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Bhavesh

दिल्लगी करने की कोशिश जारी है कुछ नई राहों से लेकिन वाकिफ भी हूं उन सकरी गलियों की वफाओं से  फितरत कहा होती है मुसाफिर सी कुछ जरूरतों का बो

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Peace


Do Read The Caption दिल्लगी करने की कोशिश जारी है कुछ नई राहों से लेकिन वाकिफ भी हूं उन सकरी गलियों की वफाओं से 

फितरत कहा होती है मुसाफिर सी कुछ जरूरतों का बो

Asif Hindustani Official

ये मुल्क आज़ाद था, आज़ाद है आज़ाद रहेगा, Asif Hindustani ने NH-47 सकरी मधुबनी मे प्रोटेस्ट में पढ़ी नज़्म CAA NRC NPR के ख़िलाफ़ चल रहे प्रो #nazm #शायरी #mushaira #kavisammelan #imranpratapgarhi #AsifHindustani #MithilaKaShayar #Nojotovideoprompt

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MAHENDRA SINGH PRAKHAR

चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन काशी के हैं घाट निराले ।  भक्त सभी है डेरा डाले ।। माँ गंगा की करें आरती ।  होती खुश हैं मातु भारती ।। भोले बाबा क #कविता

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चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन

काशी के हैं घाट निराले । 
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती । 
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा की यह नगरी ।
गलियां मिलती टेढ़ी सकरी ।।
बम-बम बम-बम होती काशी । 
हरते दुख सबके अविनाशी ।।
यह तन है मिट्टी की काया । 
इसकी बस कुछ दिन की छाया ।।
आज मान लो मेरी बातें । 
होगी जगमग तेरी रातें ।।
माँ गंगा में ध्यान लगाओ । 
भव से सभी पार हो जाओ ।।
यह तन माया की है गठरी । 
हाथ न आये बिल्कुल ठठरी ।।
पाप सभी गंगा धुल आये । 
फिर भी मन में पाप छुपाये ।।
पाप नाशिनी होती गंगा । 
मारा डुबकी मन है चंगा ।।

महेन्द्र सिंह प्रखर

©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपाई छन्द , चित्र-चिंतन

काशी के हैं घाट निराले । 
भक्त सभी है डेरा डाले ।।
माँ गंगा की करें आरती । 
होती खुश हैं मातु भारती ।।
भोले बाबा क

Jai Prakash Verma

भीड़ में फंस जाओ तो परेशान मत होना पीछे मत आना नहीं तो कुचल दिए जाओगे रुकना नहीं वरना फिसल जाओगे भीड़ से बच निकलने के लिए आगे बढ़ते रहना #Politics #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqdada #yqquotes #drama #maharashtra

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महाराष्ट्र की सत्ता में उमड़ी भीड़
      (पूरा अनुशीर्षक में पढ़ें) भीड़ में फंस जाओ तो परेशान मत होना
 पीछे मत आना नहीं तो कुचल दिए जाओगे
 रुकना नहीं वरना फिसल जाओगे 
भीड़ से बच निकलने के लिए आगे बढ़ते रहना

Santosh Sagar

मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये !-2. तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये.... मुश्किल है अपना मेल प्रिये,

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मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये रेल नहीं है खेल प्रिये....
तुम खुले हवा में सोते हो , मैं इंजन में ही रोता हु !
तुम थाली में खाना खाना खाती, मैं टिफिन  में हाथें धोता हु !!
तुम मार्सिटीज से निकले तो, मैं पैदल  लॉबी जाता हु ,
तुम ताजा भोजन करती हो ,मैं सुखी  रोटी चवाता हूँ ! 
 जज्बातों की बातों में ..... न ऐसे हमे धकेल  प्रिये .........
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!!
सपने भी मेरी सुनले पगली ,हर रात तुझे तड़पायेगी!
मैं जागूँगा सारी रात पर नींद  तुझे  न आएगी  !!
हरी , पिली पर सांत रहता हू लाल को देख घबराता हु ,
लाल के पहले जोरो से मैं लाल -लाल चिल्लाता  हू!
खींचा-तानी के चक्कर में कुशल  न हम रह पाएंगे,
ड्यूटी जब - जब लगेगी मेरी खाना तुम्ही  से बनवाएंगे!
आटा-  चावल , दाल के साथ में....दे देना तुम तेल  प्रिये ....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये!
इन सकरी पतली पटरियों पर जब दिन से रात हो जाते है .
कब तक ड्यूटी ऑफ होगी हम खुद ही समझ नहीं पाते है ,
घर को जाते जाते  काफी देर हो जाते है ,
घर में पापा ,मम्मी ,भैया ,दीदी सब सो जाते है 
खुद  खाना लेकर चारपाई पर अकेले खाते है
एक अकेला तकिया लेकर कोने में कही सो जाते है-2
मेरे अरमानो के चलते खुद से ना तुम खेल प्रिये .....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल प्रिये.....
              :-  संतोष 'साग़र' मुश्किल है अपना मेल प्रिये , ये रेल नहीं है खेल  प्रिये !-2.
तुम घुमावदार GT ￰रोड, मैं सीधा-साधा रेल प्रिये....
मुश्किल है अपना मेल प्रिये,

Midnight thoughts

वो अकेला रहता था ,किसी से नही मिलता था मैने बात करने की सोचा उस से ,न जाने किस बात का डर था उसे वो हर बार इनकार करता था। न कार न बस न बाइक क

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वो अकेला रहता था 
वो किसी से नही मिलता था 
मैंने बात करने की सोच उस से 
न जाने किस बात का डर था उसेको
वो हर बार इनकार करता था ।
      
  (Continued..) वो अकेला रहता था ,किसी से नही मिलता था
मैने बात करने की सोचा उस से ,न जाने किस बात का डर था उसे वो हर बार इनकार करता था।
न कार न बस न बाइक क

Ashutosh Patro

वो अकेला रहता था ,किसी से नही मिलता था मैने बात करने की सोचा उस से ,न जाने किस बात का डर था उसे वो हर बार इनकार करता था। न कार न बस न बाइक क

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वो अकेला रहता था 
वो किसी से नही मिलता था 
मैंने बात करने की सोच उस से 
न जाने किस बात का डर था उसेको
वो हर बार इनकार करता था ।
      
  (Continued..) वो अकेला रहता था ,किसी से नही मिलता था
मैने बात करने की सोचा उस से ,न जाने किस बात का डर था उसे वो हर बार इनकार करता था।
न कार न बस न बाइक क

Poonam Suyal

बरसात की शाम सर्दियों की वो ठिठुरती शाम, ठंड के मारे बुरा हाल था। मैं अपने बच्चों के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहीं थी। हम लोग शा #yqdidi #yqrestzone #collabwithrestzone #rzलेखकसमूह #rzwriteshindi #rztask425

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बरसात की शाम 

(अनुशीर्षक में पढ़ें) बरसात की शाम 

सर्दियों की वो ठिठुरती शाम, ठंड के मारे बुरा हाल था। मैं अपने बच्चों के साथ किसी रिश्तेदार की शादी में जा रहीं थी।  हम लोग शा

Sunita D Prasad

उसके होठों का ध्वनित उल्लास श्रृंगारहीन है ! क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ? जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्म

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उल्लास जी की कविताएं 
उसके होठों का ध्वनित उल्लास 
श्रृंगारहीन है !
क्या किसी हँसते हुए चेहरे पर बेतरतीबी देखी है ?
जैसे कई रातों की अनभिज्ञता और अंधकार में जन्म
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