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Ruchi Baria
सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे। यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥ ©Ruchi Baria सह्याद्रिशीर्षे विमले वसन्तं गोदावरितीरपवित्रदेशे। यद्धर्शनात्पातकमाशु नाशं प्रयाति तं त्र्यम्बकमीशमीडे॥ अर्थ: – जो गोदावरीतटके पव
Ghumnam Gautam
लिख दूँ- लिख के ख़ुद को पातक तुझको मैं पुनीत लिख दूँ... होठों पे तेरे प्रीत लिख दूँ मुहब्बत का कोई गीत लिख दूँ... हार जाऊँ हर जनम तेरे इश्क़ में ख़ुद को... कुछ इस तरह हरबार अपनी जीत लिख दूँ... पुनीत लिख दूँ प्रीत लिख दूँ... गीत लिख दूँ जीत लिख दूँ... ©Ghumnam Gautam #mountain #पातक #पुनीत #जीत #ghumnamgautam #ख़ुद
Sangeeta Kalbhor
नको पुन्हा मिलन.. तूला वाटले तरी मलाही वाटायला हवे समीप तू येता अंग नि अंग पेटायला हवे धग नुसती काय कामाची तिथल्या तिथ धुमसणारी दाह होत असताना उरी जिथल्या तिथ उसळणारी हवा मला अंगार लख्ख तनमन तृप्त करणारा क्षणभरासाठी तरी ब्रम्हानंदी टाळी वाजवणारा मग नको पुन्हा मिलन जे युगायुगांचे द्योतक आहे पवित्र अशा प्रीतीचे उगा ,उगा पातक आहे..... मी माझी..... ©Sangeeta Kalbhor #woaurmain नको पुन्हा मिलन.. तूला वाटले तरी मलाही वाटायला हवे समीप तू येता अंग नि अंग पेटायला हवे धग नुसती काय कामाची तिथल्या तिथ धुमसणारी
Poetry with Avdhesh Kanojia
दोहा- श्यामल छबि तन पीत पट, मोर मुकुट प्रभु माथ। युगल चरन में शत नमन, करूँ जगत के नाथ।। चौपाई- जय गिरिधर जय -जय व्रजनंदन। जोरि पानि हम करते वंदन।। तव पद पंकज नावहुँ शीशा आरति हरहु मोर जगदीशा।। परम शक्ति तव राधे रानी। वंदहि देवर्षि: अरु ध्यानी।। देवराज कर मान नसाई। अरु बिरंचि अभिमान हटाई।। पंच शत्रु मोहि घेरे ठाढ़े। अवगुन दोष सकल हैं बाढ़े।। त्राहिमाम प्रभु!शरण तिहारी। हौं प्रसन्न अब पातकहारी।। दोहा- जय माधव रणबाँकुरे!, नमन प्रेम अवतार। कण कण में छवि आपकी, महिमा अमित अपार।। #जन्माष्टमी #श्रीकृष्ण #कृष्णमेरे #krishna #poem #poetry #lovequote दोहा- श्यामल छबि तन पीत पट, मोर मुकुट प्रभु माथ। युगल चरन
Abhay Bhadouriya
सरस्वती वंदना (अनुशीर्षक में पढ़ें) सरस्वती वंदना माता के चरणों में प्रणाम बारंबार कर रहा सुंदर श्वेत पुष्प ... चरणों में समर्पित कर रहा मिटा दो अंधकार सब ज्ञान को विस्ता
Rashmi Hule
खळाळते नदी, काठ सोडून धावते सागराला भेटण्याची, ओढ अशी लागते पालापाचोळा,दगडगोटे, साठवून उदरी भोग नशिबाचे , खाचखळगेच तिच्या पदरी बरसते धुंआधार जेव्हा पाणी पावसाचे काठ सोडला म्हणत,माथी ओझे तिच्या,पापाचे भागवी तहान सदा अत्रृप्त जिवांची तृप्त होऊन कांगावा गाळाचा,ही रीत जनांची जाण सागराला तरी का तिच्या व्यथांची असावी का कैफात त्याच्या भर्तीच्या, तिच स्वाधीन व्हावी.. नदी तेज बहती है, अपना तीर छ़ोडकर भागती है सागर से मिलने की गहरी आस होती है पत्ते, पत्थरों को अपने उदर में संभालकर भी उसके नसीब के भोग,पथरील
Divyanshu Pathak
“”कर्मण्यकर्म य: पश्चेदकर्मणि च कर्म य: ! स बुद्धिमान् मनुष्येषु सयुक्त: स युक्त: कृत्स्त्रकर्मकृत् !!”” कर्म में जो अकर्म को देखे और अकर्म में जो कर्म को देखे, उसको बुद्धिमान कह रहे हैं भगवान्। अकर्म नाम ब्रह्म का है, कर्म नाम माया का है। ज्ञान के आधार पर माया रूप कर्म चल रहा है। यह दृष्टि ही कर्म-बन्ध से छुड़ाने वाली होती है ! यहां प्रस्तुत श्लोक ही “कर्मण्येवाधिकारस्ते …” का स्पष्टीकरण है जिसको ईशावास्य के मंत्र के आधार पर भगवान् ने यहां स्पष्ट किया है🔯😊🕉- (कैप्शन देख ही लीजिए 😃)🔯🕉🔯💠 🔯🕉🔯#Good morning🔯🕉🔯💠 अन्धं तम: प्रविशन्ति येउविद्यामुपासते। ततो भूय इव ते तमो य उ विद्यायां रता: ।।” अर्थात् जो अविद्या रूप कर्म में ही रात
Shravan Goud
ॐ नमः शिवाय 🙏🙏 आभार,: गुगल कालहस्तेश्वर तिरुपति 🙏🙏 सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥ परल्यां वैद्यनाथं च ड
Shravan Goud
।।सूक्तिसिन्धु।। मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि। एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥ हे महादेवी | मेरे समान कोई पातकी नहीं और तुम्हारे समान कोई पापहारिणी नहीं ऐसा जानकर जो उचित परे वो कीजिये । चैत्र नवरात्र एवम हिंदू नववर्ष की शुभकामनाएं, माता रानी हम सब पर कृपा दृष्टि बनाए रखना जय माता रानी की 🙏🙏 ।।सूक्तिसिन्धु।। मत्समः पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि । एवं ज्ञात्वा महादेवि यथायोग्यं तथा कुरु ॥ O Goddess! There is no one as Falle
Shravan Goud
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥ परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्। सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने॥ वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे। हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये॥ एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः। सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति॥ एतेशां दर्शनादेव पातकं नैव तिष्ठति। कर्मक्षयो भवेत्तस्य यस्य तुष्टो महेश्वराः॥:🙏 सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोङ्कारममलेश्वरम्॥ परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम्। सेतुबन्धे तु रा