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Rakesh Songara
वज़ूद क्या है तेरा ,, "बेदर्द" तू कौन है,, वहम सा है तेरा होना,, एक चीख़ता सा मौन है,,, ©Rakesh Songara #वज़ूद
Kranti Thakur
बहुत मुश्किल है खुद के वजूद का बाग़ी हो जाना और अपनी ही जेहन में किसी का ग़ुलाम हो जाना हाँ तुम्हारी स्मृतियों ने मेरे मन पर जमा लिया है अपना कब्जा कुछ उसी तरह जैसे किसी विदेशी आक्रांता ने कर लिया हो किसी मुल्क पर अधिकार और मचा दिया हो भीषण नरसंहार जैसे कोई पोरस अपने ही दरबार मे किसी बंधनों में जकड़ा हो बिल्कुल उसी तरह रोज़ अपने एहसासों को बंधनों में पाता हूँ और रोज़ अपने ही हृदय में अपने ज़ज़्बातों सा कत्ल हो जाता हूँ क्षण भर को ठहरता हूँ फिर सोचता हूँ क्या संवेदनाओं को मार देने से स्मृतियों को नष्ट कर सकते हैं और क्या संवेदनाओं के कत्ल से सब कुछ पहले सा कर सकते हैं जवाब मैं नहीं जानता मग़र एक सवाल उभरता है तुम्हारे लिए! के जाने से पूर्व मेरी स्वतंत्रता तो दे जाती अपनी स्मृतियों को अपने साथ ले जाती ऐसा नहीं कि मैं इन्हें विस्मृत करने का कोई प्रयास नहीं करता मगर अपनी स्मृतियों के ख़िलाफ़ ही मैं भगत और सुभाष नही होता कुछ तो है जो अंदर ही अंदर अड़ जाता है जैसे कोई मान सिंह गैरों के लिए अपनो से लड़ जाता है और इन सबमें मेरा अंतर्मन उस राणा की तरह जीत कर भी कुछ नहीं पाता है बस हार जाता है जब खुद का वज़ूद ही बाग़ी बन जाता है - क्रांति #बाग़ी #वज़ूद
Abhit khudarvi
#OpenPoetry "मेरे वज़ूद को समझने में यू वक़्क्त जाया न करो फिर नया एक किरदार आ जायेगा ओर तुम वही उलझे रह जाओगे।" #वज़ूद
Rajesh Raana
नींव की ईंटे सबसे ज्यादा बोझ सह रही , खड़ी इमारत हमसे कह रही । दिखता वज़ूद केवल भ्रम है , जुड़े ही रहना सच्चा श्रम है। - राणा ★ © #नींव की #ईंटे सबसे ज्यादा #बोझ #सह रही , खड़ी #इमारत हमसे कह रही । दिखता #वज़ूद केवल #भ्रम है , #जुड़े ही रहना #सच्चा #श्रम है। - #राणा ★ ©
Ash Jain
एक ना एक दिन ऐश मैं भी चुप्पी तोड़ ही दूंगा इन खतरनाक दरियाओं को भी मोड़ ही दूंगा ऐ कायनात बनाने वाले तू मेरे वज़ूद की फिक्र छोड़ दे एक दिन तेरे वज़ूद की इस धरा को मैं भी छोड़ ही दूंगा
Rajesh Raana
हर आदमी अब शक के घेरे में है , इंसानियत का वजूद अब अंधेरे में है। ज़िंदा क़ौमे अब बची ही कहा है , धरती अपने आख़री फेरे में है । लंबी फेहरिस्त है जुदा जुदा कौमो की, ख़ुदा न जाने किस मज़हबी डेरे में है। इंसानियत का गला कटता यहां रोज , दरिंदे हर गली हर डगर हर बसेरे में है। किसी को चाह नही है आजकल शब की, हर किसी की ख़्वाहिश सुबह सवेरे में है। वज़ूद-ए-इंसानियत #वज़ूद #इंसानियत #आदमी #शक #कौम #मज़हब #ख़ुदा #दरिंदे #शब #सवेरा #ज़िंदा
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