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Author Munesh sharma 'Nirjhara'
क्या कहूँ..कैसे कहूँ..किससे कहूँ मैं भरा जो दिल में दर्द किससे बयाँ करूँ मैं भटकी अब तक उसकी यादों में बहुत मै नहीं समझा सकी दर्द-ए-दिल उसको मैं आखिर दिल के दर्द को अल्फ़ाजों में ढाल बैठी मैं जो कह ना सकी उससे काग़ज़ से कह बैठी मैं नहीं चाहती उसकी नज़रें करम अब मै ख़ुश हूँ अल्फ़ाजों में दर्द को बयान कर मैं...! 🌹 "प्रिय लेखकों" कृपया "Caption" को ध्यानपूर्वक पढ़े। आज के शब्द है👉 🌸"दर्द बने अल्फ़ाज़"🌸 🌻"Dard Bane Alfaaz"🌻
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read moreDR. SANJU TRIPATHI
तड़प रहे थे जिनके दीदार को हम, इमरोज दीदार-ए-यार हो गया। दिल की तड़पन मिट गई पर यार मेरा,मेरे दिल की धड़कन बढ़ा गया। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" हम अब सिर्फ आपकी मश्क़/अभ्यास के लिए आपको अल्फ़ाज़ देते रहेंगें। 👉आज की मश्क़/अभ्यास के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹"इमरोज़/امروز"🌸"Imroz"🌹
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" हम अब सिर्फ आपकी मश्क़/अभ्यास के लिए आपको अल्फ़ाज़ देते रहेंगें। 👉आज की मश्क़/अभ्यास के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹"इमरोज़/امروز"🌸"Imroz"🌹
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हमने खुद को खुद के बनाए दायरों में ही बांध रखा है। जब सोच बदलेगी, नजरिया बदलेगा तभी दायरा टूटेगा। अपने ख्वाबों को पूरा करने के लिए, खुद ऊंची उड़ान भरो। तोड़कर सारी बेड़ियों, सारे दायरों को खुद का आकाश चुनो। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌱"दायरा/دائرہ"🌱 🌿"Daayra"🌿
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌱"दायरा/دائرہ"🌱 🌿"Daayra"🌿
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आसमां के क़मर से भी प्यारा एक कमर है, जो हरदम ही मेरे पास है। आसमां का क़मर दुनियां के लिए है पर, मेरा क़मर मेरे लिए खास है। क़मर कभी ईद, कभी पूनम का, कभी करवा चौथ का बन जाता हैं मेरा क़मर बस मेरा ही है और बस मेरे ही दिल को धड़कता रहता है। चांदनी का क़मर किसी को शीतलता, किसी को व्याकुलता देता है। मेरा क़मर कभी आफताब तो, कभी मेरे लिए माहताब बन जाता है मेरा क़मर जब सजता है, पूनम का क़मर भी फीका लगने लगता है। ओढ़ता है जब वो सितारों की चुनरिया और भी खूबसूरत लगता है। खुदा सलामत रखे मेरे क़मर, मेरे प्यार को हर बुरी नजर से हरदम। जीवन भर हमारा साथ, यूं ही जन्मों जनम हमेशा बनाये रखे हरदम। -"Ek Soch" "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌻"क़मर/قمر"🌻 🌸"Qamar"🌸 👉तहरीर/मतलब- चाँद
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हया का जो पर्दा हटाया हमने, दिन में जैसे रात हो गई। आंखों से जो बरसे बादल लगा कि मानो बरसात हो गई। जी रहे थे शर्म- ओ- हया के कफस में जाने कब से हम। तूने जो गले लगाया, तो हमारी प्यार से मुलाकात हो गई। कहकशा-ए-इश्क़ जो तूने दिखाया, हमें जन्नत नसीब हो गई। तोड़ के सारे रस्मो-रिवाज की जंजीरें, मैं बस तेरी ही हो गई। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌷"हया / حیا"🌷 🌺"Hayaa"🌺 👉तहरीर/मतलब- शर्म, लज्जा
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जिंदगी हर पल ही मेरी, जहमत से जूझती रहती है। देती ना सूकून एक पल को, बस उलझती रहती है। ना कोई साथी है, ना कोई सहारा है इस राह- गुजर में मझधार में है नैया हमारी, दिखता नहीं कोई किनारा है। जिम्मेदारियों के कफस में कैद हो रह गई है जिंदगी। अपनी खातिर तो, जिंदगी की कोई आस ही ना बची है। कोई साथी मिले तो, अपनी जहमतों को बांट लें हम। उसपर यकीन कर सारी जिंदगी उसके संग काट ले हम। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹" ज़हमत / زحمت"🌹 🌷"Zahmat"🌷 👉तहरीर/मतलब= मन की परेशानी, विपदा, दर्द
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹" ज़हमत / زحمت"🌹 🌷"Zahmat"🌷 👉तहरीर/मतलब= मन की परेशानी, विपदा, दर्द
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हम खुद को समाज के अंधविश्वासी और दकियानूसी कफस से आजाद करेंगें। कोई चाहे कितनी कोशिश करे, पहरे लगा ले हम बाहर निकलने का प्रयास करेंगे। अपने हौसलों के पंखों में उड़ान भरकर ,हम कफ़स की बेड़ियों को तोड़ेंगे। ना हारेंगे, ना डरेंगे, हम अपनी जिंदगी को परतंत्रता के कफस में न छोड़ेंगे। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹"क़फ़स/قفس"🌹 🌷"Qafas"🌷 👉तहरीर/मतलब- पिंजरा, कैदखाना
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹"क़फ़स/قفس"🌹 🌷"Qafas"🌷 👉तहरीर/मतलब- पिंजरा, कैदखाना
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तुम्हें पता है तुम से बिछड़ कर क्या हुआ तुम्हारी यादों का समंदर, हिलोरे मारता रहा। साथ बिताया, हर एक पल, बेचैनियों को बढ़ाता रहा। ख्वाहिशों को खामोशियों की, भाषा सिखाता रहा। बेबसी तुम्हारे बिछड़ने की, आंसू बनकर बहती रही। दिन रात तुम्हारी यादों का जखीरा, दामन भिगोता रहा। लोग आ करके, दिल को झूठी दिलासा देकर बहलाते रहे। चुपचाप होकर दिल, मौन की चादर ओढ़ कर बैठा रहा। गर्व करो, अपने प्यार पर, देश के लिए सरहद पर था गया। आयेगा एक दिन लौट कर दिल को ढांढस बंधाता रहा। -"Ek Soch" "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌼"तुम्हें पता है तुमसे बिछड़ कर क्या हुआ"🌼🌺” تمہیں پتا ہے تُم سے بِچھڑ کر کیا ہوا"🌺 🌸"TUMHEIN PATAA HAI TUMSE BICHHAD KAR KYA HUA"🌸
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌼"तुम्हें पता है तुमसे बिछड़ कर क्या हुआ"🌼🌺” تمہیں پتا ہے تُم سے بِچھڑ کر کیا ہوا"🌺 🌸"TUMHEIN PATAA HAI TUMSE BICHHAD KAR KYA HUA"🌸
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कासिद से हम तेरे पैगाम लाने का कब तक मुसलसल तकाजा करें, खत्म कर दी तूने सारी आशाएं तेरी बेवफाई का किस से शिकवा करें। "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹"क़ासिद/قاصد"🌹 🌷"Qaasid"🌷 👉तहरीर/मतलब- संदेश वाहक, संदेशा ले जाने वाला, पत्रवाहक
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇 🌹"क़ासिद/قاصد"🌹 🌷"Qaasid"🌷 👉तहरीर/मतलब- संदेश वाहक, संदेशा ले जाने वाला, पत्रवाहक
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मुश्किलों से जब हम थे घिरे, तुमने ही था मेरा साथ निभाया। बनकर रहते थे साया मेरा, दिल से मेरे हर डर को मिटाया। जो मेरा कोई अपना ना कर सका, तुमने वह काम करके दिखाया। अपने हक के लिए लड़ना बताया, अपने दम पर जीना सिखाया। नाआश्रा थे जिंदगी में तुम मेरी, फिर भी तुमने मेरा हौसला बढ़ाया। जिंदगी को खुशियों से भर कर, तुमने जीवन को मेरे रंगीन बनाया। मर मिटे थे हम इसी हौसले पर, दुनियां से लड़ कर साथ निभाया। हमने तुम्हें दिल देकर नाआश्रा से, अपने जीवन का रहनुमा बनाया। बदलना न तुम बनाये रखना एतबार अपना, तुमने उड़ना सिखाया। दुनिया की सारी बंदिशे तोड़कर, हमने भी है तुमको अपना बनाया। -"Ek Soch" "अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇🌸"नाआश्ना/ناآشنا"🌸 🌻"Naa-aashna"🌻 👉तहरीर/मतलब- अजनबी, अपरिचित
"अजीज/प्रिय" "कातिबों/लेखकों" 👉आज की बज़्म/प्रतियोगिता के लिए आज का हमारा अल्फ़ाज़/शब्द है 👇👇👇🌸"नाआश्ना/ناآشنا"🌸 🌻"Naa-aashna"🌻 👉तहरीर/मतलब- अजनबी, अपरिचित
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