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Mohit Kumar Goyal
CREATURE GIRL
White ये जो डेढ़े मेढ़े रास्ते हैं और जो थोड़े से काटों से भरे हैं, उन पर चलना आसान हो जाएगा बस एक बार मेरा हाथ तो थाम, ये रास्ते आसानी से पार हो जायेगा । ©CREATURE GIRL #ये रास्ते जो काटों से भरे हैं
Devesh Dixit
इश्क और अश्क़ इश्क और अश्क़ का तो, चोली दामन का साथ है। कहती है ये दुनिया सारी, इसमें कामदेव का हाथ है। इश्क है कुछ क्षण का पर, नेत्रों में अश्क़ बहुत गहरे हैं। कितने भी जुल्म सहलो पर, सुनने को यहाँ सब बहरे हैं। ये आकर्षण का ही जलवा है, जिसने इश्क को जन्म दिया। जातिवाद के इस भेदभाव ने, अश्कों को ही तब सार दिया। बुरे भाव को यूँ लेकर बैठे, इश्क का है जो नाम दिया। छत्तीस टुकड़े ही कर डाले, उसे अश्क़ का जाम दिया। समझो इश्क बदनाम हुआ, क्यों अश्कों को भरे हुए हो। लक्ष्य को अपने छोड़ दिया, क्यों जीवन से रुष्ठ हुए हो। इश्क और अश्क़ का तो, चोली दामन का साथ है। खत्म हुआ भरोसा देखो, ऊपर न किसी का हाथ है। .................................... देवेश दीक्षित ©Devesh Dixit #इश्क_और_अश्क़ #nojotohindi #nojotohindipoetry इश्क और अश्क़ इश्क और अश्क़ का तो, चोली दामन का साथ है। कहती है ये दुनिया सारी, इसमें कामदेव
Shaurya kumar
Praveen Jain "पल्लव"
पल्लव की डायरी नवाजा है मौजो ने ,रहस्य प्रकृति में भरे है कही नदी पहाड़ सन्तुलन बनाते कही बर्फबादी ने अल्हड़पन दिखाये है कही चिंतवन मनन कही सांसारिक भोगो से दूर समाधिस्त होने का स्थल बनाया है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #skylining रहस्य प्रकृति में भरे है #nojotohindi
दीपा साहू "प्रकृति"
उलझन भरे मेरे नैनो ने तुमसे सहस्त्र प्रश्न किए। उत्तर जिनके खोज रही सम्मुख तुम्हारे यत्न किए। स्वार्थ भरी दुनिया व्याधि माया मोह जालिकाएँ, भोग-विलास की मन में खेले वो बाल-बालिकाएँ हे कृष्ण मोक्ष दो मुझे तुम्हीं,तम भरा उजाला भी। अंधकारमय है जीवन ,तुम्ही से मिले सहारा भी। उन्मुक्त मन की बांध गति,इंद्रियों को बांध दो, हे कृष्ण सुनो चरणों में मुझको भी अब स्थान दो। ©दीपा साहू "प्रकृति" #Prakriti_ #deepliner #krishna #love #poetry #poem #Nozoto उलझन भरे मेरे नैनो ने तुमसे सहस्त्र प्रश्न किए। उत्तर जिनके खोज रही सम्मुख तुम्
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की फिर उसी मोड़ पर आकर खड़े हों जाते हैं। कभी कभी तो लगता है अपने हाथ पैर मारना ही छोड़ दे ताकि कुछ पल सुकून के तो मिल सके पर यह भीं इसे मंजूर नहीं होता है, फिर कोई न कोई राह दिखा कर फिर उसी मोड़ पर ले आती है। ना यह चेन से जीने देती है और ना मरने देती है। जब तकलीफ़ का दौर देखा और अपने आप को कोसने लगे तो फिर इसे शख्स को सामने लाकर खड़ा कर देगी। जो हमसे भीं ज्यादा तकलीफ़ मे होगा, उसे देख कर और उनकी तकलीफ़ को सुनकर उनके लिए प्रार्थना करने के लिए अपने आप भगवान के आगे उठ जाते हैं। और आंखो में अश्रु भर जाते हैं। बस और बस केवल उनकी ही पीड़ा मन में रहती है। जब हाथ पकड़ कर कहती हूं सब ठीक हों जायेगा। तो वो जैसे ही ठीक हों जाता था। तो हमे भूल जाता है। और मन में एक ठीस सी उठती है। हमें दुःख किस बात का हुआ वो भूले इस कारण यां उनकी पीड़ा हमारे अंदर आ गई उसके कारण.. समझ नहीं आता की नियति क्या खेल खेलती है। हमारा मन एक कोरा कागज़ है उसपर हर तरह के रंग भर देती है। चाहें हमें पसंद हों यां नहीं। बस भरे जा रहीं हैं, भरे जा रही है। जो देखेगा तो उसका अलग ही मत होगा। कोई अपनी अलग ही राय कायम करेगा। पर इन सब के बीच में पिसता पेपर हैं। अगर रंग अच्छे भरे तो सुंदर चित्र उभर कर आयेगा और उसे साथ ले जायेगा। और किसी को पसंद नहीं आया तो कचरे के डिब्बे में फेका जायेगा, तब वो स्याही भीं ख़राब तो उस पेन की चुबन और वो पेपर भीं ख़राब हों जायेगा। और बाद में हमारी नियति भीं ख़राब बता दी जायेगी क्योंकि सबसे बड़ी कलाकार हमारी नियति है और हम वो प्लेन पेपर है, और दुःख, सुख, शांति, पीड़ा, संघर्ष रूपी कलम सभी हमारी नियति है। और शून्य से बढ़े तो शून्य में ही विलीन हों गए। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma #aaina हमारी नियति है। कभी शून्य से आगे बढ़ ही नहीं पाए , जब भी हमने सोचा की शायद अब नियति मे कुछ बदलाव आया होगा तो तभी कुछ ऐसा होता है की
दीपा साहू "प्रकृति"
"रसोई" ये रसोई का दरवाजा , दिल नहीं करता अंदर जाने को। ये बर्तन ,ये दीवारें,पानी से भरे सुराहें। रोज की इनसे लड़ाई ,आँखें छलछलाई। कभी दूध उबलता आंच बुझती। चाय की एक कप न एक चुस्की। आवाज़ इधर से आती है, आवाज़ उधर से आती है। मेरा टॉवल,मेरी चाय,मेरा नास्ता, मेरा टिफिन,दी बना दो मेरा पास्ता। दो हाथ ही होते हैं,उन्हें कहां रोके हैं। तन थक गया मन थक गया पर खुद को कहाँ टोके हैं। एक पल इनसे चुराने को, खुद को खुद से मिलाने को, एक दिन का काम छुड़ाने को, अस्त व्यस्त हो जाती है घर की धरती भी रो जाती है। एक लम्हा जो नज़र न आए, बस पुकार ही पुकार हो जाती है, खुद के लिए कोई वक़्त ही नहीं, रसोई की ही बस हो जाती है। खुद के लिए क्या जी पाती है।। ©दीपा साहू "प्रकृति" #Prakriti_ #deepliner #poem #Poetry #story #followers #Nozoto "रसोई" रसोई का दरवाजा , दिल नहीं करता अंदर जाने को। ये बर्तन ,ये दीवारें,पानी
Rishika Srivastava "Rishnit"
शीर्षक:- "आओ सखी ,खेले फ़ाग " ................................ मार-मार पिचकारी रगों की फुहार से उड़ा के अबीर के रंग, भीगें हर अंग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे...! थोड़ा सा ग़ुलाल मैं लगाऊं, थोड़ा तुम लगाना.. लपक-झपक ग़ुलाल के रंगों से, रंगे दोनों संग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! ना जाने कहाँ होंगे अगले बरस, एक दूसरे को देखने को नजरें जाएगी तरस.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! आगे की चिंता की शिकन ना आने दे हमारे दरमियान, तू और इस रंग-बिरंगे रंगों संग जिंदगी में भरे हर रंग रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..! बरस-बरस भीगेंगे आँचल, भिगोए जलते तन-मन रे.. आओ सखी, बुझा दे प्रेम से हर पीड़ा की चुभन रे.. आओ सखी, खेले फ़ाग एक-दूसरे के संग रे.. करे अंबर लाल पिचकारी के संग रे..!! ©Rishika Srivastava "Rishnit" शीर्षक:- "आओ सखी ,खेले फ़ाग " ................................ मार-मार पिचकारी रगों की फुहार से उड़ा के अबीर के रंग, भीगें हर अ
Vikrant Rajliwal