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Poetry with Avdhesh Kanojia

#जय_भवानी_जय_शिवाजी दूरदर्शिता ------------------------------ अपने जो आदर्श हैं और हृदय में जिनका राज। कण कण भारत का कह रहा जय शिवाजी महारा #nojotophoto

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 #जय_भवानी_जय_शिवाजी

दूरदर्शिता
------------------------------
अपने जो आदर्श हैं और
हृदय में जिनका राज।
कण कण भारत का कह रहा
जय शिवाजी महारा

Poetry with Avdhesh Kanojia

#ArmyDay दूरदर्शिता ------------------------------ अपने जो आदर्श हैं और हृदय में जिनका राज। कण कण भारत का कह रहा जय शिवाजी महाराज।। #poem

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Indian Army Day  दूरदर्शिता
------------------------------
अपने जो आदर्श हैं और
हृदय में जिनका राज।
कण कण भारत का कह रहा
जय शिवाजी महाराज।।
--------------------------------
जब दुष्ट अधम खल दनुज सम
करे छद्म व्यवहार।
गले मिलन अरु भेंट में 
रखे छिपा कटार।।

तब रहो सतर्क बन बुद्धिमान
दूरदर्शिता संग।
दर्शा दो अपनी कूटनीति उड़े
शत्रु के मुख का रंग।।

अधर्म नाश हो अधर्म से यदि
नहीं है कोई अधर्म।
अन्याय बने अस्तित्वहीन और
स्वस्थ बने निज धर्म।।

✍️अवधेश कनौजिया© #ArmyDay 

दूरदर्शिता
------------------------------
अपने जो आदर्श हैं और
हृदय में जिनका राज।
कण कण भारत का कह रहा
जय शिवाजी महाराज।।

Poetry with Avdhesh Kanojia

#धर्म #देश #भारत #History #India #Truth poetry दूरदर्शिता ------------------------------ अपने जो आदर्श हैं और हृदय में जिनका राज। कण कण

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दूरदर्शिता
------------------------------
अपने जो आदर्श हैं और
हृदय में जिनका राज।
कण कण भारत का कह रहा
जय शिवाजी महाराज।।
--------------------------------
जब दुष्ट अधम खल दनुज सम
करे छद्म व्यवहार।
गले मिलन अरु भेंट में 
रखे छिपा कटार।।

तब रहो सतर्क बन बुद्धिमान
दूरदर्शिता संग।
दर्शा दो अपनी कूटनीति उड़े
शत्रु के मुख का रंग।।

अधर्म नाश हो अधर्म से यदि
नहीं है कोई अधर्म।
अन्याय बने अस्तित्वहीन और
स्वस्थ बने निज धर्म।।  #धर्म #देश #भारत #history #india #truth #poetry 

दूरदर्शिता
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अपने जो आदर्श हैं और
हृदय में जिनका राज।
कण कण

Krish Vj

कुछ बोलूँ मैं, उससे पहले शब्दों को तोलूँ मैं रूठ ना जाए कोई दिल, सोच पिटारा खोलूँ मैं जतन करूँ मैं ऐसा, जिससे भला हो सबका सत्य वच #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #KKSC38 #शब्दोंकेतीर #अल्फाज_ए_कृष्णा

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शीर्षक :- शब्दों के तीर  🏹

।।  कुछ  बोलूँ  मैं, उससे  पहले  शब्दों को तोलूँ मैं
रूठ ना जाए  कोई दिल, सोच पिटारा खोलूँ मैं ।।

।। जतन  करूँ  मैं ऐसा,  जिससे  भला हो सबका
सत्य वचन  कहूँ, राग, द्वेष शब्दों में ना सोचूँ मैं ।।

पूर्ण कविता अनुशीर्षक मेें पढ़िए!!  कुछ  बोलूँ  मैं, उससे  पहले  शब्दों  को तोलूँ मैं
रूठ ना जाए  कोई दिल, सोच  पिटारा खोलूँ मैं
जतन  करूँ  मैं ऐसा,  जिससे  भला हो सबका
सत्य वच

Dr SONI

#Fire खामोशी............ मुझे पसंद है मेरी खामोशी... वह चुप्पी... जिसकी गूंज सुन सकती हूं.. सिर्फ और सिर्फ मैं...। मुझे पसंद है शब्दों #Poetry

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खामोशी............

मुझे पसंद है मेरी खामोशी... 
वह चुप्पी... 
जिसकी गूंज सुन सकती हूं.. 
सिर्फ और सिर्फ मैं...। 
मुझे पसंद है शब्दों की सहजता.... 
नहीं तोड़ती मरोड़ती मैं उन्हें... 
निजी स्वार्थों के लिए.. 
नहीं करती विच्छेद..। 
हां, मुझे पसंद है.. 
दीपक कि वह छाया.. 
जो मौन रहकर सह लेती है सब कुछ.. 
निष्ठुर दीपक..
 करताअनदेखी..
 अपने ही घर आता परदेसी बनकर... 
करता मनमानी... 
करती हूं सम्मान मैं.. 
उस परछाई का.... ।
 हां.. पसंद है.. 
पूनम के मुख का दाग.. 
जो लगता है मुझे. 
चांद से भी ज्यादा प्यारा. 
नहीं उलझती मैं.. 
इस चकाचौंध रोशनी में.. 
जी लेती हूं.. 
रह लेती हूं.. 
सह लेती हूं.. 
अभाव भी.... l
हां.. पसंद है मुरझाए फूल भी... 
खोकर उसके रंग-ओ-आब में.. 
 खिल उठती हूं मैं भी.. ।
हां.. पसंद है. 
तनहाई.. 
इस भीड़-भाड़ की दुनिया में.. 
जहां खोखले हो चुके हैं.. 
रिश्ते.. 
जर्जर है प्रेम की इमारते.. 
मैं असहज हो जाती हूं.. 
खोना चाहती हूं.. 
उस शून्य में.. 
जहां सुन सकूं.. 
मैं अपने मौन को.. 
कह सकूं जो कहना चाहती हूं. 
कई दिन.. 
महीनों.. 
साल से.. 
नहीं खेलती जज्बातों से...। 
जली थकी आंखों में.. 
सुकून का सुरमा लगा.. 
करती हूं वादा.. 
खुद से.. 
क्यों भटक रही थी.. 
किस रोशनी की तलाश में.. 
इधर-उधर.. 
जिसे पाया मैंने अपने ही भीतर.... I

डॉ सोनी, मुजफ्फरपुर

©Dr SONI #Fire खामोशी............

मुझे पसंद है मेरी खामोशी... 
वह चुप्पी... 
जिसकी गूंज सुन सकती हूं.. 
सिर्फ और सिर्फ मैं...। 
मुझे पसंद है शब्दों

रजनीश "स्वच्छंद"

मैं ज्ञान-सार हूँ।। मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ, अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ। मैं समय की हूँ गति, पुरुषार्थ की मैं हूँ मति। मैं सार हूँ म #Poetry #kavita #tourgurugram #tourdelhi

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मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ मैं ब्रह्म हूँ,
मैं सत्य का स्तम्भ हूँ।
माथे मुकुट मोती जड़ित,
मैं हूँ प्रत्यंचा एक तनित।
मैं हूँ धरा अम्बर भी मैं,
एकाकी हूँ मैं अंतर भी मैं।
संशय रहित, कभी द्वन्द्व हूँ,
श्लोक मन्त्र और छंद हूँ।
रावण कभी हूँ मैं प्रपंचित,
ज्ञान संचित ज्ञान वंचित।
यज्ञ हूँ मैं अश्वमेधी,
मैँ बली पूजा की बेदी।
मैं प्यास और मैं ही क्षुधा,
मैं ही गरल मैं ही सुधा।
मथ के सागर मैं हूँ निकला,
अमृत हूँ मैं विष मैं हूँ पिघला।
भाव उदित मैं काव्य जनित,
शत्रु सखा मैं हूँ अमित।
मैं कालजयी नश्वर भी मैं,
दानव भी मैं ईश्वर भी मैं।
मैं परम् और मैं हूँ खण्डित,
मैं स्वछंद और मैं ही बन्दित।
युधिष्ठिर मुख का सत्य भी,
मैं ही स्वीकार्य और त्यक्त भी।
जिह्वा-ध्वनित वाणी भी मैं,
दान-रहित पाणी भी मैं।
कर्ण भी मैं मैं कुंती हूँ,
कभी सार्थक किंवदन्ति हूँ।
स्तोत्र जटिल तुलसी सरल,
पाषाण वज्र जल सा तरल।
आदि अनन्त मैं रोध हूँ,
स्नेह मैं और क्रोध हूँ।
दुर्बुद्धि भी कभी बोध हूँ,
मानवजनित कभी शोध हूँ।
यम भी मैँ और तम भी मैं,
खुशियों की लड़ी मातम भी मैं।
मैं हक हूँ और हुंकार हूँ,
आर्तनाद और पुकार हूँ।
आजन्मा और मैं अमर्त्य हूँ,
मैं ही परम एक सत्य हूँ।
मैं जीत की हूँ गर्जना,
मैं शंखनाद हूँ अर्चना।
मैं तो ज्वलित अंगार हूँ,
मैं जीव-मृत्यु हार हूँ।
व्याधी भी मैं उपचार हूँ,
मैं ही तो जीवन सार हूँ।

©रजनीश "स्वछंद" मैं ज्ञान-सार हूँ।।

मैं शब्द विलक्षण तीक्ष्ण हूँ,
अर्जुन भी मैं मैं कृष्ण हूँ।

मैं समय की हूँ गति,
पुरुषार्थ की मैं हूँ मति।
मैं सार हूँ म

Vikas Sharma Shivaaya'

शनि गायत्री मंत्र: .-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् || -ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच #समाज

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शनि गायत्री मंत्र:
.-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् ||

-ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रचोदयात ||

-ॐ काकध्वजाय विद्महे खड्गहस्ताय धीमहि तन्नो मन्दः प्रचोदयात ||

सुंदरकांड:   दोहा – 1

प्रभु राम का कार्य पूरा किये बिना विश्राम नही
हनूमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम।
राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ॥1॥
हनुमानजी ने उसको अपने हाथसे छुआ,
फिर उसको प्रणाम किया, और कहा की –
रामचन्द्रजीका का कार्य किये बिना मुझको विश्राम कहाँ? ॥1॥
श्री राम का कार्य जब तक पूरा न कर लूँ,
तब तक मुझे आराम कहाँ?
श्री राम, जय राम, जय जय राम

सुरसा का प्रसंग
देवताओं ने नागमाता सुरसा को भेजा
जात पवनसुत देवन्ह देखा।
जानैं कहुँ बल बुद्धि बिसेषा॥
सुरसा नाम अहिन्ह कै माता।
पठइन्हि आइ कही तेहिं बाता॥1॥
देवताओ ने पवनपुत्र हनुमान् जी को जाते हुए देखा और
उनके बल और बुद्धि के वैभव को जानने के लिए॥
देवताओं ने नाग माता सुरसा को भेजा।
उस नागमाताने आकर हनुमानजी से यह बात कही॥

सुरसा ने हनुमानजी का रास्ता रोका
आजु सुरन्ह मोहि दीन्ह अहारा।
सुनत बचन कह पवनकुमारा॥
राम काजु करि फिरि मैं आवौं।
सीता कइ सुधि प्रभुहि सुनावौं॥2॥
आज तो मुझको देवताओं ने यह अच्छा आहार दिया।
यह बात सुन, हँस कर हनुमानजी बोले॥
मैं रामचन्द्रजी का काम करके लौट आऊँ और
सीताजी की खबर रामचन्द्रजी को सुना दूं॥

हनुमानजी ने सुरसा को समझाया कि वह उनको नहीं खा सकती
तब तव बदन पैठिहउँ आई।
सत्य कहउँ मोहि जान दे माई॥
कवनेहुँ जतन देइ नहिं जाना।
ग्रससि न मोहि कहेउ हनुमाना॥3॥
फिर हे माता! मै आकर आपके मुँह में प्रवेश करूंगा।
अभी तू मुझे जाने दे। इसमें कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा।
मै तुझे सत्य कहता हूँ॥
जब सुरसा ने किसी उपायसे उनको जाने नहीं दिया,
तब हनुमानजी ने कहा कि,
तू क्यों देरी करती है? तू मुझको नही खा सकती॥

सुरसा ने कई योजन मुंह फैलाया, तो हनुमानजी ने भी शरीर फैलाया
जोजन भरि तेहिं बदनु पसारा।
कपि तनु कीन्ह दुगुन बिस्तारा॥
सोरह जोजन मुख तेहिं ठयऊ।
तुरत पवनसुत बत्तिस भयऊ॥4॥
सुरसाने अपना मुंह, एक योजनभरमें (चार कोस मे) फैलाया।
हनुमानजी ने अपना शरीर, उससे दूना यानी दो योजन विस्तारवाला किया॥
सुरसा ने अपना मुँह सोलह (16) योजनमें फैलाया।
हनुमानजीने अपना शरीर तुरंत बत्तीस (32) योजन बड़ा किया॥

सुरसा ने मुंह सौ योजन फैलाया, तो हनुमानजी ने छोटा सा रूप धारण किया
जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप देखावा॥
सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा।
अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥5॥
सुरसा ने जैसे-जैसे मुख का विस्तार बढ़ाया, जैसा जैसा मुंह फैलाया,
हनुमानजी ने वैसे ही अपना स्वरुप उससे दुगना दिखाया॥
जब सुरसा ने अपना मुंह सौ योजन (चार सौ कोस का) में फैलाया,
तब हनुमानजी तुरंत बहुत छोटा स्वरुप धारण कर लिया॥

सुरसा को हनुमानजी की शक्ति का पता चला
बदन पइठि पुनि बाहेर आवा।
मागा बिदा ताहि सिरु नावा॥
मोहि सुरन्ह जेहि लागि पठावा।
बुधि बल मरमु तोर मैं पावा॥6॥
छोटा स्वरुप धारण कर हनुमानजी,
सुरसाके मुंहमें घुसकर तुरन्त बाहर निकल आए।
फिर सुरसा से विदा मांग कर हनुमानजी ने प्रणाम किया॥

उस वक़्त सुरसा ने हनुमानजी से कहा की –
हे हनुमान! देवताओंने मुझको जिसके लिए भेजा था,
वह तुम्हारे बल और बुद्धि का भेद, मैंने अच्छी तरह पा लिया है॥

🙏बोलो मेरे सतगुरु श्री बाबा लाल दयाल जी महाराज की जय🌹

©Vikas Sharma Shivaaya' शनि गायत्री मंत्र:
.-ॐ भग भवाय विद्महे मृत्यु-रूपाय धीमहि तन्नो शौरीहि प्रचोदयात् ||

-ॐ शनैश्चराय विद्महे छायापुत्राय धीमहि तन्नो मंद: प्रच

डॉ वीणा कपूर "वेणु"...

ललाट का चुम्बन प्यारे का मुख #motherlove #कविता

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अपने लाल के ललाट का कर चुम्बन 
मां मांगती है वरदान प्रत्येक क्षण।
सुखद भविष्य हो प्यारे का
स्वस्थ रहे उसका तन मन।।
व्रत रखती दीप जलाती,
और  करती अरदास है।
अपने अपूर्ण स्वप्नों की पूर्ति हेतु
प्रभु ने पुनः प्रदान किया विश्वास है।।
जुग जुग जियो मेरे बच्चों मां की दुआएं 
दुःख कभी नहीं छू पाए तुमको 
जीवन में खुशियां छाएं।

©Veena Kapoor ललाट का चुम्बन
प्यारे का मुख


#motherlove

Mohan Solanki

तिर्थराज पुष्कर के गो मुख प्रवास का चित्र ।

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 तिर्थराज पुष्कर के गो मुख प्रवास का चित्र ।

Anjali Jain

#क्यों ताकें किसी और का मुख?#२५.१०.२० #Dussehra2020

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हर बरस बाहर जलते रावण
बरस- दर- बरस भीतर बढ़ते रावण!
बाहरी शत्रु से पहले
भीतर के शत्रुओं का संहार करें हम
स्वार्थ, अनैतिकता, वासना, लोभ
और अहंकार का खात्मा करें हम
तो बाहर, 
शत्रुओं की भीड़ स्वतः कम हो जाएगी!
देश और संस्कृति का अपमान करने वाले,
नारीत्व पर आघात करने वाले 
भेड़ियों और हैवानों को
जलाने के लिए, खुद ही राम बन जाएं
क्यों ताकें किसी और का मुख???

©अंजलि जैन #क्यों ताकें किसी और का मुख?#२५.१०.२०
#Dussehra2020
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