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Deepak Patil
Prerana Jalgaonkar
ऋतू मनातले(लेख👇)— % & एरव्ही ऋतूंची तक्रार करणारे आपणच असतो.पाऊस पडला नाही तर, थंडी पडलीच नाही तर.या ना त्या कारणाने त्रास हा होतच असतो.ऋतूंनी किती सहन करावं ? पं
Prerana Jalgaonkar
ऋतू मनातले(लेख👇)— % & एरव्ही ऋतूंची तक्रार करणारे आपणच असतो.पाऊस पडला नाही तर, थंडी पडलीच नाही तर.या ना त्या कारणाने त्रास हा होतच असतो.ऋतूंनी किती सहन करावं ? पं
yogesh atmaram ambawale
भयंकर त्रास होतो आता माझ्या मनाला, पाहतो जेव्हा मी "आई" ला थकलेली. खूप काम करताना पाहिले आहे तिला, पण कधी जाणवली नाही ती दमलेली. सवय तिची सकाळी लवकर उठायची, घरातील सारी कामे स्वतःच करायची. दोन बहिणी माझ्या,सोबतीला असायच्या, तरीही त्यांची मदत न घेता स्वतःच राबायची.. ...( केप्शन मधील वाचावे ).... "आई" जेव्हा थकलेली असते.. #आई ... भयंकर त्रास होतो आता माझ्या मनाला, पाहतो जेव्हा मी "आई" ला थकलेली. खूप काम करताना पाहिले आहे तिला, पण कधी
yogesh atmaram ambawale
रडकुंडीला येतो मी जेव्हा आई अशी बोलते, म्हणे नुसतीच,मी तुम्हा दोघांना खूप त्रास देते.... ( Read in Caption ) २० ऑगस्ट ला उपक्रम संपणार आहे लिहित रहा लिहित रहा... चारोळी ऐवजी कविता लिहा व संपन्न झाल्याचे लिहायला विसरू नका 🙏🙏 #बाराखडीव्यंजनकोट #आजचे_अ
yogesh atmaram ambawale
आपल्याला नियम पाळता येत नसेल, तर गप्प बसावे, पण जे नियम पाळतात, त्यांच्यावर तर न हसावे. (लेख मोठा आहे caption मध्ये वाचावे) मी नाही घाबरत #collabratingwithyourquoteandmine #yqtaai #माझेविचार #कोरोनासंदेश #collab #stayhome #corontine आपल्याला नियम पाळता येत नसेल,
HASAN TUKBANDI
Mohammad Arif (WordsOfArif)
हंसते हुए चेहरे देखो सड़कों पर जा बैठे है अपनी अना की खातिर रात भर जागकर बैठे है मेहनत करके खेत से अन्न पैदा करते है वो उनका सही दाम के लिए आन्दोलन पर जा बैठे है कई महीनों से प्रर्दशन हो रहें है सरकार गुंगी है इसलिए किसान दिल्ली के बार्डर पर जा बैठे है कभी तो फरियाद सुनेगी सरकार किसानों की उनके समर्थन में बहुत से लोग साथ में जा बैठे है गारंटी देने से क्या होता है अब तो लिखित में दो सरकार कानून के खिलाफ किसान सब जा बैठे है अपना घमंड साहेब कम कर लो तो अच्छा है किसान अपना घर-बार छोड़कर रास्ते पर जा बैठे है किस बात का घमंड है साहेब को बताओं तो किसान बिना वजह ही नहीं सड़कों पर जा बैठे है इतने दिनों से लगातार आन्दोलन चल रहें है साहब को चिंता नहीं अपने दोस्तों के साथ जा बैठे है ©Mohammad Arif (WordsOfArif) हंसते हुए चेहरे देखो सड़कों पर जा बैठे है अपनी अना की खातिर रात भर जागकर बैठे है मेहनत करके खेत से अन्न पैदा करते है वो उनका सही दाम के लिए
Mohammad Arif (WordsOfArif)
नफरतों के बाजार में जिन्दगी मौत से लड़ रही है हसरत जीने की है बाहरी ताकत से लड़ रही है मौत का तांडव मचा है गुंगी बहरी सियासत से लड़ रही है हौसला कोई नहीं देता है ये कैसी चाहत से लड़ रही है दुःख दर्द बहुत है यहां और ये मुहब्बत से लड़ रही है मौत का सामान तैयार किया खुदा की कुदरत से लड़ रही है जिन्दगी का क्या भरोसा आरिफ वो इज्ज़त से लड़ रही है नफरतों के बाजार में जिन्दगी मौत से लड़ रही है हसरत जीने की है बाहरी ताकत से लड़ रही है मौत का तांडव मचा है गुंगी बहरी सियासत से लड़ रही है
Mohammad Arif (WordsOfArif)
इश्क है तो इश्क पर एतबार होना चाहिए दुश्मन है तो दुश्मन से तकरार होना चाहिए सच बात है तो सब को सच कहना चाहिए जंग अगर लाज़मी है तो जंग होना चाहिए ख्याली पुलाव पकाने से अब कुछ नहीं होता ये दौर जुल्म का है तो जुल्म से लड़ना चाहिए ये प्रर्दशन वर्दशन से अब कुछ नहीं होने वाला सरकार गुंगी बहरी है फिर भी सच कहना चाहिए जुल्म से लड़ते रहो तुम तब तक हार न मानों अगर तानाशाही है तो अब बगावत होनी चाहिए इश्क है तो इश्क पर एतबार होना चाहिए दुश्मन है तो दुश्मन से तकरार होना चाहिए सच बात है तो सब को सच कहना चाहिए जंग अगर लाज़मी है तो जंग होना