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Ravendra
Prerit Modi सफ़र
ग़ज़ल लगते हो कभी रदीफ़ कभी क़ाफ़िया लगते हो साथी हूँ मैं तुम्हारा मेरे तुम साथिया लगते हो मुक़द्दस है रिश्ता मेरा तुझसे, ज़माना समझेगा नहीं कभी तुम हो ख़ाक-नशीं कभी औलिया लगते हो हसरत हो मेरी तुम, एक तेरे सिवा कुछ नहीं चाहिए कभी तुम हमनवां हो कभी तुम छलिया लगते हो शरारत करते हो, उलझाते हो अपनी बातों में ऐसे शहर-ए-दिल की जैसे तुम तंग गलियां लगते हो मुझ को बस ख़्वाहिश है तेरी ही इस जहाँ में ज़िन्दगी के सुहाने 'सफ़र' में तुम बेलिया लगते हो ख़ाक-नशीं- फ़कीर औलिया- संत ♥️ Challenge-633 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए
Gumnam Shayar Mahboob
ग़ालिब मेरे प्यारे शायर ⚡ग़ालिब कैसे "मिर्ज़ा ग़ालिब" बने! ⚡ ✍#ख़ास_बेहद_ख़ास✍ #यौमे_ए_पैदाइश_मिर्जा_ग़ालिब मिर्ज़ा ग़ालिब की यौमे-ए-पैदाइश पर चलिए ले चलते हैं वहां, जहां ग़
Vikas Sharma Shivaaya'
गणेश शाबर मंत्र मन्त्रः- ॐ गणपति यहाँ पठाऊं तहां जावो दस कोस आगे जा ढाई कोस पीछे जा दस कोस सज्जे दस कोस खब्बे मैया गुफ्फा की आज्ञा मन रिद्धि सिद्धि देवी आन अगर सगर जो न आवे तो माता पारवती की लाज ! ॐ क्राम् फट् स्वाहा ! कार्य-सिद्धि हेतु गणेश शाबर मन्त्र मन्त्रः- “ॐ गनपत वीर, भूखे मसान, जो फल माँगूँ, सो फल आन। गनपत देखे, गनपत के छत्र से बादशाह डरे। राजा के मुख से प्रजा डरे, हाथा चढ़े सिन्दूर। औलिया गौरी का पूत गनेश, गुग्गुल की धरुँ ढेरी, रिद्धि-सिद्धि गनपत धनेरी। जय गिरनार-पति। ॐ नमो स्वाहा।” विष्णु सहस्रनाम (एक हजार नाम) आज 144 से 154 नाम 144 सहिष्णुः दैत्यों को भी सहन करने वाले 145 जगदादिजः जगत के आदि में उत्पन्न होने वाले 146 अनघः जिनमे अघ (पाप) न हो 147 विजयः ज्ञान, वैराग्य व् ऐश्वर्य से विश्व को जीतने वाले 148 जेता समस्त भूतों को जीतने वाले 149 विश्वयोनिः विश्व और योनि दोनों वही हैं 150 पुनर्वसुः बार बार शरीरों में बसने वाले 151 उपेन्द्रः अनुजरूप से इंद्र के पास रहने वाले 152 वामनः भली प्रकार भजने योग्य हैं 153 प्रांशुः तीनो लोकों को लांघने के कारण प्रांशु (ऊंचे) हो गए 154 अमोघः जिनकी चेष्टा मोघ (व्यर्थ) नहीं होती 🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹 ©Vikas Sharma Shivaaya' गणेश शाबर मंत्र मन्त्रः- ॐ गणपति यहाँ पठाऊं तहां जावो दस कोस आगे जा ढाई कोस पीछे जा दस कोस सज्जे दस कोस खब्बे मैया गुफ्फा की आज्ञा मन रिद्ध
kalamcasm
ऐश्वर्य वैभव
Ashraf Fani【असर】
ग़ज़ल बा-वजू हो के आ गया मैं तो इतना क्यूँ एहतराम,मैख़ाने का सारे रस्मों रिवाज तोड़ चला क्यूँ नहीं फ़िक्र है, ज़माने का ये दर-ए-पीर औलिया तो नहीं ये तो दर है किसी, दीवाने का मैं हूँ आवारगी में बेपरवाह तुमको है शौक आज़माने का - अशरफ फ़ानी कबीर ©🎭Ashraf Fani Kabir🌷🌼 ग़ज़ल बा-वजू हो के आ गया मैं तो इतना क्यूँ एहतराम,मैख़ाने का सारे रस्मों रिवाज तोड़ चला क्यूँ नहीं फ़िक्र है, ज़माने का
Zoga Bhagsariya
है उल्फत , मजनू की तरह,हिंदुस्तान से , करूं मुहब्बत ,लैला मानकर ,ईमान से ।। सजदा करता हूं ,ख़ाक "ए"वतन को रोज़ मेरी जन्नत तो यही है , क्या लेना जहान से ।। राम ,सीता , लक्ष्मण ,भरत , श्रवण , सबूरी हम हुए , मूतासिर ,बजरंग बली ,हनुमान से ।। कृष्न ,कंस ,प्रहलाद ,अभिमन्यु,पांच पाण्डव , हुए मुखातिब यहां , युधिष्ठिर जैसे ,सूझवान से ।। सूरदास ,कबीर , पलटू ,मीरां , बाई सहजो , दादू दीनदयाल ,सभी पले ,यहीं के धान से ।। इस वतन रहे थे जो, फरीद , खुसरो , औलिया , ख़्वाजा चिश्ती पीर को ,सलाम दिलो - जान से , बाबा नानक ,रविदास ,गुर अर्जुन देव जी ,और गुरु गोबिंद सिंह ,जी का नाम लेता हूं ,शान से ।। नाम और भी हैं , बेहद् , लिखे ना जाते है , अब तारूफ करवाएं, किस किस ,विद्वान से ।। जोगा ,तो बस चाहता है ,सब मिलकर रहे , ना हो मस अला ,कोई ,आरती"ओ"अज़ान से ।। जोगा , बांस से बांस , लड़कर जंगल ,जले , है दुआ कभी ना लड़े , इंसान ,इंसान से, ।। ।। जोगा भागसरिया ।। ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI KAFIR ZOGA GULAM है उल्फत , मजनू की तरह,हिंदुस्तान से , करूं मुहब्बत ,लैला मानकर ,ईमान से ।। सजदा करता हूं ,ख़ाक "ए"वतन को रोज़ मेरी जन्नत तो यही है , क्या
शायर जितेन्द्र सुकुमार साहिर
निजामुद्दीन के बेशर्म जमाती