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Poet Kuldeep Singh Ruhela
Beautiful Moon Night कुछ खास नही यहां अपने लिए हर शक्श यहां मतलबी है किसी को अपनी फिक्र है तो कोई चापलुशी में मगन है ©Poet Kuldeep Singh Ruhela कुछ खास नही यहां अपने लिए हर शक्श यहां मतलबी है किसी को अपनी फिक्र है तो कोई चापलुशी में मगन है
Anjali Singhal
Devesh Dixit
परिहास (दोहे) जो करते परिहास हैं, उनका बढ़ता मान। आस पास सब हों मगन, खुश होते वो जान।। ऐसा क्यों परिहास हो, लगे व्यंग के बाण। हृदय रहे पीड़ित सदा, कष्ट भोगते प्राण।। हास परिहास हो वही, सुखी करे परिवार। आपस में मिल कर सभी, बांँटे सबको प्यार।। कहते हैं सज्जन सभी, ऐसा हो परिहास। चहक उठे तन-मन सभी, हो जीने की आस।। सीमा हो परिहास की, सके न कोई तोड़। मन भी विचलित हो नहीं, दो उसको अब मोड़।। .............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #परिहास #दोहे #nojotohindipoetry #nojotohindi परिहास (दोहे) जो करते परिहास हैं, उनका बढ़ता मान। आस पास सब हों मगन, खुश होते वो जान।। ऐसा
Devesh Dixit
परिहास (दोहे) जो करते परिहास हैं, उनका बढ़ता मान। आस पास सब हों मगन, खुश होते वो जान।। ऐसा क्यों परिहास हो, लगे व्यंग के बाण। हृदय रहे पीड़ित सदा, कष्ट भोगते प्राण।। हास परिहास हो वही, सुखी करे परिवार। आपस में मिल कर सभी, बांँटे सबको प्यार।। कहते हैं सज्जन सभी, ऐसा हो परिहास। चहक उठे तन-मन सभी, हो जीने की आस।। सीमा हो परिहास की, सके न कोई तोड़। मन भी विचलित हो नहीं, दो उसको अब मोड़।। .............................................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #परिहास #दोहे #nojotohindi #nojotohindipoetry परिहास (दोहे) जो करते परिहास हैं, उनका बढ़ता मान। आस पास सब हों मगन, खुश होते वो जान।। ऐसा
Devesh Dixit
किवाड़ों से झाँकती रौशनी एक जगह थी जो सुनसान, दिखा वहीं पर घर अनजान। घर के आगे खुला इलाका, दिखता था पूरा शमशान। यहाँ सन्नाटा सब ओर था, घर पर नहीं कोई और था। किवाड़ों से झाँकती रौशनी, जिसका नहीं कोई छोर था। धूल - मिट्टी से भरा हुआ था, जालों का भण्डार लगा था। टूटते से किवाड़ थे उसके, कबूतरों का वो घर बना था। फर फर कर उसमें मंडराते, वो गुटर गूँ से शोर मचाते। खाने को नहीं मिले वहाँ कुछ, भोजन लाने को उड़ जाते। कर जतन भोजन को लाते, बड़े मगन से फिर वो खाते। हो जाता जब घर में अँधेरा, बेखौफ हो कर वो सो जाते। क्या आगे मैं हाल बताऊँ, वीराने का दृश्य दिखाऊँ। जाता नहीं कोई वहाँ पर, यही तुमको मैं समझाऊँ। ............................................. देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #किवाड़ों_से_झाँकती_रौशनी #nojotohindi #nojotohindipoetry किवाड़ों से झाँकती रौशनी एक जगह थी जो सुनसान, दिखा वहीं पर घर अनजान। घर के आगे खु
Devesh Dixit
सपनों का महल सपनों का एक महल बना था, पलकों में जो मेरे सजा था। बिखर न जाए कहीं पत्तों सा, ऐसा मेरे मन में रमा था। हर पल को ही पिरोया मैंने, बीज को उसके बोया मैंने। पाऊँ सफलता आगे चलकर, गीत यही गुनगुनाया मैंने। अच्छे से सब कुछ चल रहा था, मगन मैं भी अब झूम रहा था। देख रहा जो महल सपनों का, उसे ही अब मैं ढूंँढ़ रहा था। आँखें खुलीं तो मैंने पाया, महल सपनों का बिखरा पाया। हर एक सपना उजड़ चुका था, देख खुद को ही बेबस पाया। सपनों का एक महल बना था, पलकों में जो मेरे सजा था। बिखर गया वो कहीं पत्तों सा, जो की मेरे मन में रमा था। ....................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #सपनों_का_महल #nojotohindi #nojotohindipoetry सपनों का महल सपनों का एक महल बना था, पलकों में जो मेरे सजा था। बिखर न जाए कहीं पत्तों सा, ऐ
MAHI