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Gurudeen Verma
शीर्षक - तुम तो सिर्फ करो वैसा, जैसा तुमसे कहता हूँ ------------------------------------------------------------------ तुम तो सिर्फ वैसा करो, जैसा तुमसे कहता हूँ। मेरी क्या है मर्जी दोस्त, और मैं क्या चाहता हूँ।। तुम तो सिर्फ करो वैसा------------------------।। मुझको जब कोई नहीं डर, तुम क्यों डरती हो ऐसे। संग तुम्हारे तो मैं हूँ , अकेली तुम हो फिर कैसे।। बिगड़ेगा कुछ नहीं तेरा, ख्याल मैं तेरा रखता हूँ। तुम तो सिर्फ वैसा करो-------------------------।। बदल अब सोच तू अपनी, तेरा कोई दोष नहीं है। दूर कर अपने वहम को, तुझपे कोई पहरा नहीं है।। खुले आसमां में तुमको, उड़ाना सच मैं चाहता हूँ। तुम तो सिर्फ वैसा करो--------------------------।। तुम्हारी इस तरहां तारीफ, यहाँ पर कौन करेगा। प्यार सच्चा तुमको ऐसे, यहाँ पर कौन करेगा।। तुमको मैं अपना साथी, सच्चे दिल से मानता हूँ। तुम तो सिर्फ वैसा करो--------------------------।। शिक्षक एवं साहित्यकार गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान) ©Gurudeen Verma #तुम तो सिर्फ़ वैसा करो,जैसा तुमसे कहता हूँ
rj ranu jain
*ऐसा करो वैसा करो,* *ये कोई ज्ञान मत बांटना!* *"अरे मुझे जिंदगी जीना है"* *तुम्हारी तरह नहीं काटना।* *ऐसा करो वैसा करो,* *ये कोई ज्ञान मत बांटना!* *"अरे मुझे जिंदगी जीना है"* *तुम्हारी तरह नहीं काटना।*
Amrit Yadav
कथा और व्यथा!
खोटा बाबा, मोटा भाई, ब्रम्हाजी याने ब्रम्ह से ब्रम्ह यानी ब्रम्हांड से मनुष्य की उत्पत्ति हुई डार्विन कौन होता है जो हमे बताए? हम मानेंगे ही नही, हमारे पूर्वज बन्दर थे ,आज तक कोई बन्दरिया आदमी को जन्म देते देखा है? क्रम विकास हुआ तो वो वैसे ही क्यों रह गये और,हम आदमी कैसे बन गये? हे मानव क्रमविकास, evolution के सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। उनका शोध आंशिक रूप से 1831 से 1836 में एचएमएस बीगल पर उनकी समुद्र यात्रा के संग्रहों पर आधारित था। इसे पढ़ना पड़ेगा! पाकिस्तान को हमसे जल्दी समझ में आ गया था। जैसी मर्जी वैसा करो। ©कथा और व्यथा! खोटा बाबा, मोटा भाई, ब्रम्हाजी याने ब्रम्ह से ब्रम्ह यानी ब्रम्हांड से मनुष्य की उत्पत्ति हुई डार्विन कौन होता है जो हमे बताए? हम मानेंगे ही
Sakshi
भाड़ में जाने दो दुनिया को और उसकी बातों को , फिक्र करों खुदकी और देखो अपने हालातों को , कई लोग आएंगे-जाएंगे जीवन में तुम्हारे , जो ठहरे तो ठीक और जो जाना चाहे तुम उसे खुशी से जाने दो , बहुत बात करते हैं लोग और देते हैं अपना ज्ञान , ऐसा करो ,वैसा करो , ये सही होगा , वो सही होगा , मेरी सुनो , मैं कहती हूँ की तुम खुद के दिल की सुनो और बाकी सबकी बातें हवा में घुल जाने दो , , तुम्हारे कदम ढूंढ लेंगे खुद तुम्हारी मंज़िल, बस अपने कदम को सही दिशा में जाने दो , बात बनायेगें लोग , सवाल उठाएंगे लोग ,क्योंकि उनका तो काम यही है , तुम उनकी बातों को इस कान से सुनो और उस कान से जाने दो , तुम अपना ध्यान रखो अपने ध्येय पर और सबको अपने ढोल बजाने दो , सुनो अपने मन की , मेहनत का हाथ थाम लो और अपनी मंज़िल को को खुद के करीब आने दो । ©Sakshi Soni भाड़ में जाने दो दुनिया को और उसकी बातों को , फिक्र करों खुदकी और देखो अपने हालातों को , कई लोग आएंगे-जाएंगे जीवन में तुम्हारे , जो ठहरे तो ठ
Pnkj Dixit
🌹मीना: एक परिचारिका सर जी! काश! मैं भी मैडम होती; खाली समय में बैठी रहती /जब मन करता पढ़ाती/ वरना आराम फरमाती /पैसों का कोई झोल ना होता/ सैलरी नियत टाइम पर आती /काश! मैं भी मैडम होती/ अब और सुनो सरजी! न चाय बनाती,ना ही पानी पिलाती/ और न ही एक आवाज पर दौड़ी जाती/ जो काम आता,वह भी नहीं कर पाती/ यहाँ आओ, ऐसा करो,वैसा करो/कोई आदेश न सुन पाती/ काश! मैं भी मैडम होती रोज सवेरे सूट-बूट में पढ़ाने आती/ सब बच्चों से घुल-मिलकर ,हँसी के ठहाके लगाती/ न आने की चिंता और ना ही जाने का गम होता/ स्कूल बस से आती और जाती/काश! मैं भी मैडम होती इतना सब सुनने के बाद ; एक अध्यापक जो कवि भी है/ मुस्कुराते हुए बड़े प्यार से कुछ यूँ बोला- अरी ओ नादान हँसमुख सुन्दर नारी! अध्यापक को आराम फरमाते हुए देखना/ मन को सचमुच बड़ा ही अच्छा लगता है/ परन्तु यह सच है ; यह पद बड़ा दूभर,जिम्मेदारी का होता है/ दृष्टि,संयम,सदाचार नियम, मीठी बोली और सुखद कदम/ शब्दों का अर्थ सटीक,अनर्थ ना हो जाए/ ध्यानपूर्वक ध्यान रखना पड़ता है/ तब कहीं जाकर अध्यापक पठन-पाठन करता है। सुनो! तुम्हारे हँसमुख मन की भोली बातें और बातों का सार इतना बतलाता हूँ - “दूर के ढोल सुहावने होते हैं” जीवन का सार समझाता हूँ ।(काव्य-संग्रह: “जीवनराग” से) २८-३०/१२/२०२२🌷👰💓💝 ...✍️ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 🌹मीना: एक परिचारिका सर जी! काश! मैं भी मैडम होती; खाली समय में बैठी रहती /जब मन करता पढ़ाती/ वरना आराम फरमाती /पैसों का कोई झोल ना होता/
Meenakshi Sethi
मैं अमृता नहीं हो सकती (Read In Caption) लेखिका होना आसान है लेकिन लिखना आसान नहीं, हर बार जब कलम उठती है तो शब्द मन से कागज़ पर आते-आते खुद ही बदल जाते हैं । उन्हें भी पता है कि ऐस
अशेष_शून्य
..... अयि गिरि नन्दिनी नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते। गिरिवर विन्ध्यशिरोधिनिवासिनी विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते। भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भ
Kaushal Kumar
दिखता नही हैं वैसा, होता है मनुज जैसा। फिर मन में रोष कैसा? सब कुछ मिले न वैसा, चाहा गया हो जैसा। फिर मन में रोष कैसा? सब कुछ हुआ न वैसा, कहते हैं लोग जैसा। फिर मन में रोष कैसा? कर्तव्य किया जैसा, परिणाम मिला वैसा। फिर मन में रोष कैसा? ............©कौशल तिवारी . . ©Kaushal Kumar #ऐसा वैसा
Naveen Bothra