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Sarah Moses
बस पेट मे थोड़ा दर्द है, शायद आज ज्यादा खा गयी ,सबको यही बताती हूँ, चलती हूँ संभल कर धीरे- धीरे लग न जाए कहीं लाल दाग इस बात से मैं घबराती हूँ ये तो प्राकृतिक है इसमे मेरा कोई दोष नही, फिर उन दिनों क्यूँ मैं सबसे नजरे चुराती हूँ, कह नही पाती माँ तक से कुछ हर वक़्त मै शर्माती हूँ, माहवारी है कोई पाप थोड़े, जो हमे इसे लेकर इतने ताने दिये जाते है, और बड़ा देवी मानते हो ना हमे, फिर क्यूँ उन 7 दिनों हमारे लिए मंदिर मश्जिद के दरवाजे बंद किये जाते हैं, #विश्व माहवारी दिवस# ©Sarah Moses विश्व माहवारी दिवस
भानु
महज़ बारह या तेरह साल की उम्र से वेदना ,पीड़ा,अपमान हर माह सहती है पुरुषों पर दोष क्या और क्यों मढ़े एक स्त्री खुद,खुद को अपवित्र कहती है है शाश्वत सत्य यह,जानती पूरी सृष्टि है इस अपवित्रता से ही वो माँ बनती है नौ महीने अपवित्र कोख में रखकर एक "पवित्र" पुरुष को वो जन्मती है एक संतान के लिए कई वर्षों की तपस्या निरन्तर चलती रहती है महज नौ का नहीं होता सफ़र माँ का न नौ माह में एक जान मिलती है बारह या तेरह वर्ष की छोटी उम्र से वो इस लंबे सफर पर चल पड़ती है ख़तम नहीं होता जन्म पर सफर माँ आखरी सांस तक माँ रहती है वेदना,पीड़ा,अपवित्रता हर माह की चालीस-पैंतालीस तक वो सहती है इतने लंबे सफर और इतने दर्द के बाद हर माह कुछ दिन वो अपवित्र रहती है #माहवारी #अपवित्र #मातृ #माहवारी_नहीं_मातृत्व
Priyanka
*माहवारी दिवस* *********************** आओ जागरूकता का नया अभियान चलाएं चलो विश्व माहवारी दिवस मनाएं।। मासिक धर्म, पीरियड्स, रजोधर्म, मेन्स्ट्रूएशन जैसे नामों से यह जाना जाता किशोरावस्था से शुरू हो पांच दिनों का यह चक्र बनाता।। मई महीने की २८ तारीख को यह दिवस मनाया जाता किशोरियों को स्वच्छता के प्रति जागरूक बनाया जाता।। साल २०१४ में जर्मन एनजीओ वाॅश यूनाइटेड ने इसकी शुरुआत की थी स्वच्छता, यौन शिक्षा और लैंगिक समानता की दृष्टि से इसकी नींव रखी थी। गलत भ्रांतियों के कुचक्र से निकलना है जरुरी कई बीमारियों को बढ़ाता बिन जानकारी अधूरी।। बार-बार एक ही कपड़े का ना करें प्रयोग सेनेटरी नेपकिन अपनाकर रहें निरोग।। अपनी सोंच और शारीरिक बदलाव को रखें सकारात्मक मानसिक तनाव, पीड़ा, स्त्राव से सोंचें नहीं नकारात्मक।। रुढ़िवादी और पुराने सोंच को बदलने की है जरूरत सफाई,स्वच्छता और सात्विकता को बनाएं अपनी आदत।। फ्री पैड योजना और सबला योजना को राष्ट्रीय स्तर पर चलाएं पैड के एकल प्रयोग से संक्रमण से स्वयं को बचाएं।। डिस्पोजल सेनेटरी नैपकिन को बायोडिग्रेडेबल बनाना चाहिए यथा तथा फेंक कर संक्रमण नहीं फैलाना चाहिए।। काॅलेज, विद्यालय, अस्पताल हर स्तर पर सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना चाहिए हर विभाग में महिलाओं को २ दिन का विशेष अवकाश दिया जाना चाहिए।। महिलाओं की आधी आबादी की समस्या पर आओ खुलकर विचार करें माहवारी प्रबंधन के मुद्दे पर सब मिलकर प्रचार प्रसार करें।। स्वरचित एवं मौलिक *प्रियंका प्रिया* माहवारी दिवस विशेष #stay_home_stay_safe
Vijay Patavkar
हाँ मेरा आज मासिक धर्म है ये बतलानेमे काहेकी शर्म है ॥ १॥ क्योंकी रजो धर्म हर जननिके स्त्रीत्वकी निशानी है मानव-वंशकी साक्षात मानो कहानी है ॥२॥ हर माह,आजीवन इस दर्द को सहती है लेकीन शिकायतका एक शब्द भी ना कहती है ॥३॥ बाट नही सकते पर कोशिश करे उसकी पीडा़को समझनेकी, "उन दिनोमे" घरमे स्वच्छ,स्वस्थ और खुशहाल माहोल रचनेकी ॥ ४॥ तो आओ इस "माहवारी स्वच्छता दिवस " पर इक नई सोचका स्विकार करे, Periods मे भी नारीका वही सत्कार करे, Periods मे भी, नारीका वही सत्कार करे ॥ ५ ॥ ( 28 मई ) रचना ✒️🤓 विजय ज्ञानदेव पटावकर ( ज्ञानतनय ) ©Vijay Patavkar "माहवारी स्वच्छता दिवस " #sunkissed
Anamika
जब वो बारह से तेरह की हुई थी, घर में एक फुसफुसाहट सी हुई थी... पूजाघर में जानें को मना हो गई थी, दादी भी तिरछी नजरों से देख रही थी.. दर्द की वो तड़पन, ऊपर से मां आंखें दिखाती थी... काली थैली में वो ,चुपके से फेंक आती थी.. पीछे मुड़कर धीरे से वो देख लेती थी, रक्त रंजित सलवार से वो बच जाती थी... सवाल अनेक उमड़ रहे थे उसके जेहन में, कुछ जबाव दिये फिर उसकी बहन ने. आंखों में आज भी एक सवाल खटकता है, कन्या पूजन तो होता है... मंदिर उसका जाना क्यों निषेध होता है... #माहवारी #पाप नहीं... #yourquotedidi #youryrquote #tulikagarg
Anamika
प्रश्न.. पूछ बैठी वो मां से दुर्गा मां भी तो स्त्री है... फिर मेरे रक्तस्राव से दादी क्यों मुंह सिकोड़ती है? #माहवारी#रक्तस्राव #मां#स्त्री #प्रश्न #तूलिका
Kumar Manoj Naveen
अजीब दास्तां है सुनाए न बने, पर बिन कहे भी दिल कैसे रहें। बच्चे थे तब सोचते थे कब होंगे हम बड़े, अब सोचते है क्यों हुए हम बड़े? न होते बड़े,न होती जिम्मेदारी, रोजी-रोटी के संघर्षों से सदा होती दूरी। ना आफिस की होती चिंता, न बास शब्द कोई जानता? होती नही हमारी शादी, न होते बीबी- बच्चे, नहीं होती रोज किच-किच। घर में शांति होती। क्या नजारा होता? बस अपना ही राज होता। घर तब हमारा होता। मां-पापा, भाई-बहन सब साथ होते, एक-दूसरे संग हिल-मिल दिन बिताते। मां के हाथ की रोटी का स्वाद होता, पापा के डांट का बस अख्तियार होता। पर प्रकृति के नियमों पर जोर चलता कहां है? होता वही है जो विधना ने लिख दिया है। ***नवीन कुमार पाठक (मनोज)***** ©Kumar Manoj प्रकृति के नियम#