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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा :-सायली छन्द // विषय :- पंछी पंछी जैसे वह उड़ जाते हैं लौट नहीं पाते । #कविता

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विधा :-सायली छन्द // विषय :- पंछी

पंछी
जैसे वह
उड़ जाते हैं 
लौट नहीं 
पाते ।

जब
बन जाते 
हैं परदेशी बेटे 
उम्र ढ़ले
आते ।

क्या 
खाया पहना 
सोया जागा सब
वह कहाँ
बताते ।

जो
बनाया था
देखो उसने घर
कब रहने 
आते ।

पंछी
जैसा जीवन
है अब उनका
सुबह शाम
आते ।।

०२/०३/२०२४      -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा :-सायली छन्द // विषय :- पंछी

पंछी
जैसे वह
उड़ जाते हैं 
लौट नहीं 
पाते ।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा  दोहा :-  विषय :-मतदाता दिवस  ऐसे क्यों करते रहें , सब तेरा उपयोग । अपने भी अधिकार को , पहचानों सब लोग ।।१ #कविता

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विधा  दोहा :-  विषय :-मतदाता दिवस 

ऐसे क्यों करते रहें , सब तेरा उपयोग ।
अपने भी अधिकार को , पहचानों सब लोग ।।१

अपने इस अधिकार को , रख लो सभी सँभाल ।
आयेंगे वह पूछने , तब ही तेरा हाल ।।२

मानव का मतदान पर , सुनो प्रथम अधिकार ।
जिसकी चाहे आज वह , कर दे यह उपकार ।।३

राजनीति के खेल में , मानव बना विसात ।
खेल रहे धनवान सब ,  करके मीठी बात ।।४

धर्म-कर्म को एक पल, रख दे अपनी ताख ।
जाकर आज टटोल ले, तू भी इनकी साख ।।५

जब तक हक मतदान का , सुन है तेरे हाथ ।
तब तक मानो ये सभी , हर पल तेरे साथ ।।६

मानव की इस बात से , अब होती पहचान ।
पीछे देख चुनाव में , क्या इसका मतदान ।।७

सबके नेक चुनाव से , मिले सही सरकार ।
भूलो मत प्राणी अभी , अपना यह अधिकार ।।८

आप दिवस मतदान का , रखो हमेशा ध्यान ।
जन-जन को जाग्रति करो , देकर फिर यह ज्ञान ।।९

इनकी उनकी मत सुनो , मन की अपनी मान ।
जो देता सहयोग हो , दो उसको मतदान ।।१०

कम मत होने दो कभी , तुम अपनी यह शान ।
चाहे इसके ही लिए , दे देना बलिदान ।।११

२५/०१/२०२३     -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा  दोहा :-  विषय :-मतदाता दिवस 


ऐसे क्यों करते रहें , सब तेरा उपयोग ।

अपने भी अधिकार को , पहचानों सब लोग ।।१

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विषय  :- माँ सीता विधा   :- सार छन्द राम-राम सुन बोल उठी फिर , देखो सीता माता । कौन छुपा बैठा उपवन में , नही सामने आता ।। #कविता

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विषय  :- माँ सीता
विधा   :- सार छन्द

राम-राम सुन बोल उठी फिर , देखो सीता माता ।
कौन छुपा बैठा उपवन में , नही सामने आता ।।
राम-राम सुन बोल उठी फिर .....

लगता तुम भी मायावी हो , छल करते हो हमसे ।
होते भक्त अगर तुम प्रभु के  , छुपे न होते हमसे ।।
नार पराई को हर लेना , लंकापति को   भाता ।
राम-राम सुन बोल उठी फिर.....

सुनो मातु मैं भक्त राम हूँ , तुम्हें खोजने आया ।
साथ शक्ति मैं इस लंका की , आज परखने आया ।।
देर नही अब और लगेगी , मैं विश्वास दिलाता ।
राम-राम सुन बोल उठी फिर ....

कह दो जाकर मेरे प्रभु से , मन मेरा  घबराता ।
पापी रावण की लंका में , और न ठहरा जाता ।।
आकर संग चले ले हमको  , वो हैं सबके दाता ।
राम-राम सुन बोल उठी फिर ....

कभी-कभी तो सोच-सोच कर , होती मन में उलझन ।
बिन उनके बीतेगा कैसे, मेरा अब यह जीवन ।।
क्यों इतनी अब देर लगाये , तोड़ लिए क्या नाता ।
राम-राम सुन बोल उठी फिर ....

०९/०१/२०२४      -    महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विषय  :- माँ सीता

विधा   :- सार छन्द


राम-राम सुन बोल उठी फिर , देखो सीता माता ।

कौन छुपा बैठा उपवन में , नही सामने आता ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा    सरसी छन्द  मात्रा भार    :- १६/११ माता तेरे दर पर देखो , आया है शैतान । मान रहा है अपनी गलती , कहकर मैं नादान ।। #कविता

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विधा    सरसी छन्द 
मात्रा भार    :- १६/११

माता तेरे दर पर देखो , आया है शैतान ।
मान रहा है अपनी गलती , कहकर मैं नादान ।।
तेरा ही तो बालक हूँ मैं , भटक गया था राह ।
ठोकर खाकर मन में जागी , अब जीने की चाह ।।

काया-माया में मैं उलझा , भूल गया व्यवहार ।
रिश्ते-नाते तोड़ सभी मैं , किया सदा व्यापार ।।
पाप पुन्य का मर्म न जाना , बना रहा बलवान ।
बनकर पापी द्वार तुम्हारे , आया मैं भगवान ।।

किसको जाकर आज बताऊँ , मैं जीवन की भूल ।
यही कर्म मम जीवन पथ में , बने हुए हैं शूल ।।
उनको समझ लिया था भगवन , जो भी थे धनवान ।
मातु-पिता होते है भगवन ,  नही मिला  था ज्ञान ।।

०३/०१/२०२४     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा    सरसी छन्द 

मात्रा भार    :- १६/११


माता तेरे दर पर देखो , आया है शैतान ।

मान रहा है अपनी गलती , कहकर मैं नादान ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा - कुण्डलिया  विषय- बलिदान सपने आँखों में लिए , जो करते थे ध्यान । राम लला के नाम पर, दिए प्राण बलिदान ।। दिए प्राण बलिदान , समझकर भ #कविता

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विधा - कुण्डलिया  विषय- बलिदान

सपने आँखों में लिए , जो करते थे ध्यान ।
राम लला के नाम पर, दिए प्राण बलिदान ।।
दिए प्राण बलिदान , समझकर भाग्य हमारे ।
राम-लला के आज , बने हम सभी दुलारे ।।
रहा प्रखर सौभाग्य , वही पूर्वज थे अपने ।
आज वही बलिदान , पूर्ण करते है सपने ।।

२९/१२/२०२३     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा - कुण्डलिया  विषय- बलिदान


सपने आँखों में लिए , जो करते थे ध्यान ।

राम लला के नाम पर, दिए प्राण बलिदान ।।

दिए प्राण बलिदान , समझकर भ

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा   दाम छन्द 121   121   121   121 सुनो रघुनाथ खडा अब दास । हरो सब ताप लगी है आस ।। #कविता

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विधा   दाम छन्द
121   121   121   121
सुनो रघुनाथ खडा अब दास ।
हरो सब ताप लगी है आस ।।
न ठूँठ बने अब मानव गात ।
करो न भला तुम ही अब तात ।।

जपूँ हरि नाम कहे हनुमान ।
कटे सब फंद करे जब ध्यान ।।
सुनो तन मानव है हरि धाम ।
भजो फिर लाल सदा प्रभु राम ।।

वही रघुनंदन है घनश्याम ।
रहा जग सुंदर है यह धाम ।।
लगाकर चंदन मैं नित भाल ।
करूँ फिर वंदन लेकर थाल ।।
२७/१२/२०२३    -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा   दाम छन्द

121   121   121   121


सुनो रघुनाथ खडा अब दास ।

हरो सब ताप लगी है आस ।।

अदनासा-

विडियो सौजन्य एवं हार्दिक आभार💐🌹🙏😊🇮🇳🇮🇳https://www.instagram.com/reel/C0_KZrkP8SY/?igsh=MWhlY2p6aHl2bG83eQ== #हिंदी #मुहम्मदरफ़ी #गीत #आवाज़ #Instagram #Facebook #संगीत #फ़िल्म #सुरताल #अदनासा

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विधा गीत    वीर छन्द /आल्हा छन्द करते नहीं प्रयास है , लेकिन सब संलग्न । हरि इच्छा किसने सुनी , अपने में सब मग्न ।। #कविता

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विधा गीत    वीर छन्द /आल्हा छन्द

करते नहीं प्रयास है , लेकिन सब संलग्न ।
हरि इच्छा किसने सुनी , अपने में सब मग्न ।।

इन लोगो का जग में कहना , रहना हर पल उनके साथ ।
पास रहे धन वैभव जिसके , छोड़ कभी मत उसका हाथ 
इन लोगो का जग में कहना....

तोड़ मोह की सब जंजीरें, बहने दे नैनों से नीर ।
रिश्तों में खाईं पड़ जाए , उठने दे तू मन में पीर ।।
लेकिन दौलत जहाँ दिखे तू , वहीं झुका दे अपना माथ ।
इन लोगो का जग में कहना ....

रिश्तों से धन हासिल करना , सीख रहा है यह संसार ।
स्वार्थ नहीं यह तो पूजा है , जिसको कहते यह व्यापार ।।
क्या मंदिर का सुनो चढ़ावा , लेने आते है रघुनाथ ।
इन लोगो का जग में कहना ....

क्यों होते हो क्रोधित इतना,  इससे होता है संताप ।
मान सभी लो बातें मेरी , इसको समझो मत तुम पाप ।।
यही जगत की रीति आज है , मुझे बताए भोलेनाथ ।
इन लोगो का जग में कहना ....

इन लोगो का जग में कहना , रहना हर पल उनके साथ ।
पास रहे धन वैभव जिसके , छोड़ कभी मत उसका हाथ

१६/१२/२०२३     -   महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विधा गीत    वीर छन्द /आल्हा छन्द


करते नहीं प्रयास है , लेकिन सब संलग्न ।

हरि इच्छा किसने सुनी , अपने में सब मग्न ।।

MAHENDRA SINGH PRAKHAR

विषय - आदत   विधा :- दोहा आदत अपनी छोड़ दे , कहना मेरा मान । पछतायेगा एक दिन , बन जा अब इंसान ।।१ #कविता

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विषय - आदत   विधा :- दोहा

आदत अपनी छोड़ दे , कहना मेरा मान ।
पछतायेगा एक दिन , बन जा अब इंसान ।।१

अच्छी आदत एक दिन , लाती है सुन रंग ।
जो जलते थे देखकर  , वो भी होते दंग ।।२

नित्य भ्रमण की तुम सुबह , आदत लो तुम डाल ।
रहे न रोगी तन कभी , बदलो जीवन चाल ।।३

आदत जिसकी हो भली , करें नहीं वह बैर ।
सबसे हिल मिलकर चले , माँगें सबकी खैर ।।४

आदत से मजबूर है , दुनिया में कुछ लोग ।
मतलब से करते यहाँ , जन-जन का उपयोग ।।५

राजनीति के नाम पर , करते क्यों षडयंत्र ।
छोडो आदत है बुरी , प्यारा यह गणतंत्र ।।६

आदत भी तो रोग है , लगे न छूटे देख ।
लगती जिसको भी यहाँ , बदले उसकी रेख ।।७

नित्य तुम्हारे दीद से , आता मुझको चैन ।
आदत ऐसी पड़ गई , तुम बिन कटे न रैन ।।८

१०/१२/२०२३      -  महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR विषय - आदत   विधा :- दोहा


आदत अपनी छोड़ दे , कहना मेरा मान ।

पछतायेगा एक दिन , बन जा अब इंसान ।।१

Manojkumar Srivastava

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