड़ी देर बाद एक और राहगीर उसी मार्ग से गुजरता है और महात्मा से प्रणाम करने के बाद कहता है ” महात्मा जी मैं इस गाँव में नया हूँ और परदेश से आया हूँ और इस ग्राम में बसने की इच्छा रखता हूँ लेकिन मुझे यंहा की कोई खास जानकारी नहीं है इसलिए आप मुझे बता सकते है ये जगह कैसे है और यंहा रहने वाले लोग कैसे है ?” महात्मा ने इस पर फिर वही प्रश्न किया और उनसे कहा कि ” मैं तुम्हारे सवाल का जवाब तो दूंगा लेकिन बाद में पहले तुम मुझे ये बताओ कि तुम पीछे से जिस देश से भी आये हो वंहा रहने वाले लोग कैसे है ??” उस व्यक्ति ने महात्मा से कहा ” गुरूजी जन्हा से मैं आया हूँ वंहा भी सभ्य सुलझे हुए और नेकदिल इन्सान रहते है मेरा वंहा से कंही और जाने का कोई मन नहीं था लेकिन व्यापार के सिलसिले में इस और आया हूँ और यंहा की आबोहवा भी मुझे भा गयी है इसलिए मेने आपसे ये सवाल पूछा था |” इस पर महात्मा ने उसे कहा बंधू ” तुम्हे यंहा भी नेकदिल और भले इन्सान मिलेंगे |” वह राहगीर भी उन्हें प्रणाम करके आगे बढ़ गया | शिष्य ये सब देख रहे थे तो उन्होंने ने उस राहगीर के जाते ही पूछा गुरूजी ये क्या अपने दोनों राहगीरों को अलग अलग जवाब दिए हमे कुछ भी समझ नहीं आया | इस पर मुस्कुराकर महात्मा बोले वत्स आमतौर पर हम आपने आस पास की चीजों को जैसे देखते है वैसे वो होती नहीं है इसलिए हम अपने अनुसार अपनी दृष्टि (point of view) से चीजों को देखते है और ठीक उसी तरह जैसे हम है | अगर हम अच्छाई देखना चाहें तो हमे अच्छे लोग मिल जायेंगे और अगर हम बुराई देखना चाहें तो हमे बुरे लोग ही मिलेंगे | सब देखने के नजरिये ( point of view in hindi ) पर निर्भर करता है । यही जिन्दगी का सार है |
Geeta Panjwani
बचपन और पहला दोस्त मिट्टी की चार ईंटे ।। यंहा वंहा से चुनकर लाया हुआ पेपर कागज कचरे सा -);; ये थी मेरी रसोई घर । बहुतछोटी थी मैं बहुत ज्यादा 3 या 4 कक्षा में ।। एक खुला सा बडा मैदान था घर के सामने कुछ दिनो से बंजारे रहने आए थे यंहा ।। कुठ नया बन रहा था उसी के मजदूर थे ।। रोज देखती थी उनकी औरते और मर्द साथ काम पे निकल जाते थे ।। उनके बच्चे मिट्टी मे खेलते रहते थे ।।मौज से मजे से ।। ये सब रोज का था ईसलिए आम लगता था एक दिन बहुत मायूस दिखे वो बच्चे ।। खेल भी नही रहे थे ।। मुझे न बचपन से ही हर बात जान ने का बडा शौक रहता है ।। पुछ लिया मैने " ऑए तूम क्यु दुखी हो ।।खेलो न खेल क्यु नही रहे ?? गरीब बेचार चुप रहे ।।जवाब न दिया ।। "बाड में जाओ "कहकर मैं निकल गई ।।। पर मुझे चैन न आया ।।।क्यूकि रो रहे थे यार दो तीन छोटे छोटे बच्चे ।। अब मैं अपने असली रूप में आ गई और गुस्से से पुछा । "बताते हो के नही "??। नही तो कल ही तूम लोगो को भगा देंगे यंहा से देख लेना ।।मेरे प्पा सेकर्टरी है सोसायटी के हमारा ही राज चलता है ।।"" मेरी धमकी काम कर गई ।। " हमारी मां रोज हमारे लिए खाना बनाके जाती है रात को बारिश की वजह से सुबस चुला जला ही नही अब हमे बहौत भुख लगी है ।।।" है भगवान ।मैं भले कितनी भी शैतान थी बचपन में पर ईस तरह किसी को भुखा नही देख सकती थी ।। " कौन कौन क्या लाएगा" मेरी टोली से पुछा ?? आता जाता हम मे से किसी को कुछ नही था पर तैयार सारे हो गए थे।।। " मीना मैं आलू लेके आती हु ।तु पौंआ ले आ ।।सीमा राई और हरा धनिया ले आ तेल मसाले सब एक एक लाओ ।। मिट्टी की चार ईंट का चुल्हा ।। थोडा सा गासलेट ।बहुत सारा कचरा ।घर के पेपर ।।। मेरी अगवानी ।।। तेल मे राई डाली ।।जल गई " अरे ईसने तो जला दिया "" उसने कहा "हा तो तू मत खाना" बोल दिया मैने ।।मेरी हुशारी तो बचपन से ही सुबानअल्लाह है ।। मुजे आज भी याद है ।।पुरे कच्चे थे आलू नमक थोडा ज्यादा था और ।।। पौंआ नही ।।पुरे पौंआ का हलवा बनाया था मैने। मुझे कूया पता पानी नही डलता ?? खैर साथ मे आलु भी उभाले ।।मैं टीम लीडर थी तो घर के सारे आलू उठा लायी थी ।। हमने उनके साथ बैठकर थोडा थोडा खाया ।। वो सचमुच बहुत भूखे थे यार ।।। हाथ से भर भर के ईतना कच्चा पक्का खाना खा गए ।।।। उनहोने खाना खाया और हम सभने मार मम्मी की ।।। अरे हा ।। सच्ची में ।। हमारी सोसायटी "तारक महेता का उलटा चश्मा " जैसी थोडे ही थी ।।। ईसलिए सबको मार मिली ।। मुझे अपनी मम्मी की मार और बाकी सारी म्मियो की डांट ।। After all leader जो ठहरे अपुन ।। पहली रसोई पे हमेशा ।। पारितोषक ।।या खरची मिले ।एसा जरूरी नही कभी कभी मार डांट भी मिलता है ।। समझा ।।।
Gokul Mukherjee
कहते जीवन मे पानी हैं। चारों तरफ़ मनमानी है। लोग यंहा के गंदे हैं । उनके काले धंदे है कुछ लोग यंहा पे आते है फिर आके चलें जाते है। कोई हँसता है कोई रोता है । फिर वो चुप हों जाता है। यही जीवन की गाथा है वास्तविकता जीवन की
singer jitu barot
एक मसला-ए-मोहब्बत, जो कभी सुलझा नही, हमने कभी कहा नही, उसने कभी समझा नही, ये इश्क में सजा रही, अब जिंदगी में मज़ा नही, जख्म कभी दिखा नही, इस दर्द की दवा नही, सजाये बहुत साज़ हमने, दिल के आशियाने में, कभी गीत कोई सुना नही, साज़ कोई बजा नही, जो मिला वो ज़मा नही, जो ज़मा वो मिला नही, यही उसकी रज़ा रही, ये “मन” कभी समझा नही नाजुक सी मोहब्बत है, दुश्मन ज़माना है, ये जन्मों का रिश्ता है, पर सबसे छुपाना है, क्या तेरी मज़बूरी है, क्यों तुम्हें जाना है, ये शीशे सा दिल है, पल में बिखर जाना है, यंहा दीवानों का बस, मैखाना में ठिकाना है, खुमार मोहब्बत का, सबका उतर जाना है, अभी सबके ओठों पे, एक हसीं तराना है, फिर गीत जुदाई के, यंहा सबको गाना है,
RoNnY RaHuL
आज यंहा बरसात हुई तो याद तेरी आई । कल तेरे यंहा हुई थी तो तुमने कहा बहुत मजा आई ।।