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Chanchal Jaiswal

आज़ाद परिंदा था जी आया जी में बैठा था
तुमने सोचा कि पिंजरा कमाल है आलिम
टूटने का जिसके तुमको मलाल है आलिम
वो कैदी न था ये कफ़स उससे ही शाबिस्ताँ था
उसके ही इशारे पे ये मिट्टी बोलती थी
हर छोटी बड़ी शय मिट्टी के माफ़िक़ तोलती थी
बोलते थे तुम इसकी शय में बोल बड़े
करते थे ओहदों अदब के तोल-मोल बड़े
उसकी खामोशी भर में फ़लसफ़ा ये ज़ाहिर था
दिलों में बैठा वो एक कमाल शाइर था
तुम्हें था नाज़ बहुत अपनी फ़नकारी पे
मुक़म्मल जज़्ब वो अपने फ़न का माहिर था

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Chanchal Jaiswal

चल रहीं सुइयाँ घड़ी की
हर घड़ी ठहरी हुई है
स्यान मन कि स्तब्धता!
अनुभूतियाँ गहरी हुईं हैं
सुरभि का आघात कटु
व्याघात से किंचित विकट है
घट रही घटनाओं के चिरन्तन
साक्षी रक्तिम नयनघट हैं
वर्ण है ये प्रेम प्रण का
या समय का षड्यंत्र भर है
कौन सी थाती बचाने
धड़कने प्रहरी हुईं हैं?
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Chanchal Jaiswal

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शब्द निर्झर भाव निर्झर
चोट करते झरते झर-झर
मृदु हृदय के स्यान तल पर
वेगमय विप्लव निरन्तर
फूल खिलते वर्ण वर्णिम
अधर-कुंजों में निरन्तर
मौन होते समय के स्वर
नयन-घाटी में सहमकर
शून्य प्रसृत चेतना का
शून्य होना है भयंकर
भावना का रक्त होगा
खिला कहीं गुलाब बनकर
तुम ही कह दो आए कहाँ से
शूल साथ में विकसकर
रक्त का सा गन्ध होगा
और होगा हृदय चन्दन

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Chanchal Jaiswal

जीवन! नहीं प्रतीक्षा में हूँ
सच है अन्तरवीक्षा में हूँ
मन के वलयों की कक्षा में
धीरे-धीरे उतर रहा हूँ...
सीख रहा हूँ ध्वनि चिह्नों से
जीवन! पर्यवेक्षा में हूँ...
लो मैं आँखे मूँद रहा हूँ
तेरी अन्तरदीक्षा में हूँ
नहीं सजाता स्वप्न कोई मैं
सच की कठिन परीक्षा में हूँ
चंचल स्मितानन आभामय
हृदय सहज सदीच्छामय हूँ
तुम तुरीय तूर्यपुंज हो
जग की सकल तितिक्षा मैं हूँ
किन्तु मोक्ष यह जीवन मेरा
जीवन! तेरी अभीप्सा मैं हूँ
नयन काव्यशाला कवितामय
सच है सघन समीक्षा में हूँ



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Chanchal Jaiswal

जब-जब डुबाया हाथ नदी की धार में चंचल
मन की बँधी उमंगें करने लगी हलचल
कटने लगे किनारें बहने लगा अंतर
डूबने लगा अनहद मन भी अतल तल तक
जल और समय की धारा प्रवहमान निरंतर
न जाने घोर विप्लव बहा ले जाए कहाँ पर?
ये मन की उर्वरा भी विकसेगी वहीं पर!
चंचल हवा सलोनी नदी दीवाना कोई बादल!
हँस देंगे रोशनी संग जी जाएगा जीवन...
शंका के सर्प दर्प सिंह, घाती बाज़ होंगे पर
किलके जो फूल तितली मुस्कायेगी वहीं पर।
माना ये ठाँव भी है क़ातिलों का वही शहर
क़ाहिर मौत के डर से जीना छोड़ दें क्योंकर?
अपनी तो साँझ सी है ये डूबती हुई नज़र,
होने दो रात चाँद सी खिल जाए न अगर!
टूटे हुए ख़्वाबों की कश्ती है ये मगर
लहरों की शोखियों का इसपे रहा असर
तुम धार आज़माओ ये पार जाएगी ज़रूर!
जीने को ज़िन्दगी है दोस्त करना नहीं ग़ुरूर। #toyou#tome#tolife#yqlife#yqlivingon#yqmotivation#inspiringin

Chanchal Jaiswal

And here I stop 
And the idea to drop
The company of 
Those human-crops.
To leave the impulses
On a mountain top
To rely on the bosom 
Of the verdurous blue
Where the wild wind hugs
And kisses the dew
Lulls the music of
Those singing crew
It is well soothed
What heart does coo
 #toyou#tome#nature

Chanchal Jaiswal

Once you feel to sink
And a sudden blink
Challenges your wings
Don't think and rethink
Life has one more call
To reflex back and swim

 #tome#toyou#yqlife#yqmoments

Chanchal Jaiswal

उठायी ही थी कलम
मन हो रहा पुरनम
झींसी झरी रुनझुन
बरखा हुई झम-झम
जो था सो बह गया
अब क्या ही कहें हम
तकने लगी टुक-टुक
मुझको मेरी कलम
मैंने कहा अरी सुन!
कह तो रहा मौसम!
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Chanchal Jaiswal

सतरंगी बदलियाँ बारिश लिए हैं आईं
समझो न इन्हें तुम सन्देशा किसी का भाई!
कोई खत नहीं है रिमझिम! बह रही है सियाही।
अपने ही रंग में हैं, रँगना इन्हें न भाई!
बूँदों की झड़ी सरगम है गीत एक रुबाई
सुर ये भीगा-भीगा सागर की मौज आई।
सच है लहर की सीमा साहिल नहीं है भाई!
ये चाहतें ललक ये आसमाँ तलक़ हैं आई।
नाहक किसी उम्मीद में बाँधों न इसको भाई।
पल-पल तपाकर ख़ुद को हैं भाँप करके आई।
ऐसे ही नहीं इतनी ये संदल सरस है भाई!
तुमसे भी मिली हँसकर संग मेरे मुस्कुराई।
रंगधरा! तुमको सौंधी सी ये बधाई!
अनंग रंग लुटाने ये निरंग चली आईं...
सुख क्या है बिखरने में पूछो न इनसे भाई!


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Chanchal Jaiswal

लाख ठोकर खाके भी हम हैं सम्हलते ही नहीं
ज़िन्दगी से क्या गिला हम ही बदलते हैं नहीं
वक़्त के साथ बदल जाती है हर शय: वक़्त भी
जाने कहाँ ठहरे हुए हम ख़ुद ही चलते हैं नहीं
है तैरना आता बख़ूब पर लहरों से दिल की यों लगी
हम डूब जाने की ललक में पार लगते ही नहीं
हर डूबता सूरज आख़िर लिखता सबक़ तो है सही
हम चाँद के से काफ़ीरी! अल सुबह जगते ही नहीं
रात के ये ख़्वाब दिन की लौ में दमकते ही नहीं
और हम जज़्बे ख़्वाब दिन की लौ पकड़ते ही नहीं
इन सियासतदानों की नीयत बदलती भी है कहीं
और लोग ये ही सोचकर कोशिश भी करते हैं नहीं
है लुटा जाता ये दिल! वतन! और ख़्वाब भी
किस बेख़ुदी में उनसे हम दामन झटकते ही नहीं
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