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Niaz (Harf)
26 jan republic day 75वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! आज सिर्फ एक दिन की छुट्टी या देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह सोचने का समय है कि हमारे देश को महान क्या बनाता है। यह वह दिन है जब हमने अपना संविधान अपनाया था, नियमों का एक सेट जो दर्शाता है कि एक स्वतंत्र भारत का सपना क्या है। तीन रंगों वाला झंडा दिखाता है कि कैसे हम सभी अलग-अलग हैं लेकिन फिर भी एक साथ हैं, हमारी आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों को धन्यवाद। एक भारतीय के रूप में, हमें अपने संविधान में महत्वपूर्ण विचारों का पालन करना चाहिए: निष्पक्षता, स्वतंत्रता, समानता और एकजुटता। आइए उन लोगों से सीखें जिन्होंने हमारे भविष्य की योजना बनाई और एक ऐसा देश बनाने का वादा किया जहां सभी के अधिकार और सम्मान सुरक्षित हों। जय हिन्द! गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! ©Niaz (Harf) 75वें गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं! आज सिर्फ एक दिन की छुट्टी या देशभक्ति का प्रदर्शन नहीं है, बल्कि यह सोचने का समय है कि हमारे देश को महान
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
Sakshi CHAUHAN
Madhubala Jain Rathod
Abasaheb Patil
Krishna Deo Prasad. ( Advocate ).
एक योजना के साथ एक मूर्ख भी , एक योजना के बिना वाले एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को हरा सकता है ! ©Krishna Deo Prasad. ( Advocate ). कोई भी व्यक्ति को हरा सकता है , अगर योजना ना हो ।
उ.सु
Narayan kharad
ज्यांना वर्चस्व सहन होत नसते, ते वर्चस्व मान्य करत नसतात. ©Narayan kharad #मराठीविचार #मराठीकविता #मराठीशायरी #महाराष्ट्र #मराठा
Krishnadasi Sanatani
कर्मों की सज़ा भोज के लिए एक व्यक्ति ने एक बार एक बकरे की बलि चढ़ाने की तैयारी आरम्भ की। उसके बेटे बकरे को नदी में स्नान कराने ले गये। नहाने के समय बकरा एकाएक बडी जोर से हँसने लगा; फिर तत्काल दुःख के आँसू बहाने लगा। उसके विचित्र व्यवहार से चकित हो कर बेटों ने उससे जब ऐसा करने का कारण जानना चाहा तो बकरे ने कहा कि कारण वह उनके पिता के सामने ही बताएगा। व्यक्ति के सामने बकरे ने यह बतलाया कि उसने भी एक बार एक बकरे की बलि चढ़ायी थी, जिसकी सज़ा वह आज तक पा रहा था। तब से चार सौ निन्यानवे जन्मों में उसका गला काटा जय श्री राम जा चुका है और अब उसका गले कटने की अंतिम बारी है। इस बार उसे एक बुरे कर्म का अंतिम दंड भुगतना था, इसलिए वह प्रसन्न होकर हँस रहा था। किन्तु वह दुःखी हो कर इसलिए रोया था कि अगली बार से तुम्हारे भी सिर पाँच सौ बार काटे जाएंगे। व्यक्ति ने उसकी बात को गंभीरता से लिया और उसके बलि की योजना स्थगित कर दी तथा अपने बेटों से उसे पूर्ण संरक्षण की आज्ञा दी। किन्तु बकरे ने व्यक्ति से कहा कि ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि कोई भी संरक्षण उसके कर्मों के पाप को नष्ट नहीं कर सकते। कोई भी प्राणी अपने कर्मों से मुक्त नहीं हो सकता। जब बेटे उस बकरे को ले कर उसे यथोचित स्थान पर पहुँचाने जा रहे थे। तभी रास्ते में किनारे एक पेड़ के शाखा पर नर्म-नर्म पत्तों को देख ज्योंही बकरे ने अपना सिर ऊपर किया, तभी एक वज्रपात हुआ और पेड़ के ऊपर पहाड़ी पर स्थित एक बड़े चट्टान के कई टुकड़े छिटके। एक बड़ा टुकड़ा उस बकरे के सिर पर इतनी जोर से आ लगा कि पलक झपकते ही उसका सिर धड़ से अलग हो गया। ©Krishnadasi Sambhavi कर्मों की सज़ा भोज के लिए एक व्यक्ति ने एक बार एक बकरे की बलि चढ़ाने की तैयारी आरम्भ की। उसके बेटे बकरे को नदी में स्नान कराने ले गये। नहान