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Savita Nimesh
कमल नयन, चंचल चितवन भवे काम के बाण समान बोले जब जैसे कोयलिया कूके हिरणी जैसी चाल नाचे मन मयूरा जैसा रेशम जैसे बाल मोहनी मूरत, सावली सूरत गर्दन सुराहीदार जो देखे वो होश गवा दे छलकाए मादक भाव इंद्रलोक से आई हो अप्सरा जैसे विश्वामित्र का तोड़ने ध्यान ©Savita Nimesh श्रृंगार रस.. #PrideMonth
Savita Nimesh
कामाक्षी कमल नयन लालित्य से परिपूर्ण यौवन तेरा हे गजगामनी मृदुल भासनी मृगनयनी समान है नैन कर्मठ योगी, योग गवा कर सब तुझ पर लूटा दे निर्मल पावन जल के जैसी बहती जाए प्रीत है ऐसी हे सुलोचना स्वरभास्करी चंचल चित आवेदन देता कर लो हमसे प्रीत ©Savita Nimesh श्रृंगार रस #droplets
तेरे बिन अधूरा सा हूं...!!❤️
उनके इश्क में हम हद से गुजर गए जो कभी ना कर सकते थे,वो भी हम कर गए। फिर भी वे कहते हैं क्या किया तुमने मेरे लिए दिल मेरा अंदर ही अंदर रो पड़ा और बोला,अभी तक मैं जिंदा था वो किसके लिए। दिल मेरा आज समझा क्या अहमियत है उनके दिल में मेरे लिए। जिनकी राह में रोज बिछाता था फूल चलने के लिए भर रखा है ना जाने कितना जहर अपने दिल में,उन्होंने मेरे लिए। रस - श्रृंगार रस #rzहिंदीकाव्यसम्मेलन #restzone #rzरसग़ज़ल
Ahamad naved
शौक से लेकर श्रृंगार तक सब बेकार गया, जब हम से कोसो दूर हमारा प्यार गया। और हम जिसको दिल दे बैठे थे उम्मीदे वफा की खातिर, वो बेवफा निकला,सब देना बेकार गया। ©Ahamad naved #Rose शौक से श्रृंगार रस तक
Jitendra Kumar Jha
Tum se ek shikayat hai प्यार में हूं लिखा इक गीत मैं तेरे प्यार में गा रहा हूं मै इसे तेरे याद में आज कल विरान सा लगता है पल होगा कुछ ऐसा ना ये सोचा था कल मन मेरा मुझसे है कुछ यू कह रहा दो पता उस यार का जो ना रहा आंखो ने कबसे है कुछ भी न दिखा कहता मुझसे है मुझे बस वो दिखा हूं लिखा इक गीत मैं तेरे प्यार में गा रहा हूं मै इसे तेरे याद में ||1|| ख्वाब सारे दाव पर है बिन तेरे है जगा ये जख्म बिन मरहम तेरे आंसुओ के सागरो का क्या करू तेरे बिन कैसे अकेला मै जियूं आसरा तेरे प्यार का मै खो दिया जख्म दिल के घुट घुट कर खुद पिया हूं लिखा इक गीत मैं तेरे प्यार में गा रहा हूं मै इसे तेरे याद में ||2|| जितेन्द्र कुमार झा #NojotoQuote श्रृंगार रस की कविता के माध्यम से स्नेह भरा पैगाम၊ #poem's_loverzz
Sharddha Saxena
❤️शकुन्तला का सौन्दर्य❤️ हे प्रिय! जैसे काई से रमणीय कमल हो काले कलंक से शोभयमान चन्द्रमा वल्कल वस्त्रों में भी तुम मुझे लगती हो अप्सरा। हे शकुन्तले! नवीन कोपल के समान लाल तुम्हारे अधरोष्ठ कोमल शाखाओं के समान तुम्हारी यह भुजाएं हे शकुन्तले! इन फूलों के समान तुम मेरे चित्त को लुभाती हो। ना आभूषण है कोई फूलों से स्वयं को सजाती हो हाय शकुन्तले! तुम बिना किसी हाव-भाव के मेरे मन को लुभाती हो। अप्सरा हो तुम या तपस्विनी इस सोच में तुम मुझे पल-पल डुबोती हो तपस्विनी के वेशभूषा में भी तुम मुझे अप्सरा सी लगती हो। ©Sharddha Saxena दुष्यंत द्वारा शकुंतला के सौंदर्य के बखान पर श्रृंगार रस से परिपूर्ण एक कविता।