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शिवानन्द

इंसान ही इंसान को आज काट है बैठा,
समझदार इंसान से वे #नदान_परींदा है अच्छा।
कभी चर्च कभी मस्जिद तो कभी मंदिर पर जा बैठा,
मजहब को जोड़ने का अच्छा संदेश दे बैठा।🕊🕊🙏🙏 #इन्सान #मंदिर #मस्जिद #चर्च #परींदा #नदान_परींदा #yqbaba #yqdidi

Sachin

चर्च #Shayari

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CK JOHNY

मसीहा

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उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे 
जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। 
आया था वो इनसान के वेश में  रब था जो
आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। 
दिल खोल के लुटा रहा था वो दौलते मुहब्बत 
कमनसीबी मेरी हम ही दिल खोल न सके। 
औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश
बावजूद उसके समझाने के सीधा कर न सके। 
सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना
लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। 

 मसीहा

DINESH SHARMA

मेरी नई ग़ज़ल से एक शेर

मेरे मसीहा , मुझे दुआएं न दे
जहर दे दे, या वक़्त पे दवाएं न दे
©दिनेश शर्मा
 16.06.2019 , 00:30 AM (Midnight) #मसीहा

CK JOHNY

मसीहा

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उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे 
जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। 
रब ही था वो जो आया था इनसान के वेश में 
आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। 
दिल खोल के लुटा रहा था वो दिल की दौलत
कमनसीबी मेरी कि हम ही दिल खोल न सके। 
औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश
उसके समझाने के बावजूद भी सीधा कर न सके। 
सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना
लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। 


उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे 
जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 
19.07.2020 मसीहा

Rajiv Ahinsa

मसीहा #कविता

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करके अंधेरा तुम अपने घरों में
दिया रोशनी के जलाकर तो देखो
मैं दिखने लगूँगा मसीहा सभी को
मेरी तरह करके जो इबादत तो देखो

राजीव अहिंसा गज़लकार मसीहा

Nilam Agarwalla

Manmohan Dheer

मसीहा

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जरूरत वक़्त की समझता इंसां चालबाज़ है
मसीहा गढ़ने लगता है गर मौत सामने आए 
बाशिंदे ख़ुदा के कुछ वाकिफ़ नही इससे भी 
जो ख़ुदा ही सामने हो भी तो समझ न पाए
. मसीहा

Manmohan Dheer

मसीहा

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फ़लसफ़े ख़ुदाई जाना मानो हजार जाना
किस्सा ओ अफ़साने उसके तमाम जाना
जाना मगर न जाना तुझे या खुद को जाना
माना ख़ुद ख़ुदा तो फिर किसे हमने जाना
.
इबारतें इफ़रात बोझ धीर लिए देखता है
मसीहा मिले हर गली सज़दे में जमाना
.
वाह क्या ख़ूब अफ़साना मसीहा

CK JOHNY

मसीहा

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उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे 
जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। 
रब ही था वो जो आया था इनसान के वेश में 
आम आदमी जान हम ही उसे पहचान न सके। 
दिल खोल के लुटा रहा था वो दिल की दौलत
कमनसीबी मेरी कि हम ही दिल खोल न सके। 
औंधे बर्तन में पड़ती कैसे रहमतों की बारिश
उसके समझाने के बावजूद भी सीधा कर न सके। 
सिर्फ इनसान को मय्यसर है खुदा हो जाना
लाहनत है उस पर जो इसका फ़ायदा उठा न सके। 


उम्र भर इक मसीहा की इंतजार करते रहे 
जो आके हमारी दुख भरी जिंदगी बदल सके। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 
19.07.2020 मसीहा
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