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Neel Tiwari
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें ढूँढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोती ये ख़ज़ाने तुझे मुमकिन है ख़राबों में मिलें ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें तू ख़ुदा है न मिरा इश्क़ फ़रिश्तों जैसा दोनों इंसाँ हैं तो क्यूँ इतने हिजाबों में मिलें आज हम दार पे खींचे गए जिन बातों पर क्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलें अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है जैसे दो साए तमन्ना के सराबों में मिलें **अब के हम बिछड़े तो शायद.....
@satya381
माना हम उड़ते परिंदे है आज यहाँ कल यहाँ, लेकिन जिस डाल पर बैठ जाते है तो घोंसला बना के ही दम लेते है🥰 #उड़ते हुये #परिंदे है #हम
सत्यमेव जयते
जिंदगी अब ऐसे ना रुलाया कर मुझे, तेरी परवाह करने वाले कबके चले गए…! ©Kumar Vinod कबके चले गए…!
DEVENDRA KUMAR
आज के बिछड़े ना जाने कब मिलेंगे आज के बिछड़े ना जाने कब मिलेंगे, सोचता हूँ हम दोनों, अब फिर कब मिलेंगे । यादों में बसी हो तुम और तुम्हारी दिलकश अदायें, फिर से उन्हें ताज़ा करने को, हम कब मिलेंगे । तेरे ये नयन सुंदर से, होठों पर हँसी है मतवाली, फिर से हँसने - हँसाने को, हम अब कब मिलेंगे । मानता हूँ हमारे पथ में हैं, बहुत सारी रुकावटें, हम दोनों गले लग जाने को, अब फिर कब मिलेंगे । कौन ऐसा जीव है यहाँ पर, जिसे प्रेम नहीं चाहिए, प्रेम की रासलीला तो हम, निरंतर यूँही रचते रहेंगे । मैं भी तो हूँ सनम सदा ही, तुम्हारे बगैर अधूरा सा, फिर से एक हो जाने को, अब हम कब मिलेंगे । बहुत से हैं प्रश्न मन में, उनका उत्तर कब तक मिलेगा, अपने विचारों के आदान प्रदान हेतु, हम कब मिलेंगे । जिन्दगी जीना भी तो क्या जीना है, प्यार के बिना, हमारे जीवन में सुख के सुमन, अब कब खिलेंगे । याद आती है तुम्हारी हरपल, चाहे दिन हो या रात हो, यूँ कब तक एक दूसरे से, सपनों में हम मिलते रहेंगे । मेरे लिए सबसे अहम और प्यारी तो तुम्हीं हो जानेमन, अपने अधूरे सपने साकार करने को, हम कब मिलेंगे । - Devendra Kumar (देवेंद्र कुमार) # आज के बिछड़े ना जाने कब मिलेंगे
Author Munesh sharma 'Nirjhara'
अनुभूति और अभिव्यक्ति के बीच झूल रही हूँ मैं... अपनी ही खोज में दिन-दिन और 'खो' रही हूँ मैं...! हजार कोट आज पूरे हुये😊
Vickram
सवालो के शहर में दर्द भी काफी था साथ मेरे । मै अकेला कहां था तुम भी तो थी याद नहीं । हकीकत में तो अंधेरे का सफर ही ज्यादा था । सिर्फ उम्मीदों में ही तो सवेरे का वादा रहा। ©Vickram सिर्फ उम्मीदों ने तो जिंदा रखा,, वर्ना हम कबके मर चुके थे,,
SHAILENDRA UPADHYAY