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vinni.शायर
अगर दुःख की गढ़ी ना आती.. ना दीवाना बनता ना मैं शायर.. ©vinni.shayr अगर दुःख की गढ़ी ना आती... #allalone
Sarita Shreyasi
एक चुप्पी पर सौ कहानियाँ गढ़ी जाती हैं, कोई बोल दे तो तमाशा खड़ा हो जाता हैं । एक चुप्पी पर सौ कहानियाँ गढ़ी जाती हैं, कोई बोल दे तो तमाशा खड़ा हो जाता है। #yqdidi
Prince Singh Rana
जय श्री राम नए वर्ष का पहला हनुमान गढ़ी दर्शन जय बजरंगबली।।।🙏🙏🙏🙏जय हो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम चंद्र की और जगत जननी मा सीता की।।
CHOUDHARY HARDIN KUKNA
Anil Prasad Sinha 'Madhukar'
सोंचा था घर के छत पर हवाई अड्डा बनाऊँगा, रेलवे प्लेटफार्म खींचकर दरवाजे तक लाऊँगा, अपने मुमताज को ताजमहल उपहार कर दूँगा, अपने घर से स्वर्ग तक की सीढ़ियाँ बनवाऊँगा, अगर खुद कार्य ना करुँ तो किससे कराऊँगा, बस इतना ही कर लूँ तो मैं प्रसिद्ध हो जाऊँगा, "मन से गढ़ी हुई बात जिसका वास्तविकता से कोई संबंध न हो अर्थात बनावटी बात।" आओ अब कुछ लिख जायें।। कोलाब कीजिए और अपने दोस्तों को भी कोलाब करन
Harshita Dawar
Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat कमाल तो तब हुआ। महज़ ख़्याल नहीं था। जब पति के बटुएं को खोलकर फेंक दिया। कमाल तो तब हुआ। जब ख़ुद के बटुएं पर नज़र गढ़ी। कमाल तो तब हुआ। जब ख़ुद की नज़रों में। खुद ही मिसालं बन गई। #mythoughts #aurat #respect #yqdidi #yqquotes #yqhindi Written by Harshita ✍️✍️ #Jazzbaat कमाल तो तब हुआ। महज़ ख़्याल नहीं था। जब पति के बट
Sarita Shreyasi
बनाये हैं चित्र, तुमने गढ़ी हैं मुर्तियाँ, भरे हैं उनमें रंग, अपनी कल्पना के। उन चित्रों और मुर्तियों में, माँ है,पुत्री है, पत्नी है, प्रेयसी है, इन सबसे परे, बस एक औरत का गढ़ा जाना अभी बाकी है, रंगों और पत्थरों में, मेरा अपना अक्श उभरना अभी बाकी है । तुमने बनाये हैं चित्र,गढ़ी हैं मुर्तियाँ, भरे हैं उनमें रंग,अपनी कल्पना के। उन चित्रों और मुर्तियों में, माँ है, पुत्री है, पत्नी है, प्रेयस
Dr Jayanti Pandey
हां मैं बेटी हूं नहीं पसंद मुझे गमलों की सीमाएं मैं वृक्ष हूं, मुझे जड़ों का विस्तार पसंद है किसी का आश्रित नहीं होना मुझे प्रकृति की धूप ,ताप, फुहार पसंद है नहीं बांध पाओगे मुझको खोखली झूठी गढ़ी लकीरों से मेरा अस्तित्व नहीं है निर्भर अब तुम्हारी गढ़ी गई तकदीरों पर आपत्ति है मुझको कन्या धन कहलाने में आपत्ति है मुझको दान समझ कर दिए जाने में दोहरे मापदंड जब तक यूं अपनाए जाएंगे तब तक समाज विकसित है, कैसे कह पाएंगे? (पूरी कविता अनुशीर्षक में पढ़ें) हां मैं बेटी हूं मां बाबा ने मुझे सम-भाव से पाला है, मुझमें और भाई में कोई फर्क नहीं डाला है नहीं पसंद मुझे गमलों की सीमाएं
Sarita Shreyasi
सगे-सहोदर को तज कर, नये संबंधों को अपनाती है, अंक से अपने वंश देकर भी, आंशिक ही अपनायी जाती है। प्रकृति की बनायी प्रतिमा, फिर से तोड़ी और गढ़ी जाती है, तस्वीरों में सजकर वह किसी के साथ ही मढ़ी जाती है। अपनों और अपनाये हुओं के बीच अपनी जगह तलाशती, आदि से अंत तक परायी रह जाती है, तब जाकर यहाँ औरत पूरी कहलाती है। सगे-सहोदर को तज कर, नये संबंधों को अपनाती है, अंक से अपने वंश देकर भी, आंशिक ही अपनायी जाती है। प्रकृति की बनायी प्रतिमा, फिर से तोड़ी और गढ
Shree
मैंने उम्मीदें गढ़ी मैंने सपने देखे मैंने जादू जिया फिर एक दिन... जादू ने सब बेकाबू किया! मैंने आवाज लगाई थोड़ा मातम जिया और फिर एक दिन कुछ जादू सा हुआ... मरने से जीना मुनासिब लगा। मैंने श्रृंगार किया मन मंदार किया और, एक दिन.. मोहभंग मल्हार हुआ... जीना मरना खेल, संसार तमाशा हुआ। मैंने उम्मीदें गढ़ी मैंने सपने देखे मैंने जादू जिया फिर एक दिन... जादू ने सब बेकाबू किया! मैंने आवाज लगाई थोड़ा मातम जिया