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Rahul Dev

#हमर छत्तीसगढ़

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RAMESHWARI BAGHEL

#हमर छत्तीसगढ़ के चिन्हारी... #हमर संस्कृति हमर गोठ

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Gopal jha

Gopal jha

राघव रमण

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अहां सबहक संग हमर उमंग
अहा सबहक चाह हमर उत्साह
अहां सबहक प्यार हमर व्यवहार
अहां सबहक इच्छा हमर प्रतीष्ठा
अहां सबहक मान हमर सम्मान
अहां सबहक रीत हमर गीत
🙏

राघव रमण

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रही सदिखन बिसरल भटकल
अहाँ छी हमर ख्वाब प्रिये
देखु सदिखन नित नयन बसी
अहाँ छी काजर सन लगाव प्रिये
प्रेमक अहि बरखा मे देखु
अहाँ छी स्नेहक बहाव प्रिये 
करी आरम्भ अहि महोत्सव केर 
अहाँ छी शब्दक भाव प्रिये
काँट सँ भरल डंठल बनलहुँ
अहाँ छी हमर गुलाब प्रिये ।।

राघव रमण

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बेइंतहा मोहब्बत हम लिखब गायब सुनायब कविता
आऊ देखु केहन छथ हमर वनिता।।

मुस्की हुनकर एहन जेना वर्णक तरंग
नयन केर भंगिमा जेना शब्द संगम
हुनक आभा पर छलकय गजल सरिता
हम लिखब गायब सुनायब कविता।।

केश फुजल एहन जेना वर्ण विच्छेद
बांहि पसरल जेना समास'क प्रच्छेद 
हुनक चालि पर ससरय गीतक ध्वनिता
हम लिखब गायब सुनायब कविता।।

स्नेहक मूर्ति जेना उपसर्गक प्रसार
प्रीत लगवथि एना जेना प्रत्यय विचार
हुनक बोली सं निकलय पान मीठ पत्ता
हम लिखब गायब सुनायब कविता।।

देखल एक नजरि जेना पूर्णिमा केर चान
सौंसे तकितहुं हमर मोन अटकल अकान
राघव मोनक अपन गप कोना कहता 
हम लिखब गायब सुनायब कविता।।

राघव रमण

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#OpenPoetry सब रंग मे रंगायल मोनक प्रीत
बिसरल भटकायल जग केर सब रीत
अहाँ बिना जिनगी विरान भ गेलै
चली आऊ सजनी राति जवान भ गेलै ।।

ठोर परहक लाली चैन चुरावय 
आँखि के काजर हिया धडकावय
पातर कमर हमर मोन ललचावय
हाथक मेंहदी हमर आगि धधकावय
देखु देखु सेजों आब  सयान भ गेलै
चली आऊ सजनी राति जवान भ गेलै ।।

छै पसरल सौंसे स्नेहक ई झोल 
किछ अलगे आवाज मचेने अछि घोल
हवा सन सन अपन देखावैत अछि रूप
घाम पसेना सँ महकैत अछि अपन रूप
देखु देखु आब मिलन केर अवसान भय गेलै 
चली आऊ सजनी राति जवान भ गेलै ।।

भेलै मिलन के ई राति दीप सगरो जरल
वस्त्र  आभुषण आ चुडी अछि सौंसे बिखरल
ठोरक लाली मिटायल अछि केश बिखरल 
सौंसे चेहरा पर काजर केर रेस छितरल
देखु चादर बिछावन के हैवान भ गेलै
चली आऊ सजनी राति जवान भ गेलै ।।

राघव रमण

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#विभीषिका_आयल_डुबल_घर_द्वार

आकाश तकैत मोन हमर
सदिखन लटकल प्राण
कखन विधाता नोर बहेता 
डुबल घर दलान 

पहिले हवा फेर बुन्दी
तखन खसय पाथर अपार 
फेर भरल पैन सगरो
बर्षा भेल अछार 

बाट टुटलै ठाम बहलै 
गाछ वृक्ष सब दहलै
सौंसे बस एकहि आभास
पैन क' नगरी पैनक वास 

भुखल पेट सब कोय कनैये 
नेना भुटका सेहो कलपैये
विधना नजरि आब त फेरू
मोन हमर सौसे भटकैये 

कहु आब एहन भयावह
विपदा मे लोक की करतै
सबहक संग लय क चलतै 
आ कि असगरि कात मे कनतै ।।

#विधना_आब_त_कृपा_करू

#राघव_रमण

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