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doctor vishal Kumar
गोरक्ष अशोक उंबरकर
शाळेत बसून जेवणाचा आनंद आज मिळत नाही... आठवताना क्षण सारे घास घशाखाली गिळत नाही.. चपाती सोबत गुळाचा खडा किती भारी लागायचा.. भाजी नसते म्हणून गूळ डब्यात नेहमी आणायचा.. एकमेकांना सोबत घेऊन घोळका गोल करायचा.. चटणी भाकर वाटत वाटत एक एक घास मिळायचा.. उच्च नीच लहान मोठा भेद मुळीच नसायचा.. शाळेतल्या प्रत्येक दिवसात खरा आनंद असायचा.. शाळेतल्या प्रत्येक दिवसात खरा आनंद असायचा.. ©गोरक्ष अशोक उंबरकर शाळा
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- जब कभी बेटी से नफ़रत होगी । फिर उसी दिन देखो आफ़त होगी ।।१ जब तुमको उससे मुहब्बत होगी । फिर यही दुनिया ही जनन्त होगी ।।२ लूट की आज छुपाते दौलत । क्यों न बेटे की ही चाहत होगी ।३ छीन सकता नहीं कोई तुमसे । ज्ञान की पास जो दौलत होगी ।।४ दान कन्या का भी करके देखो । माँगने की क्या ये आदत होगी ।।५ बेटियां पाल नहीं सकते तो । क्या मिटाने की ही हिम्मत होगी ।।६ ज़िन्दगी ले आयी दो राहे पे । और अब क्या कयामत होगी ।।७ राह में छेड़ते जो बहनों को तो उनको भाई की जरुरत होगी ८ तू प्रखर सोचता कुछ ज्यादा है । तेरे दिल में क्या शराफ़त होगी ।।९ २४/०१/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- जब कभी बेटी से नफ़रत होगी । फिर उसी दिन देखो आफ़त होगी ।।१ जब तुमको उससे मुहब्बत होगी । फिर यही दुनिया ही जनन्त होगी ।।२ लूट की आज छु
Durga Deshmukh
सुमे चल माझ्या शाळेला जाऊ ज्ञानोपासक पाहुण येऊ शाळा माझं गाव ज्ञानोपासक त्याच नाव ज्ञानाची घागर भरुन घेऊ 1 ज्ञानोपासक माझी शाळा ज्ञानान भरलेला मळा नका रिकाम्या हातान जाऊ 2 पहा विज्ञानाचे रंग मुल रसायनात दंग थोडा जीवाचा रंग घेऊ (3 विद्वान विद्वत्तेची खाण गुरुजनाची प्रतिमा महान चला ज्ञानाची गाणी गाऊ 4 चित्रकला, रांगोळी, ध्यान दंगामस्ती, अनापान कला सा-या जगाला दावु 5 शाळा गुणवत्तेचा सागर अंधश्रध्देवर फिरवी नांगर उघड्या डोळ्यानं विज्ञान पाहु(6) दुर्गा देशमुख, परभणी ©Durga Deshmukh शाळा
Dr. Bhagwan Sahay Meena
#विषय - विदाई #विधा - गीत (कन्याभ्रूण हत्या पर) मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। जहां आंगन तेरे खेलती, ले फूल सी अंगड़ाई। पापा देख देख मुस्काती, मैं सहती नहीं जुदाई। मैं अंगुली पकड़े चलती मां, जग तेरी करें बढ़ाई। तात मात से दुनिया कहती, बेटी ही घर महकाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। देख जगत की यह करतूतें, आंखें मेरी भर आई। गर्भ से जब किए निष्पादन, बोटी - बोटी घबराई। मखमल सी मेरी काया को,यूं खंड खंड कटवाई। चीखें मेरी निकली होगी, मां गर्भाशय मरवाई। मां तेरी मैं घनी लाड़ली, ना गर्भ से करों विदाई। बाबुल मेरी गलती बतला, सब समझें मुझे पराई। कैसे होगा मंगल गायन, कहां बजेगी शहनाई। पाप किया बेटे के खातिर, बेटी जिसने कटवाई। जब बहू ढूंढते जगत फिरें,तब याद गर्भ की आई। दुनिया बेटे की चाहत में, मां बेटी को मरवाई। डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदमपुरा जयपुर राजस्थान। ©Dr. Bhagwan Sahay Rajasthani #maaPapa कन्या भ्रूणहत्या पर गीत विदाई
Ravendra
Ravendra
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
#मै तो हर नारी में समाई हूं। फिर घर की नारी को अबला समझा। कहीं मै #दुर्गा तो कहीं काली हूं। फिर नारी को सबला न समझा। #नवरात्रि में मै कन्या रूप में पुजी जाऊं। गली नुक्कड़ ढूंढने निकले। फिर ओर दिन क्यों मुझ पर #कुदृष्टि होती है। जरा दया दृष्टि क्यों न दिखाते हैं। क्या नवरात्री के अलावा#कन्या देवी नहीं होती। और बाला मै घर की बेटी न समझा। बुरी दृष्टि डालने वाले भीं कंजक ढूंढे नोरातो में। उनके पैर पूजना पुण्य समझा। घर में भूखी पड़ी है बूढ़ी माई, और मुझे छप्पन भोग लगाते। क्या मुझे अनाड़ी समझा। मां मां कहकर पुकारने वाले घर में मां मे #मै नज़र न आई जब जब मीठा भजन कीर्तन करके मुझे सुनाते हैं। घर में मां बहन बेटी पत्नी से कड़वा घुट पिलाए, उनका कभी मन न समझा। मै तो भाव की भूखी हूं संतान #सुखी हों बस इस कारण हर दुकान पर दिखती हूं। कोई भूखा न रहे, प्यार सम्मान और त्याग करना सिखाया है। हर मानव को मानव को स्नेह से रहना सिखाया है। हर किसी मदद करना सिखाया। मर्यादा का पाठ सिखाया, क्या मुझे खुद मर्यादा में नहीं रहते देखा। हर हाल मे मुझे बांधा है, पर कभी गहनों से तो कभी शस्त्रों से पर बंधी हुई तो भक्तो के प्रेम से। मां का प्यार इतना हैं, उस संतान के लिए लड़ी, पर दुष्टों के लिए पहले शास्त्र है, और बाद में शस्त्र हैं। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma #कैप्शन में पढ़े मै तो हर नारी में समाई हूं मै ही दुर्गा मै ही काली माई हूं #dhoop #soch #मै तो हर नारी में समाई हूं। फिर घर की नारी को अब