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Rekha Gakhar
Jk
Shiv gopal awasthi
ऐसा पढ़ना भी क्या पढ़ना,मन की पुस्तक पढ़ न पाए, भले चढ़े हों रोज हिमालय,घर की सीढ़ी चढ़ न पाए। पता चला है बढ़े बहुत हैं,शोहरत भी है खूब कमाई, लेकिन दिशा गलत थी उनकी,सही दिशा में बढ़ न पाए। बाँट रहे थे मृदु मुस्कानें,मेरे हिस्से डाँट लिखी थी, सोच रहा था उनसे लड़ना ,प्रेम विवश हम लड़ न पाए। उनका ये सौभाग्य कहूँ या,अपना ही दुर्भाग्य कहूँ मैं, दोष सभी थे उनके लेकिन,उनके मत्थे मढ़ न पाए। थे शर्मीले हम स्वभाव से,प्रेम पत्र तक लिखे न हमने। चंद्र रश्मियाँ चुगीं हमेशा,सपनें भी हम गढ़ न पाए। कवि-शिव गोपाल अवस्थी ©Shiv gopal awasthi कविता
Manojkumar Srivastava
एक कहानी अपने दिल की लिखने की ख़्वाहिश है मुझे चौंसठ की उम्र में पर क्या करूँ कोई हसीना घास नहीं डाल रही ©Manojkumar Srivastava #bicycle ride #मेरी कविता#
Poet Kuldeep Singh Ruhela
विश्व कविता दिवस मैरी हमसफर मेरी दोस्त हैं वो मेरे सुख दुख की साथी है वो रहती हैं हर घड़ी हर पल मेरी सांसों में मेरे जीवन की अनमोल कड़ी है वो मेरा जीवन मेरी कविता है वो! ©Poet Kuldeep Singh Ruhela #bachpan विश्व कविता दिवस मैरी हमसफर मेरी दोस्त हैं वो मेरे सुख दुख की साथी है वो रहती हैं हर घड़ी हर पल मेरी सांसों में मेरे जीवन की अनम