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ADITYA GAURAW

Ujjwal Kumar Mishra

Subham Shiv

अमित चौबे AnMoL

#कली किसी फूल की हो 
या हो किसी
पिता के आंगन के
कमबख्त #कलियुग
दोनो को डरा रहा हैं, #कलि -कलयुग
#कली -पुष्प की कली
#कलयुग #पिता  #पुत्री  #अनमोल_तुम #kaliyuga

somnath gawade

#कलियुग प्रेमपुराण

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कलियुग प्रेमपुराण

प्रेमवीर ते 'स्पर्श'पिसासू
ललना ही त्या 'संधी'साधू
खोट्या प्रेमाचे ढोंग रचती
मतलब साध्य होता डाव मोडीती.

प्रेमपीसाट मजनू सैरभैर होती
सर्व ललनांमध्ये लैला शोधती
होकारासाठी नवे खेळ मांडती
नकार ऐकता देवदास होती.

प्रेमवीरांच्या त्या खोट्या आर्त हाका,
विरहाच्या त्या व्याकुळलेल्या कथा
हव्यासापोटी दिलेल्या आणाभाका
आदर्श प्रेमी युगुलांच्या मोडतील प्रथा

प्रेमपुराण हे कलयुगात  घडते
स्वार्थ सर्वार्थ साधण्या सर्व ठरते
तारुण्याचा काळ असाच वाया जातो
मग फक्त पश्चात्तापच मागे उरतो














 #कलियुग प्रेमपुराण

Raveena

#कलियुग का धर्म# #इंसाफ का हकदार कौन है?# * एक छोटी से गांव से गुजरता हुआ हर रोज़ एक ही रेलगाड़ी जाती थी। उस रास्ते में तीन लाइन के पटरी थे। उनमें से एक लाइन खराब थी तो एक लाइनमैन वहा काम करता था। हर रोज़ कुछ बच्चे स्टेशन के पास पटरी पे खेलने आ जाते थे। स्टेशन मास्टर उन्हें बहुत समझाते की वहा खेलने न आया करे, बच्चे फिर भी न जाए तो गाड़ी चले जाने तक उन्हें रोकते फिर खेलने को इजाज़त देते थे। बच्चों को भी रेलगाड़ी आने का समय पता था। एक दिन सारे बच्चे स्टेशन से थोड़ी दूर जाकर खेलने का प्लान बनाते ह #yqhindi #राज #yqquotes #इस #yqkahani

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एक कहानी....






कौन सा धर्म.. कहा है न्याय?
     #कलियुग का धर्म#
#इंसाफ का हकदार कौन है?#
* एक छोटी से गांव से गुजरता हुआ हर रोज़ एक ही रेलगाड़ी जाती थी। उस रास्ते में तीन लाइन के पटरी थे। उनमें से एक लाइन खराब थी तो  एक लाइनमैन वहा काम करता था। हर रोज़ कुछ बच्चे स्टेशन के पास पटरी पे खेलने आ जाते थे। स्टेशन मास्टर उन्हें बहुत समझाते की वहा खेलने न आया करे, बच्चे फिर भी न जाए तो गाड़ी चले जाने तक उन्हें रोकते फिर खेलने को इजाज़त देते थे।
बच्चों को भी रेलगाड़ी आने का समय पता था। एक दिन सारे बच्चे स्टेशन से थोड़ी दूर जाकर खेलने का प्लान बनाते ह

Shankar Kamble

*कलियुगी पातकांचा* 
                  *भार दाटला भूवरी* 
       *आता धाव पांडुरंगा* 
                  *सोड भीमेची पायरी...* 

        *अग्निदिव्य रोज इथे* 
                 *सत्य,नीतीचे अघोरी* 
         *माथा उजळ फिरती* 
                *कूट, अनिती, लाचारी...* 

         *जो –तो आपली भाकरी* 
                *भाजण्यात आहे दंग* 
         *परउपकारा कोणी* 
               *गात नाही रे अभंग...* 

         *माय ,मातीचा लिलाव* 
               *किती दलाल पोसले* 
         *कुठं विकलं इमान?* 
                *तेज दानाचे लोपले...* 

      *आंधळ्या नि बहिऱ्यांची* 
               *वस्ती इथे दाटलेली* 
       *रंगा ,झेंड्यामध्ये तुझी* 
                *लेकरं रे वाटलेली...* 

        *बरबटलेले हात* 
              *मुख झाले ते मलीन* 
        *उतराई पुण्यायाची* 
              *कर पाप्यांचे क्षालन...*

©Shankar Kamble #Starss #कलियुग #पाप #पुण्य #जग #पांडूरंग #जगणं

Abundance

Abundance

#कलियुग
बहुत थका दिखता है तुम्हारा चेहरा
इतनी उम्र तो हुई नहीं........................

©Mallika #hills

Kavita Bhardwaj

घोर कलियुग ये कैसा छाया
हर घर बिक रहे जहां इंसान,
मोल रिश्तों का समझ में ना आया।

माटी के पुतले सा हो गया जीवन 
सब आदर्शों को रद्दी के भाव जलाया,
पग पग चले सब अपनी शर्तों पर
बुरे मंसूबों ने है गहरा जाल बिछाया।

समय की है ये बेबस डोर 
चार दिन की जिंदगानी
फिर भी कैसा..
 ये बेहिसाब चाहतों का शोर ।

ना करे कोई भरोसा किसी पर
ना ही दुख बंटे घर - द्वार,
चहुं ओर छलावे का परचम
अपनों पर नहीं किसी को ऐतबार।

घोर कलियुग ये कैसा छाया
एक-दूजे से ज्यादा, 
प्यारी सबको माया,
बज रहा सब तरफ लोभ का डंका
जो अब ना संभले 
तो समझो,
लग गई इंसानियत की लंका।

©Kavita Bhardwaj #घोर #कलियुग
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