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MAHENDRA SINGH PRAKHAR
Holi is a popular and significant Hindu festival celebrated as the Festival of Colours, Love, and Spring. कुण्डलिया :- होली पावन पर्व है , रहिये हिलमिल साथ । सब आ जाओ पास में , छूट न जाये हाथ ।। छूट न जाये हाथ , रहो सब इसमें चिंतित । हो खुशियां जब संग , तो जीवन हो प्रफुल्लित ।। ले लो हाथ गुलाल , आयी बच्चों की टोली । भर पिचकारी मार , कहो सब हैप्पी होली ।। रंगों में ही ढूढ़़ लो , तुम जीवन के रंग । आ जायेगा आपको , सुन जीने का ढ़ंग ।। सुन जीने का ढंग , हमें त्योहार सिखाते । होली उनमें एक , मिलन की राह बनाते ।। आज न कोई गैर , सीख लो तुम बेढंगो । सबको साथी मान , आज तुम जी भर रंगो ।। फीके सारे रंग हैं , इस होली के ग्वाल । दूर बहुत साजन बसे , कैसे करूँ धमाल ।। कैसे करूँ धमाल , प्रीति बिन फीकी होली । होते साजन पास , करते हंसी ठिठोली ।। सर्दी से बेहाल , मारता लल्ला छीके । बैठी रहूँ उदास , रंग होली के फीके ।। २२/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR कुण्डलिया :- होली पावन पर्व है , रहिये हिलमिल साथ । सब आ जाओ पास में , छूट न जाये हाथ ।। छूट न जाये हाथ , रहो सब इसमें चिंतित ।
Devesh nand Singh
ताल तलैया बाग बगीचे, पोखर खेत खलिहान हैं कहीं सुनाता मंत्र और घंटी, और कहीं अजान है
Shravan Goud
जवाब देने का मन नही किया मैं चुपचाप सुनता रहा और वह कहता रहा। दुसरे दिन वह शक्स दुनिया से चला गया। पता नहीं कब किसका बुलावा आ जाय, ंसबसे हिलमिलकर रहे।
Seema Katoch
सुनो..... बहुत खुश नज़र आ रहे हो नए घर में जो जा रहे हो... पर ये क्या..... ये क्या क्या बांध लिया तुमने वो जो कोने में बांध के रखी तुमने अपनी गलतफहमियां.... और उधर कमरे में बंधी पड़ी तुम्हारी बेचैनियां... इनको छोड़ दो पड़ा रहने दो यहीं न... नए घर में जा रहे हो नए ढ़ंग से सजा रहे हो तो क्यों बांध ली ये अपनी पुरानी नाराज़गी अब छोड़ भी दो न अपनी ये दीवानगी.... तुम बांधो बस वो पल जो बिताए यहां हिलमिल कर... वो खुशियां जो तुमने बांटी मिलकर.... बाकी सब यहीं छोड़ो पड़ा रहने दो होने दो सब यहीं दफन.... सुनो..... बहुत खुश नज़र आ रहे हो नए घर में जो जा रहे हो... पर ये क्या..... ये क्या क्या तुमने बांध लिया कैसा तुमने ये काम किया... वो जो उस क
Amar Anand
एक दिन के लिए ही सही चलो गाँव घूम आते हैं... पूरी कविता नीचे कैप्शन में... काशी से निज ग्राम प्रस्थान चलो चलें फिर से , वही गाम वही दलान जहाँ किये हमने आठों पहर गुणगान दिए हमने जहाँ सबसे कठिन इम्तिहान वही खेत वही खलिहान जहाँ नित भोर उठ.. बाग
Alok Vishwakarma "आर्ष"
सांझ ढल रवि दिन उगे, मधु नींद से सोवत जगे । मननन विवेच लिखन छके, हिलमिल जिवन चल तन थके ।। स्वर काव्य के तव गावती, चित प्यास पढ़त बुझावती । आलोक के एकात्म में, अवचेत तरण समावती ।। As you retire to your subconscious, I try depicting the phenomenon in the way I do.. deepti T Much Love 😍🐝😍 मननन - मनन कर के विवेच - विवेच
Pnkj Dixit
💞🌳💞 जीवन एक बगीचा सुमन सरीखी हँसी तुम्हारी हृदय पुष्प महकाती है। तुमको जितना महसूस करूँ तन मन उतना ही हरषाती है।। यह जीवन है एक बगीचा सुख दुःख फूल खिलते यहाँ। सर्वे भवन्तु सुखिन विचार से हिलमिल जन मिलते यहाँ।। आओ हम सब मिलजुल कर प्रेम समर्पण भाव पहचान भरें। वैदिक सनातन धर्म संस्कृति से पुण्य धर्म स्थली हिंदुस्थान करें।। १९/१०/२०२२ 🌷👰💓💝 ...✍️ कमल शर्मा'बेधड़क' ©Pnkj Dixit 💞🌳💞 जीवन एक बगीचा सुमन सरीखी हँसी तुम्हारी हृदय पुष्प महकाती है। तुमको जितना महसूस करूँ तन मन उतना ही हरषाती है।। यह जीवन है ए
Rk_karn1511 अनकही सी बातें